नई दिल्ली: गोरखपुर के डॉक्टर कफील खान के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा का स्पष्ट समर्थन कांग्रेस पार्टी की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वो आने वाले चुनावों में उत्तर प्रदेश में ख़ुद को मुसलमानों के लिए एक भरोसेमंद विकल्प के तौर पर स्थापित करना चाहती है.
सीनियर कांग्रेस नेता की टीम ने ख़ान की रिहाई के लिए अभियान चलाए हैं और मंगलवार को जेल से रिहा होने के बाद, इस आश्वासन के साथ उन्हें राजस्थान भेज दिया कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के साए में वो और उनका परिवार सुरक्षित रहेगा.
इससे पहले कांग्रेस ने ख़ान की रिहाई की मांग करते हुए यूपी के कई ज़िलों में 15 दिन का अभियान चलाया था. इस अभियान में डॉक्टर के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान, भूख हड़ताल, दरगाहों के दौरे और रक्तदान शिविर शामिल थे.
जुलाई में प्रियंका ने भी ख़ान की लगातार गिरफ्तारी के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाई थी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर बच्चों के डॉक्टर के लिए ‘इंसाफ’ की मांग की थी.
ख़ान को मंगलवार देर रात मथुरा ज़िला जेल से रिहा किया गया. उन्हें पिछले दिसम्बर में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम विरोधी प्रदर्शन में तथाकथित भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. कुछ दिन बाद उनपर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की कड़ी धारा लगा दी गई, लेकिन इलाहबाद हाईकोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी को ‘अवैध’ क़रार दिया, जो उनके भाषण के कुछ चुने गए अंशों पर आधारित थी.
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नेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस का एक मुसलमान शख़्सियत के समर्थन में दिखने का क़दम- जिसे आदित्यनाथ की आगुवाई वाली सरकारी मशीनरी के विरोधी के रूप में देखा जाता है- यूपी के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने का एक प्रयास है.
प्रियंका की रणनीति
यूपी कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रमुख शाहनवाज़ आलम ने कहा कि कफ़ील ख़ान के लिए पार्टी का समर्थन और सहायता, ‘सब प्रियंका गांधी के निर्देशों के तहत की गई है.’
आलम ने कहा, ‘लेकिन वो अकेले इंसान नहीं हैं, जिन्हें आदित्यनाथ सरकार निशाना बना रही है. पूरे राज्य में मुसलमान कार्यकर्ता और विचारक जेलों में भरे जा रहे हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘सीएए और एनआरसी लाए जाने के बाद संविधान की वो बुनियादी बातें, जो मुसलमानों की रक्षा करती हैं. ख़तरे में पड़ गई हैं. इसी कारण हमारे लिए इस मुद्दे को उठाना ज़रूरी हो गया.’
यूपी विधानसभा के अगले चुनाव तो 2022 में होंगे, लेकिन राज्य की कम से कम आठ ख़ाली सीटों पर साल के अंत तक उप-चुनाव कराए जाने की संभावना है.
दिसंबर में नागरिकता संशोधन अधिनियम के ख़िलाफ प्रदर्शनों के बाद की हिंसा में प्रियंका ने यूपी के कई ज़िलों का कई बार दौरा किया और मरने वालों के परिजनों से मुलाक़ात की. फिर जनवरी में जेलों में बंद सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए उन्होंने फिर उनसे मुलाक़ात की.
यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने दिप्रिंट से कहा, ‘यूपी में उन्होंने आगे रहकर अगुवाई की है चाहे वो सीएए-एनआरसी का मामला हो या सोनभद्र दंगों के दौरान, लोगों के अधिकारों के लिए खड़े होने का मामला हो.’
एसपी व बीएसपी की जगह लेने की उम्मीद
विश्लेषकों का कहना है कि ये प्रियंका का उस ख़ालीपन को भरने का एक साहसी क़दम है, जो यूपी में मुस्लिम लीडरशिप को लेकर पैदा हुआ है.
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के रिसर्च एसोशिएट आसिम अली ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस क़दम के साथ कांग्रेस मुसलमानों का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही है, जो पिछले क़रीब तीन दशक से पार्टी से दूर जा चुके हैं. एक प्रमुख अपवाद 2009 का लोकसभा चुनाव था, जब मुलायम सिंह के हिंदुत्व आईकॉन कल्याण सिंह से हाथ मिलाने के बाद मुसलमान बड़ी संख्या में समाजवादी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आ गए थे. वो आख़िरी बार था जब कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था, और 21 सीटें जीतीं थीं.’
मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने पिछले साल धारा 370 को हटाने का मज़बूती से समर्थन किया, जबकि एसपी लीडर अखिलेष यादव ने इस मुद्दे पर ज़्यादा कूटनीतिक रुख़ अपनाया है.
यादव ने कहा था कि वो इस क़दम का स्वागत करते हैं, जो ‘देश की अखंडता को मज़बूत करता है’, लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि लोकतंत्र में फैसले आम सहमति से लिए जाने चाहिए, ताक़त से नहीं.
संसद में तीन तलाक़ बिल पास कराने में भी बीएसपी ने वोटिंग से अलग रहकर केंद्र सरकार की सहायता की.
अली ने कहा कि कांग्रेस ‘शायद उम्मीद कर रही है कि वो राज्य में, मुसलमानों के लिए ख़ुद को दूसरे विकल्प के तौर पर पेश करेगी, ये देखते हुए कि बीएसपी कई मुद्दों पर, बीजेपी के साथ खड़ी दिखी है.’
कांग्रेस को मुसलमानों के पाला बदलने का भरोसा
लेकिन, कांग्रेस को लगता है कि वो एसपी के वफादार मुसलमानों को पाला बदलने के लिए समझाने में कामयाब हो सकती है.
जेल में बंद सीनियर एसपी नेता आज़म ख़ान की ओर इशारा करते हुए, यूपी कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘एसपी जेल में बंद अपने ही नेता के लिए आवाज़ नहीं उठा रही है, तो उससे कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वो निशाना बन रहे मामूली मुसलमानों के लिए बोलेगी.’ नेता ने आगे कहा, ‘एसपी और बीएसपी ने मुसलमानों को ऐसे ही छोड़ दिया है और कम्यूनिटी इसे अच्छे से समझती है.’
रामपुर सांसद ख़ान फरवरी से गिरफ्तार हैं, जब उन्हें कई मुक़दमों में अभियुक्त बनाया गया था, जिसमें एक मामला दस्तावेज़ों की हेराफेरी से जुड़ा है.
मार्च में उनके साले ज़मीर अहमद ख़ान ने दावा किया था, कि उनके समर्थन में आवाज़ न उठाने के लिए, रामपुर सांसद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से आहत हैं.
लेकिन एसपी और बीएसपी दोनों ने कांग्रेस के प्रयासों को ‘बेअसर’ बताते हुए ख़ारिज किया है. एसपी लीडर उदयवीर सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी को विश्वास है कि कांग्रेस उसके मुस्लिम वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पाएगी.
सिंह ने कहा, ‘सभी धर्मनिर्पेक्ष और समान सोच वाली पार्टियों ने, कफील ख़ान का मुद्दा उठाया था. हमने इसे संसद में भी उठाया था.’ उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन कांग्रेस इसे हिंदू-मुसलमान मुद्दा बनाकर पेश कर रही है, जबकि मामला दरअसल ये है, कि योगी आदित्यनाथ एक डॉक्टर को निशाना बनाने के लिए सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं.’
सिंह ने आगे कहा, ‘शुरू में कफील को सीएए-विरोधी प्रदर्शनों के लिए नहीं, बल्कि बीआरडी अस्पताल मामले में गिरफ्तार किया गया था.’
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सिंह अगस्त 2017 में ख़ान की गिरफ्तारी की बात कर रहे थे, जब गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कथित भ्रष्टाचार के चलते एंसिफिलाइटिस से, 60 बच्चों की मौत हो गई थी. अप्रैल 2018 में उन्हें ज़मानत पर छोड़ दिया गया था. योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा कराई गई विभागीय जांच में, उन्हें सितंबर 2019 में आरोपों से मुक्त कर दिया गया था.
बीएसपी नेता और प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया ने कहा कि यूपी के मुसलमान ‘हाशिमपुरा नरसंहार और बाबरी मस्जिद विध्वंस को भूले नहीं हैं, जब पीवी नरसिम्हाराव पीएम थे.’
भदौरिया ने कहा, ‘मुसलमानों और दलितों के बीच एक जैविक एकजुटता है, चूंकि दोनों समाज के हाशिये पर पड़े हैं. दोनों ने पहले भी बीएसपी को वोट दिया है और आगे भी देते रहेंगे.
कांग्रेस को और मेहनत करनी है: विश्लेषक
विश्लेषकों का ये भी कहना है कि इस मामले में कांग्रेस को अभी बहुत काम करना है और कफील ख़ान की हिमायत जैसे कभी-कभी दिखने वाले प्रतीकात्मक इशारे चुनावी नतीजों पर ज़्यादा असर नहीं डालते.
कानपुर स्थित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक एके वर्मा ने कहा, ‘लोग ज़मीन पर हुआ काम देखते हैं, जो लंबे समय तक निरंतर किया जाना चाहिए. उसके लिए पार्टी को सतत प्रयासों की ज़रूरत है, जो फिलहाल नहीं हो रहे हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘पार्टी को पुनर्जीवित करने और किसी भी समुदाय के वोटर बेस में सेंध लगाने के लिए कहीं ज़्यादा प्रयास करने पड़ते हैं.’
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