नई दिल्ली: कोरोना काल का हरियाणा के प्राइवेट स्कूलों पर बुरा प्रभाव पड़ा है. प्राइवेट स्कूल संघ के कई सदस्यों के मुताबिक प्राइवेट स्कूलों के करीब एक लाख बच्चों ने सरकारी स्कूलों की तरफ पलायन कर लिया है. जब बच्चों ने स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट के लिए अप्लाई किया और हरियाणा सरकार ने एसएलसी को लेकर अपने आदेश में कहा कि अगर निजी स्कूल इसे जारी न करें तो भी बच्चों को एडमिशन दिया जाए.
इसके बाद प्राइवेट स्कूलों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. इस मामले को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने सोमवार को हुई सुनवाई के बाद इसे अब सितंबर तक टाल दिया है.
गौरतलब है कि इस सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य-शिक्षा सहयोग संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बृजपाल सिंह व कई अभिभावक संगठनों ने भी अपना पक्ष रखा था. अब इस मामले को लेकर हरियाणा सरकार में शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुज्जर ने शुक्रवार को प्राइवेट स्कूलों के विभिन्न संघों की एक मीटिंग बुलाई है और इस पर विस्तार से चर्चा करने के बाद ही इस मसले का हल निकालने की कोशिश की जाएगी.
खबर छापे जाने तक मीटिंग में हुई कार्रवाई की जानकारी नहीं मिल सकी है. ज्ञात हो कि पंचकूला स्थित शिक्षा भवन में इस मीटिंग के लिए प्राइवेट स्कूलों के विभिन्न संघों के दो-दो प्रतिनिधियों को बुलाया गया है.
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क्या था पूरा मामला?
कृषि पर निर्भर राज्य हरियाणा में किसान अपने बच्चों की फीस मार्च और सितंबर में जमा करते हैं. लेकिन कई स्कूलों में नए सेशन की तैयारियां शुरू ही हुईं थी कि लॉकडाउन शुरू हो गया जिसके बाद स्कूल नियमित वीडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा बच्चों को पढ़ाते रहे लेकिन फिर अचानक ही स्कूल प्रशासन ने पाया कि बच्चे व्हाट्सएप ग्रुप से निकल गए हैं और क्लासेज में भी नहीं आ रहे हैं. भारी-भरकम फीस को देखते हुए अभिभावकों ने अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों से निकाल सरकारी स्कूल में एडमिशन कराना शुरू कर दिया है. और स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट की मांग बढ़ती गई.
मामला तब ‘प्राइवेट वर्सेज सरकारी’ हो गया जब 15 जून को हरियाणा सरकार ने प्राइवेट छोड़ सरकारी स्कूलों में एडमिशन के लिए आ रहे छात्रों के लिए स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट की बाध्यता को ही खत्म कर दिया. सरकार ने यह घोषणा 15 जून को की है जिसके बाद प्राइवेट स्कूलों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
प्रोग्रेसिव प्राइवेट स्कूल्स एसोसिएशन हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष अनिल कौशिक दिप्रिंट को बताते हैं, ‘सरकार का ये आदेश हरियाणा में प्राइवेट स्कूलों के ढांचे को ध्वस्त करने का काम करेगा. सरकार इस महामारी को अवसर में बदल रही है लेकिन इससे हजारों प्राइवेट स्कूल बंद हो जाएंगे.’
वह आगे कहते हैं, ‘प्राइवेट स्कूलों की पिछले सेशन की कम से कम 30 फीसदी फीस बकाया है. मार्च के महीने में फीस जमा होने से पहले ही देशव्यापी लॉकडाउन घोषित किया गया था. ऐसे में हम पिछले सत्र की फीस नहीं जमा करवा पाए.’
‘तुरंत दें दाखिला, एसएलसी की जरूरत नहीं’
ग़ौरतलब है कि 15 जून के पहले हरियाणा स्कूल एजुकेशन बोर्ड द्वारा जारी किए गए इस आदेश में बताया गया है कि बहुत सारे विद्यार्थी प्राइवेट स्कूलों से सरकारी स्कूलों में जाना चाहते हैं लेकिन सीएलसी ना मिलने की वजह से उन्हें ऑनलाइन एडमिशन में दिक्कत आ रही है. ऐसे में जो विद्यार्थी प्राइवेट से सरकारी स्कूलों में जाने के इच्छुक हैं, उनके लिए सरकार ने कहा है कि उन्हें तुरंत ही दाख़िला दिया जाए. साथ ही प्राइवेट स्कूलों से कहा गया है कि 15 दिन के भीतर ही एसएलसी जारी किया जाए अगर नहीं करते हैं तो एसएलसी स्वत: ही जारी किया हुआ मान लिया जाएगा.
स्कूलों के मुताबिक कृषि प्रधान राज्य हरियाणा में कम से कम 25 फीसदी किसान परिवार फसल की कटाई के समय फीस जमा कराते हैं. ऐसे में सितंबर और मार्च के आखिरी में स्कूलों के पास फीस आती है.
अनिल कौशिक कहते हैं, ‘ज्यादातर किसान परिवार साल में फसल आने पर दो बार फीस जमा कराते हैं. जिन परिवारों की फीस बकाया है वो अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल में दाख़िला कराने की सोच रहे हैं. हमें तब पता चलता है जब बच्चा व्हॉटसऐप ग्रुप छोड़ देता है या ऑनलाइन क्लासेज में अनुपस्थित रहने लगता है. परिवारों को जब कॉन्टैक्ट किया जाता है तो कहा जाता है कि फीस नहीं भर सकते. छोटे प्राइवेट स्कूल लोन पर चल रहे हैं. बसों की इमएमआई भरनी है. ये स्कूल कम से कम सौ-दो सौ लोगों को रोज़गार देते हैं.’
सरकार के आदेश के खिलाफ कोर्ट में स्कूल
महेंद्रगढ़ के एक प्राइवेट स्कूल के प्रिंसिपल ना छापने की शर्त पर बताते हैं,’ बकाया फीस लेने का एकमात्र तरीका था कि जब बच्चा सीएलसी लेने आएगा तो भर देगा. लेकिन अब जब एसएलसी ही नहीं चाहिए होगी तो वो पिछले साल की फीस भरे बिना ही चला जाएगा. हमारे पास भी पैसे नहीं है. अगर एक स्कूल से सौ बच्चे भी बकाया फीस भरे बिना चले गए तो हजारों स्कूल बंद होने की कगार पर आ जाएंगे.’
हरियाणा प्राइवेट स्कूल संघ के रोहतक जिले के अध्यक्ष बताते हैं, ‘हमारे आंकड़ें बताते हैं कि राज्य में कम से कम चार लाख टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की मार्च महीने से सैलरी बकाया है. बिना फीस के अध्यापकों को पगार कैसी जी जाएगी. अभी तक के रुझान के मुताबिक कम से कम राज्य में एक लाख बच्चों ने सीएलसी के लिए प्राइवेट स्कूलों में अप्लाई किया है. सरकार का ये तुगलकी फरमान है जो प्राइवेट स्कूलों की चेन को तोड़ने का प्रयास है. या तो सरकार ज़िम्मेदारी ले कि बकाया फीस सरकार भरेगी और बच्चों को सरकारी स्कूलों में ले जाए.’
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क्या कहते हैं माता-पिता और शिक्षा विभाग?
प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोगों पर लॉकडाउन का बुरा असर पड़ा है. ऐसे में जिनकी नौकरियां चली गई हैं वो परिवार अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में ले जा रहे हैं.
नारनौल जिले के रमेश कुमार गुरुग्राम में एक फ़ैक्टरी में काम करते थे लेकिन अब लॉकडाउन के चलते उनकी नौकरी चली गई है. दो बच्चों के पिता रमेश का बेटा प्राइवेट स्कूल में पढ़ता था और बेटी सरकारी स्कूल में. लेकिन अब उन्होंने बेटे का दाखिला भी सरकारी स्कूल में कराने का फैसला लिया है.
दिप्रिंट से हुई टेलिफॉनिक बातचीत में वो बताते हैं, ‘ऐसा नहीं है कि परिवार फीस भरना नहीं चाहते लेकिन प्राइवेट स्कूल की फीस की बजाय अब पेट भरना जरूरी हो गया है. इसलिए अब बेटे का दाखिला भी सरकारी में कराया है. लॉकडाउन ने लाखों लोगों के रोजगार छीन लिए हैं. ऐसे प्राइवेट स्कूलों को थोड़ा नर्मी से पेश आना चाहिए.’
इस सिलसिले में हरियाणा शिक्षा विभाग के एक अधिकारी नाम ना छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘ गरीब बच्चों को उनकी शिक्षा से वंचित नहीं रख सकते. हमारे पास कई शिकायत आई थीं कि प्राइवेट स्कूल सीएलसी ना देने के नाम पर हैरेस कर रहे थे. इसलिए ये आदेश निकाला है. हम अपने फैसले पर टिके हैं. मामला कोर्ट में गया है तो अब आगे का फैसला वहीं होगा. फिलहाल हम ये आदेश वापस नहीं ले रहे हैं.’
हरियाणा सरकार के सूत्रों के मुताबिक फिलहाल राज्य में सितंबर महीने में ही स्कूलों को खोलने की तैयारी की गई है और कोर्ट ने भई सिंतबर महीने तक इस केस की सुनवाई टाल दी है.