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Friday, 25 July, 2025
होमदेशरोगियों को एटीएम मशीन समझने लगे हैं निजी अस्पताल: इलाहबाद उच्च न्यायालय

रोगियों को एटीएम मशीन समझने लगे हैं निजी अस्पताल: इलाहबाद उच्च न्यायालय

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प्रयागराज, 25 जुलाई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रोगियों के साथ “एटीएम मशीन’ जैसा व्यवहार किए जाने पर नाराजगी व्यक्त की है और एक गर्भवती महिला के गर्भस्थ शिशु की मौत के मामले में शुरू की गई आपराधिक कार्रवाई के विरुद्ध चिकित्सक की याचिका खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने कहा कि आजकल नर्सिंग होम और अस्पतालों में अपर्याप्त चिकित्सकों या बुनियादी ढांचे के बावजूद मरीजों को इलाज के लिए लुभाना आम बात हो गई है।

अदालत ने कहा कि चिकित्सा सुविधाओं ने मरीजों से ‘पैसे ऐंठने के लिए उन्हें गिनी पिग/एटीएम मशीन की तरह इस्तेमाल करना’ शुरू कर दिया है।

इसलिए, अदालत ने नर्सिंग होम के मालिक डॉ. अशोक कुमार राय की याचिका खारिज कर दी। आरोप है कि चिकित्सक ने एक गर्भवती महिला को प्रसव के लिए भर्ती किया और ‘एनेस्थेटिस्ट’ (सुन/बेहोश करने वाले चिकित्सक) के नर्सिंग होम देर से पहुंचने की वजह से काफी देर तक ऑपरेशन नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप गर्भस्थ शिशु की मृत्यु हो गई थी।

चिकित्सक ने इस मामले में अपने खिलाफ जारी आपराधिक कार्यवाही को चुनौती दी थी।

अदालत ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि चिकित्सा पेशेवरों को संरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन उचित सुविधाओं व बुनियादी ढांचे के बिना नर्सिंग होम चलाने वालों को नहीं।

डॉक्टर इस मामले में अपने खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को चुनौती दे रहे थे। अदालत ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि चिकित्सा पेशेवरों को संरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन उचित सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के बिना नर्सिंग होम चलाने वालों को नहीं।

मामले के रिकॉर्ड पर गौर करने के बाद अदालत ने पाया कि मौजूदा मामला विशुद्ध रूप से दुस्साहस का है, जिसमें चिकित्सक ने मरीज को भर्ती किया और ऑपरेशन के लिए परिजनों से सहमति लेने के बाद ‘एनेस्थेटिक’ के नहीं आने की वजह से समय पर ऑपरेशन नहीं किया जिससे भ्रूण खराब हो गया।

अदालत ने पाया कि इसके बावजूद, चिकित्सक ने परिजन से मोटी रकम वसूली।

अदालत ने यह भी कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें चिकित्सक योग्य नहीं था, बल्कि यहां प्रश्न यह है कि क्या चिकित्सक ने समय पर इलाज उपलब्ध कराने में उचित सावधानी बरती या लापरवाही की।

अदालत ने कहा कि इस मामले में यद्यपि परिजनों से दोपहर 12 बजे सहमति ली गई, ऑपरेशन शाम साढ़े पांच बजे किया गया।

अदालत ने कहा कि चिकित्सक या नर्सिंग होम की तरफ से चार-पांच घंटे की इस देरी के लिए कोई तर्क पेश नहीं किया गया।

भाषा राजेंद्र जोहेब

जोहेब

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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