नई दिल्ली: केरल का ‘सोने की तस्करी का मामला’, जिसने मुख्य आरोपी बनाई गई स्वप्ना सुरेश द्वारा मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और राज्य के आला आधिकारियों की तरफ उंगली उठाने की वजह से एक बड़ी राजनीतिक हलचल पैदा कर दी थी, अब और भी विवादास्पद हो गया है.
मामले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आरोप लगाया है कि केरल सरकार न केवल आरोपियों पर मुख्यमंत्री के खिलाफ दिया गया उनका बयान वापस लेने का दबाव बना रही है, बल्कि इसने फर्जी मुकदमे दर्ज करके और जाली सबूत गढ़कर जांचकर्ताओं को भी निशाना बनाया है.
केंद्रीय एजेंसी ने ये सारे आरोप बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में लगाए, जहां उसने इस मामले की सुनवाई केरल से कर्नाटक स्थानांतरित करने के लिए याचिका दायर कर रखी है.
इस याचिका, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, में कहा गया है, ‘मामले में की जा रही कार्यवाही को पटरी से उतारने के अवैध प्रयासों का विफल किया जाना सुनिश्चित करने हेतु समय पर न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है.’
इस याचिका में ईडी की इस दलील का समर्थन करने के लिए कई तथाकथित घटनाओं को सूचीबद्ध किया गया है जिनके अनुसार केरल सरकार और पुलिस ने मामले की जांच में हस्तक्षेप किया है और गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश की है. याचिका कहती है, ‘ये तथ्य इस बात को आवश्यक बनाते हैं कि इस मुकदमे को केरल राज्य से बाहर स्थानांतरित किया जाए.’
ईडी ने मुख्य आरोपी स्वप्ना प्रभु सुरेश के उस बयान को एक सीलबंद लिफाफे में शीर्ष अदालत के समक्ष पेश करने की भी पेशकश की, जिसे पिछले महीने एक मजिस्ट्रेट के समक्ष आपराधिक प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसिजर कोड- सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज किया गया था.
केरल में यूएई वाणिज्य दूतावास की एक पूर्व कर्मचारी रही सुरेश ने दावा किया है कि मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, उनके परिवार के सदस्य और राज्य के आला अधिकारीगण उस तथाकथित सोने की तस्करी रैकेट में शामिल थे, जो 2020 में तब सबके सामने आया था जब राजनयिक साजोसामान जिसे कथित तौर पर दुबई से भारत लाया गया था, में 30 किलो सोना पाया गया था.
हालांकि विजयन ने सुरेश के इन आरोपों का खंडन किया है और पिछले महीने उन्होंने इन सब को वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार के खिलाफ ‘झूठ की बौछार’ के रूप में बताया था. इससे पहले, 27 जून को विधानसभा में विपक्ष द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में, उन्होंने सुरेश के इस आरोप का भी खंडन किया कि 2016 में जब वह दुबई में थे, तब उन्हें नोटों से भरा बक्सा (लगेज) भेजा गया था.
सुरेश ने जिन वरिष्ठ सिविल सर्वेन्ट्स के खिलाफ आरोप लगाए हैं, उन्हीं में से एक एम. शिवशंकर हैं, जिन्होंने केरल के मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के रूप में भी काम किया हुआ है. उन्हें अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था और मामले में एक आरोपी के रूप में नामित किया गया था.
उन्हें केरल उच्च न्यायालय ने 25 जनवरी 2021 को जमानत दे दी थी और वे अब भी अपने को बेगुनाह बताते रहते हैं. इस साल की शुरुआत में, उन्होंने एक किताब भी प्रकाशित की जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि जांच एजेंसियों पर मुख्यमंत्री को फंसाने का दबाव है.
अपनी स्थानांतरण याचिका में ईडी ने दावा किया कि शिवशंकर राज्य की मशीनरी (प्रशासनिक व्यवस्था) का उपयोग एजेंसी और उसके अधिकारियों के खिलाफ झूठे सबूत गढ़ने के लिए कर रहे थे ताकि राज्य सरकार के कुछ ‘शक्तिशाली व्यक्तियों’ की रक्षा की जा सके.
इस मामले ने केरल में एक जबरदस्त राजनीतिक विवाद पैदा कर दिया है, जिसके तहत विपक्ष लगातार सीबीआई जांच की मांग कर रहा है. गुरुवार को राज्य विधानसभा में मुख्यमंत्री ने इस मांग को ठुकरा दिया और उन्होंने ईडी के इन आरोपों को भी खारिज कर दिया कि राज्य सरकार जांच में बाधा डालने की कोशिश कर रही है.
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यह सब कैसे शुरू हुआ?
5 जुलाई 2020 को, तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर सीमा शुल्क अधिकारियों ने संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास के कार्यालय की ओर जाने वाले कुछ राजनयिक माल (कार्गो) को जब्त कर लिया और इसमें लगभग 15 करोड़ रुपये मूल्य का 30 किलोग्राम सोना पाया गया.
इसके बाद कोचीन स्थित सीमा शुल्क आयुक्तालय ने संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी सरित पीएस और यूएई के महावाणिज्य दूत के पूर्व सचिव स्वप्ना सुरेश के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की.
इस मामले में लगे इन आरोपों ने एक बड़ी हलचल पैदा कर दी कि स्वप्ना, सरित और संदीप नायर नामक उनके एक अन्य कथित साथी ने सोने की तस्करी के लिए राजनयिक संपर्कों का इस्तेमाल किया (राजनयिक कार्गो को आमतौर पर सीमा शुल्क परीक्षाओं से छूट दी जाती है) और यह भी कि कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और राजनेता कथित तौर पर इस जालसाजी (रैकेट) के लाभार्थी हैं.
याचिका में कहा गया है, ‘यह बरामदगी इस सारे घोटाले का एक बहुत छोटा सा हिस्सा है और सोने की 21 ऐसी खेपें थीं जिन्हें भारत में तस्करी कर लाया गया था, जिनका मूल्य 80 करोड़ रुपये से अधिक है.’ धन शोधन निवारण अधिनियम (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट-पीएमएलए) के तहत भी एक मामला दर्ज किया गया था और तीनों आरोपियों के खिलाफ एर्नाकुलम की एक विशेष अदालत में अभियोजन संबंधी शिकायत (प्रॉसिक्यूशन कंप्लेंट) दर्ज की गई.
शिवशंकर, जिन्हें ईडी ने अपनी स्थानांतरण याचिका में ‘शक्तिशाली वरिष्ठ आईएएस अधिकारी’ के रूप में वर्णित किया है, के खिलाफ 24 दिसंबर 2020 को एक पूरक शिकायत दर्ज की गई थी.
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‘दबाव’ डाले जाने के आरोप
अनुचित दबाव के कारण मामले को राज्य से बाहर स्थानांतरित करने के लिए दी गई ईडी की याचिका विभिन्न घटनाओं पर आधारित है, जिसमें एक निचली अदालत के समक्ष सुरेश द्वारा दायर अपनी सुरक्षा के लिए दिया गया एक आवेदन भी शामिल है. इस आवेदन में उसने दावा किया था कि उसे न्यायिक हिरासत के दौरान उच्च अधिकारियों के नामों का खुलासा करने को लेकर धमकी दी गई थी.
ईडी ने अपनी याचिका में नायर द्वारा हिरासत से रिहा होने के छह महीने से भी अधिक समय बाद 5 मार्च 2021 को विशेष अदालत के समक्ष दायर एक अन्य याचिका का भी उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने एजेंसी (ईडी) पर मुख्यमंत्री विजयन का नाम लेने के लिए उनपर दबाव बनाने का आरोप लगाया था. ईडी ने नायर के इन आरोपों पर सवाल उठाते हुए दावा किया कि उन्होंने हिरासत में रहते हुए ट्रायल कोर्ट के सामने पेश किए जाते समय कभी भी इस तरह के बयान नहीं दिए.
स्थानांतरण याचिका में दो प्राथमिकियों का भी उल्लेख किया गया है जिन्हें ईडी संदिग्ध मानती है. इनमें से पहला मामला कुछ ईडी अधिकारियों के खिलाफ दर्ज किया गया था और उन पर इस घोटाले में पिनराई विजयन का नाम लेने के लिए सुरेश पर दबाव बनाने का आरोप लगाया गया था. यह कथित तौर पर उन महिला पुलिस कांस्टेबलों की तरफ से दर्ज किया गया था, जो सुरेश को हिरासत में रखे जाने के दौरान उसकी सुरक्षा में तैनात थीं.
दूसरी प्राथमिकी में ईडी पर नायर को परेशान करने और उन्हें मुख्यमंत्री के खिलाफ झूठे सबूत पेश करने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया गया था. ईडी के अनुसार ये दोनों फर्जी मामले हैं और केरल उच्च न्यायालय ने इन्हें 16 अप्रैल 2021 को खारिज कर दिया था.
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