नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि दलीलें रखने के दौरान एक के बाद एक पन्ने सौंपने के चलन को हतोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि यह एक ‘‘स्वस्थ परंपरा’’ नहीं है और इससे भ्रम की स्थिति बनती है।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा, ‘‘यह कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं है बल्कि यह सभी के लिए एक सामान्य टिप्पणी है। यहां की प्रथा पूरी तरह बदल गई है। बहस के दौरान एक के बाद एक पन्ने ऐसे सौंपे जा रहे हैं जैसे कि यह कोई कूड़ेदान है जिसमें आप कागजात डालते जा रहे हैं।’’
धन शोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) के कुछ प्रावधानों की व्याख्या से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने यह टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह की प्रथा को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘‘हम फिर से दोहरा रहे हैं, यह कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं है। यह उस चलन के बारे में है जो यहां विकसित हो रहा है, जिसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए। यह एक स्वस्थ परंपरा नहीं है। इससे अदालत को कोई मदद नहीं मिल रही है। इससे भ्रम पैदा होता है।’’
पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब मामले में बहस कर रहे एक वकील ने अपने नोट का हवाला दिया। पीठ ने पूछा, ‘‘क्या आप उम्मीद करते हैं कि हम इसे जोड़ते रहेंगे।’’ इस पर वकील ने कहा कि वह ऐसे कागजात सामने रखना चाहते थे जिन्हें पहले प्रस्तुत नहीं किया गया था।
पीठ ने कहा, ‘‘वह बात नहीं है। जब हम घर से काम करते हैं तो ये खुले कागजात को रखना, संभालना असंभव है। फिर, कोई कागज छूट जाता है और पुनर्विचार याचिका दायर की जाती है।’’ वकील ने कहा कि वह मामले में और कागजात के साथ अदालत पर दबाव नहीं डालना चाहते।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पूर्व में पीठ को बताया था कि इस मामले में 200 से अधिक याचिकाएं हैं और कई गंभीर मामलों में अंतरिम रोक लगाई गई है, जिसके कारण जांच प्रभावित हुई है। इनमें से कुछ याचिकाओं में पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी गई है।
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