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Thursday, 10 October, 2024
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‘अपने खुद के वैगन खरीदें, रेलवे पर ही निर्भर न रहें’- सरकार ने संकट टालने के लिए आठ बिजली कंपनियों को दिया निर्देश

2022-23 के पहले दो महीनों में परिवहन संबंधी देरी के कारण कई बिजली संयंत्रों में कोयले की कमी हो गई थी. इसे देखते हुए भारतीय रेलवे को कई यात्री ट्रेनों को रद्द करके मालगाड़ियों के लिए रास्ता बनाना पड़ा था.

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नई दिल्ली: इस साल अप्रैल में रेलवे रैक की कमी ने गंभीर बिजली संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी थी, फिर ऐसी किसी घटना की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए सरकार ने आठ सरकारी बिजली उत्पादन कंपनियों को मानसून के मौसम में कोयला निकासी के लिए अपने खुद के वैगन खरीदने का निर्देश दिया है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

विद्युत मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस कदम से मानसून (जून-सितंबर) के महीनों में सुचारू ढंग से बिजली उत्पादन सुनिश्चित हो सकेगा, जबकि आम तौर पर बिजली की कमी हो जाती है.

इस वित्तीय वर्ष के पहले दो महीनों में खदानों से कोयला बिजली संयंत्रों तक पहुंचाने की व्यवस्था न हो पाने के कारण कई संयंत्रों में कोयले की कमी हो गई थी. नतीजतन, भारतीय रेलवे को कई यात्री ट्रेनों को रद्द करके मालगाड़ियों के लिए रास्ता बनाना पड़ा था.

विद्युत मंत्रालय की तरफ से एनटीपीसी लिमिटेड, दामोदर वैली कॉरपोरेशन के साथ-साथ पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और हरियाणा की सरकारी बिजली कंपनियों को लिखा गया है कि वे कम से कम 70 रैक का बफर रखें और कोयले की निकासी के लिए पूरी तरह से रेलवे पर ही निर्भर न रहें.

वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘जून में हमने आठ बिजली कंपनियों को अपना बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए लिखा था. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि आपूर्ति के लिहाज से (कोयला उपलब्धता) संकट है और मानसून के दौरान चुनौतियां बढ़ेंगी.’

भारतीय रेलवे कोयले की बढ़ती मांग को पूरा करने और अपनी माल ढुलाई में विविधता लाने के लिए कथित तौर पर अगले तीन से पांच सालों में एक लाख अतिरिक्त वैगन खरीदने की योजना बना रहा है. हालांकि, अभी खरीद शुरू नहीं हुई है.

विशेषज्ञों का कहना है कि कोयले के बढ़ते आयात के अलावा सबसे बड़ी चिंता इसे खदानों से बाहर पहुंचाने के बुनियादी ढांचे को लेकर है, जिसे बढ़ाने की जरूरत है ताकि बिजली उत्पादन में कोयले की कमी न होने पाए.

क्रिसिल रिसर्च की डायरेक्टर हेतल गांधी ने दिप्रिंट को बताया, ‘निकासी का बुनियादी ढांचा विकसित करने पर अब काफी ध्यान दिया जा रहा है. बरसात के बाद सितंबर के दौरान निकासी के बुनियादी ढांचे और वैगन की उपलब्धता एक बड़ा मौद्रिक खर्च होगा क्योंकि हम इन्वेंट्री को सामान्य बना रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘इसीलिए हमारा मानना है कि 2022-23 में आयात भारत के बिजली क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना रहेगा.’

पिछले हफ्ते एक रेग्युलेटरी फाइलिंग में राज्य के स्वामित्व वाली कोल इंडिया ने स्टॉक एक्सचेंजों को सूचित किया कि उसने अपने फर्स्ट-माइल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स के तहत आने वाले कोयला क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण और बुनियादी परिवहन ढांचा मजबूत करने के लिए अप्रैल-जून तिमाही के दौरान पूंजीगत व्यय में 65 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है.

अप्रैल-जून में कुल मिलाकर कोल इंडिया का पूंजीगत व्यय (दीर्घकालिक संपत्ति के अधिग्रहण पर किया गया खर्च) लगभग 3,034 करोड़ रुपये रहा. नई भूमि का अधिग्रहण, जिसका नतीजा अक्सर स्थानीय आबादी का विस्थापन होता है, खनन उत्पादन बढ़ाने और नई खदानें खोलने के लिहाज से बेहद अहम होता है.

सरकारी अधिकारियों के मुताबिक एक लाख अतिरिक्त वैगन खरीदने की योजना पर अभी काम चल रहा है.

भविष्य की अनुमानित मांग के मद्देनजर सरकार राष्ट्रीय रेल योजना के तहत भारतीय रेलवे की माल ढुलाई क्षमता में 2026 तक 6,300 मिलियन टन से अधिक और 2031 तक 8,220 मिलियन टन की उल्लेखनीय वृद्धि करना चाहती है. अभी, रेलवे 1,400 मिलियन टन से कुछ अधिक की ही आपूर्ति करती है और 2024 तक माल ढुलाई 2,000 मिलियन टन पहुंचाने की योजना है.

जून में बताया गया था कि भारतीय रेलवे बिहार, झारखंड और ओडिशा में बिजली उत्पादकों को जीवाश्म ईंधन के परिवहन में तेजी लाने के लिए कोयला खदानों के पास अपने ट्रैक बुनियादी ढांचे को अपग्रेड करने पर विचार कर रहा है.


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बिजली की मांग पूरी करने के लिए कोयले की आपूर्ति

कोयला मंत्रालय की एक विज्ञप्ति के मुताबिक जून में बिजली क्षेत्र को कोयले की कुल आपूर्ति 64.89 मिलियन टन रही, जो पिछले साल इसी अवधि की तुलना में 30.8 प्रतिशत अधिक है. वहीं, जून 2022 में कुल कोयले की आपूर्ति 20.69 प्रतिशत बढ़कर 75.46 मिलियन टन पर पहुंच गई, जो जून 2021 में 62.53 मिलियन टन रही थी.

यह वृद्धि मानसून के मौसम के लिए कोयले को बचाने के सरकार के प्रयासों के कारण हुई है, जब खदानों में बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण उत्खनन मुश्किल हो जाता है. ब्लैकआउट की स्थिति से बचने के लिए सरकार ने सभी बिजली उत्पादकों से अपनी कोल डिमांड का 10 फीसदी हिस्सा ब्लेंडिंग के लिए आयात करना अनिवार्य कर दिया है, जिसके बाद कई राज्यों ने अपने ऑर्डर जारी किए हैं.

भारत की कोयले से बिजली उत्पादन की कुल क्षमता 204.9 गीगावाट है. इसमें करीब 17.6 गीगावाट या 8.6 प्रतिशत उत्पादन आयातित कोयले से होता है.

ऊपर उद्धृत विद्युत मंत्रालय के अधिकारी के मुताबिक, 2022-23 के लिए भारत में बिजली की कुल मांग 1,180 बिलियन यूनिट होने का अनुमान है. इसमें से 1,119 बिलियन यूनिट की मांग जहां घरेलू कोयले की आपूर्ति से पूरी होगी, वहीं बाकी आयातित कोयले से पूरी की जाएगी.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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