नयी दिल्ली, पांच अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पर्यावरणीय क्षति के लिए प्रतिपूर्ति और प्रतिपूरक हर्जाना लगाने के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारों को बरकरार रखा और कहा कि रोकथाम एवं निवारक उपाय पर्यावरणीय प्रशासन के अधीन होने चाहिए।
न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि जल अधिनियम और वायु अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड संवैधानिक और वैधानिक रूप से वास्तविक या संभावित पर्यावरणीय क्षति के लिए हर्जाना लगाने का अधिकार रखते हैं।
न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने सोमवार को दिए गए फैसले में लिखा, ‘‘भारतीय पर्यावरण कानूनों को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों पर विचार करने के बाद हमारा मानना है कि जल और वायु अधिनियमों के तहत शक्तियों का प्रयोग करने वाले पर्यावरण नियामक यानी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड संभावित पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए एक निश्चित राशि के रूप में क्षतिपूर्ति या प्रतिपूरक हर्जाना लगा सकते हैं और वसूल सकते हैं या पूर्व-निर्धारित उपाय के रूप में बैंक गारंटी प्रस्तुत करना आवश्यक कर सकते हैं।’’
फैसले में कहा गया है कि ये शक्तियां जल एवं वायु अधिनियमों की धारा 33ए और 31ए के तहत प्रदत्त शक्तियों के अलावा और सहायक हैं।
फैसले के अनुसार, ‘‘हमने (पीठ ने) निर्देश दिया है कि इन शक्तियों का प्रयोग अधीनस्थ विधान द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार किया जाना चाहिए, जिसमें प्राकृतिक न्याय, पारदर्शिता और निश्चितता के आवश्यक सिद्धांत शामिल हों।’’
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि इस तरह के हर्जाने आपराधिक दंड से भिन्न होते हैं, क्योंकि ये दीवानी प्रकृति के होते हैं और इनका उद्देश्य उल्लंघनकर्ताओं को दंडित करने के बजाय पर्यावरणीय क्षरण को रोकना या बहाल करना होता है।
शीर्ष अदालत ने 2012 के दिल्ली उच्च न्यायालय के एक फैसले को रद्द कर दिया, जिसने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की पर्यावरणीय हर्जाना मांगने की शक्तियों को सीमित कर दिया था।
भाषा
सुरभि वैभव
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