कोयंबटूर (तमिलनाडु), 13 मई (भाषा) स्थानीय महिला अदालत ने पोलाची यौन उत्पीड़न एवं जबरन वसूली के सनसनीखेज मामले में गिरफ्तार सभी नौ लोगों को घटना के सामने आने के करीब छह साल बाद मंगलवार को दोषी ठहराया और ‘‘मौत तक आजीवन कारावास’’ की सजा सुनाई।
अदालत के फैसले के बाद कट्टर प्रतिद्वंद्वी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) ने अपने-अपने शासनकाल में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक-दूसरे पर निशाना साधा।
न्यायाधीश आर नंदिनी देवी ने सजा सुनाते हुए आठ पीड़िताओं को कुल 85 लाख रुपये का मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया।
नौ आरोपियों- रिश्वंथ उर्फ एन. सबरीराजन, के. थिरुनावुकारसु , एम. सतीश, टी. वसंतकुमार, आर. मणिवन्नन उर्फ मणि, पी. बाबू उर्फ ‘बाइक’ बाबू, के. अरुलानंथम , टी. हारोनिमस पॉल और एम. अरुण कुमार को कड़ी सुरक्षा के बीच सेलम केंद्रीय कारागार से अदालत लाया गया। इन सभी की उम्र 30 से 39 वर्ष के बीच है।
अरुलानंथम अन्नाद्रमुक का पूर्व पदाधिकारी है। उसे अपराध में संलिप्तता के कारण पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष लोक अभियोजक सुरेंद्र मोहन ने संवाददाताओं से कहा कि सभी नौ आरोपियों पर तत्कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 376 डी (सामूहिक बलात्कार) एवं 376(2) (एन) (एक ही महिला से बार-बार बलात्कार) के तहत आरोप लगाए गए थे और अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया तथा उन्हें ‘‘मौत तक आजीवन कारावास’’ की सजा दी जैसा कि सीबीआई ने अनुरोध किया था।
इस मामले की जांच सीबीआई ने की थी। मामले की गूंज तमिलनाडु विधानसभा में भी सुनाई दी थी।
उन्होंने बताया कि दोषी व्यक्तियों को एक से पांच साल तक के कारावास की अलग-अलग सजा सुनाई गई थी। थिरुनावुकारसु को पांच साल के कारावास की अधिकतम सजा सुनाई गई।
अदालत ने अन्य आरोपियों को तीन से 10 साल तक के कारावास की अलग-अलग सजा भी सुनाई।
इसके अलावा, न्यायाधीश ने नौ लोगों पर कुल 1.50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
कोयंबटूर की महिला अदालत की विशेष लोक अभियोजक जिशा के अनुसार, इस संवेदनशील मामले में एक भी गवाह नहीं मुकरा और पीड़िताओं की पहचान गुप्त रखी गई। मुकदमे के दौरान लगभग आठ पीड़िताओं ने गवाही दी थी।
उन्होंने कहा, ‘‘महिला अदालत ने पोलाची मामले में फैसला सुनाया है जो पिछले छह साल से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। अदालत ने सभी नौ आरोपियों को दोषी पाया।’’
सभी आरोपियों पर 2016 से 2018 के बीच हुई घटनाओं को लेकर ब्लैकमेल, आपराधिक साजिश, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और जबरन वसूली समेत कई आरोप लगाए गए थे।
अधिकतर पीड़िताएं कॉलेज छात्राएं थीं और यह घटना 2019 में तब सामने आई जब एक पीड़िता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
गिरफ्तार लोगों पर अपने कुछ कृत्यों के वीडियो बनाने का भी आरोप लगाया गया।
राज्य की राजधानी चेन्नई से लगभग 550 किलोमीटर दूर पश्चिमी तमिलनाडु के इस शहर में हुई इस घटना से राज्य में आक्रोश फैल गया था।
शुरुआत में मामले की जांच स्थानीय पुलिस ने की लेकिन बाद में इसे अपराध जांच विभाग की अपराध शाखा (सीबी-सीआईडी) को सौंप दिया गया। मामले को 2019 में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया गया।
मोहन ने संवाददाताओं को बताया कि एजेंसी ने मौत तक आजीवन कारावास की ‘‘सर्वाधिक सजा’’ दिए जाने का अनुरोध किया था।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि दोषी व्यक्तियों ने अपनी कम उम्र और बुजुर्ग माता-पिता सहित अन्य आधारों पर नरमी बरते जाने का अनुरोध किया था।
उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष ने कुल 48 गवाहों से पूछताछ की और उनमें से कोई भी अपने बयान से पलटा नहीं।
इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य ने आरोपों को साबित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई क्योंकि वे ‘‘वैज्ञानिक आधार पर पुष्ट’’ थे।
उन्होंने कहा, ‘‘यह एक स्वागत योग्य फैसला है। सीबीआई के प्रयास व्यर्थ नहीं गए। यह एक न्यायोचित फैसला है।’’
इस मामले में कुल आठ अलग-अलग मामलों को एक साथ जोड़ा गया।
मुख्यमंत्री एम के स्टालिन और विपक्ष के नेता ईके पलानीस्वामी दोनों ने फैसले का स्वागत किया, लेकिन इस मामले पर दोनों के बीच तकरार भी हुई।
सोशल मीडिया मंच पर एक पोस्ट में स्टालिन ने कहा, ‘‘अन्नाद्रमुक में जिन लोगों ने दोषियों को बचाने की कोशिश की, उन्हें शर्म आनी चाहिए।’’
फैसले की सराहना करते हुए अन्नाद्रमुक ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री और ई. पलानीस्वामी के नेतृत्व वाली सरकार ने पोलाची यौन उत्पीड़न मामले को निष्पक्ष जांच के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया था और आज उचित न्याय मिला है।
अभिनेता एवं टीवीके नेता विजय ने भी फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह फैसला पीड़ितों को सांत्वना देगा, जिन्होंने साहस के साथ मामले का सामना किया और यह सुनिश्चित किया कि अपराधियों को सजा मिले।
विजय ने मांग की कि महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न या हमले के मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए त्वरित अदालतें स्थापित की जानी चाहिए और 90 दिन के भीतर फैसला सुनाया जाना चाहिए।
‘ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमंस एसोसिएशन’ (एआईडीडब्ल्यूए) की राज्य समिति की सदस्य एस. राजलक्ष्मी और मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (माकपा) की पुडुचेरी इकाई के अलावा अन्नाद्रमुक से निष्कासित नेता वी.के शशिकला ने महिला अदालत के फैसले की सराहना की।
भाषा सुरेश नेत्रपाल
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