नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी के प्रकोप के बीच देशभर में पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान रुक गया है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
पोलियो प्रतिरक्षण अभियान सामान्यत: प्रतिवर्ष चार से छह चरण में होता है जिसकी शुरुआत जनवरी से होती है.
दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और हरियाणा जैसे राज्यों में पहला चरण पूरा हो गया है लेकिन अभी तक दूसरा चरण शुरू नहीं हो पाया है. वहीं मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में ही दूसरा चरण शुरू हो पाया है.
कोविड-19 महामारी के कारण यह प्रक्रिया बाधित हुई है लेकिन अप्रैल में ही केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को आदेश जारी कर कहा था कि वो प्रतिरक्षण अभियान को जरूरी सेवाएं मानकर इसे शुरू करें.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की सचिव प्रीति सूदन ने 14 अप्रैल को सभी प्रधान सचिवों, मुख्य सचिवों और प्रशासकों को पत्र लिख गैर-कोविड जरूरी सेवाओं पर ध्यान देने को कहा था.
पत्र के साथ परामर्श नोट के अनुसार, इन सेवाओं में ‘प्रजनन, मातृ, नवजात और बाल स्वास्थ्य, संचारी रोगों की रोकथाम और प्रबंधन, जटिलताओं से बचने के लिए पुरानी बीमारियों के लिए उपचार और आपात स्थिति पर नजर रखने’ के लिए कहा गया था.
इंटरनेशनल पेडियाट्रिक्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक डॉ. नवीन ठाकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह चिंता का विषय है कि प्रतिरक्षण अभियान पूरी तरह से काम नहीं कर रहा है और हमने उचित जगहों पर इस मुद्दे को उठाया है. कोरोना महामारी और इसके सामुदायिक फैलाव के डर से प्रतिरक्षण अभियान बाधित था. इसे फिर से शुरू करने के आदेश मिलने के बावजूद ये पूरी तरह से काम नहीं कर रहा है.’
यूनिसेफ के अनुसार पोलियो से लड़ाई में सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले ठाकर ने कहा, ‘हालांकि इसे प्राथमिकता मान कर शुरू करना चाहिए और सरकार को जोखिम बनाम लाभ का विश्लेषण करना चाहिए. हम एक महामारी की कीमत पर एक और महामारी का जोखिम नहीं उठा सकते हैं.’
उनके अनुसार इस अभियान को शुरू न किए जाने के पीछे जो बुनियादी कारण हैं वो है सामुदायिक कार्यकर्ताओं की कमी, स्वास्थ्य कर्मियों के बीच कोविड का डर, पीपीई की उपलब्धता का मुद्दा और ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम या पंचायत प्रमुखों का महामारी के दौरान उनके आने का विरोध.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 129 देशों के एक अध्ययन के अनुसार, टीकाकरण सेवाओं में व्यवधान से 80 मिलियन शिशुओं को डिप्थीरिया, खसरा और पोलियो जैसी बीमारियां होने का खतरा हो सकता है.
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मार्च में डब्ल्यूएचओ ने सिफारिश की थी कि ‘यदि टीकाकरण सेवाओं को निलंबित किया जाता है, तो यह जल्द से जल्द सबसे ज्यादा जोखिम वाले लोगों को जरूरी कैच-अप टीकाकरण की सिफारिश करता है.’
दिप्रिंट ने वंदना गुरनानी, अतिरिक्त सचिव और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन निदेशक और मनोहर अगनानी, संयुक्त सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को मैसेज और कॉल के माध्यम से टिप्पणी के लिए संपर्क किया लेकिन इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने के समय तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
राज्यों से मिली रिपोर्ट्स
कोविड-19 के सबसे ज्यादा मामलों वाले राज्य महाराष्ट्र ने कर्मचारियों की कमी का हवाला देकर पोलियो अभियान को रोक दिया है.
महाराष्ट्र में निजी क्लिनिक चलाने वाली बाल रोग विशेषज्ञ पल्लवी भट्ट ने कहा, ‘लॉकडाउन के दौरान कोई पल्स पोलिया दिन नहीं था. कर्माचारियों की भी कमी है.’
राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर, इसी बात की पुष्टि की.
पश्चिम बंगाल में इस महीने ये अभियान शुरू हो सकता है. वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘तैयारियां चल रही हैं और हम जल्द हीं अभियान को शुरू करेंगे.’
कोलकाता नगर निगम के स्वास्थ्य प्रभारी, डिप्टी मेयर, अतीन घोष ने कहा, ‘हम इस महीने से कोविड-19 से मुक्त क्षेत्रों में पोलियो ड्राइव शुरू करेंगे.’
इसका मतलब यह होगा कि कोलकाता में मौजूद कंटेनमेंट ज़ोन के बच्चों तक टीकाकरण अभियान की पहुंच नहीं हो पाएगी. वर्तमान में वहां 288 कंटेनमेंट जोन हैं.
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. प्रवीण चोपड़ा ने कहा कि अभियान अभी शुरू होना बाकी है. पोलियो अभियान दिल्ली और हरियाणा में भी नहीं चल रहा है.
मध्य प्रदेश में, इंदौर के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी प्रवीन जाडिया ने भी पुष्टि की कि अभियान में अभी तक तेजी नहीं आई है.
इस बीच, मई के अंत में इंदौर में डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस के साथ-साथ पोलियो की रोकथाम के लिए नियमित टीकाकरण अभियान शुरू हुआ था.
राज्य सरकार ने मार्च में सभी जिला कलेक्टरों और मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को मातृत्व और नवजात स्वास्थ्य के लिए सभी नियमित कार्यक्रमों को फिर से शुरू करने के आदेश जारी किए थे.
इंदौर की एक आशा कार्यकर्ता फिजा फातिमा ने कहा, ‘आदेश जारी किए गए थे, लेकिन वास्तव में, इंदौर में नियमित टीकाकरण पिछले हफ्ते ही शुरू हुआ है. तब भी यह यहां के चुनिंदा इलाकों में चल रहा है.’
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फातिमा के कार्य क्षेत्र में 150 बच्चे आते हैं. वो दावा करती हैं कि इन्हें टीका नहीं लगा है.
उन्होंने कहा, ‘मैंने कुछ दिन पहले कलेक्टर से टीकाकरण शुरू करने के लिए कहा था. उन्होंने बस ये कहा कि वो इस मामले को देखेंगे लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ.’
जाडिया ने कहा कि टीकाकरण अभियान केवल उन 19 क्षेत्रों में शुरू हुआ है जो कंटेनमेंट जोन नहीं है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हम इसे कंटेनमेंट जोन में नहीं कर सकते हैं. जैसे ही कंटेनमेंट जोन खुलेगा हम इसे वहां भी कर सकते हैं.’
अमूल्य निधि, जो देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं का समन्वय करने वाले राष्ट्रीय मंच, जन स्वास्थ्य अभियान का प्रतिनिधित्व करती हैं, ने कहा कि मध्य प्रदेश के गांवों में जल्द ही इस अभियान के शुरू होने की संभावना नहीं है क्योंकि आंगनवाड़ियों (ग्रामीण चाइल्डकेयर केंद्र) बंद हैं.
निधि ने कहा, ‘आंगनवाड़ी कर्मचारियों के पास सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं इसलिए वो कहते हैं कि वो काम नहीं करेंगे और आशा की भी यही स्थिति है. इसिलए अगर आप कोई भी जिले में जाते हैं तो आप देखेंगे कि सभी कार्यक्रम बंद पड़े होंगे.’
राजस्थान स्थित गैर सरकारी संगठन प्रयास के एक सर्वेक्षण के अनुसार, प्रतापगढ़ जिला, जो एक पहाड़ी इलाके के साथ एक आदिवासी बेल्ट है जो इसे काफी दुर्गम बनाता है, वहां के लगभग 250 बच्चे को पोलियो का टीका नहीं लग पाया.
प्रयास की डायरेक्टर छाया पचौली ने कहा, ‘हमने 30 गांवों में रैपिड सर्वे किया, ये पता लगाने के लिए कि मार्च और अप्रैल के महीने में कितने बच्चों को टीका लगा. हमने पाया कि इस दौरान 250 बच्चे टीके से वंचित रह गए.’
राजस्थान में टीकाकरण और प्रसव पूर्व सेवाएं 30 अप्रैल को फिर से शुरू हुईं. पचौली ने कहा, ‘अगर स्वास्थ्य विभाग कैच-अप अच्छी तरह से करता है, तो ये देरी हानिकारक नहीं हो सकती है.’
प्रसव पूर्व सेवाएं भी प्रभावित हुई
स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञों ने कहा कि आंगनवाड़ी केंद्रों में, गर्भवती महिलाओं को उन दिनों में प्रसव पूर्व सुविधाएं भी मिलती हैं, जिस दिन टीकाकरण अभियान होता है. टीकाकरण अस्थायी तौर पर रुकने के बाद गर्भवती महिलाओं के लिए भी मुश्किल हो गई.
पचौली ने कहा, ‘इसमें नए गर्भधारण का पंजीकरण शामिल है, इसमें हीमोग्लोबिन परीक्षण, पेट की जांच जैसे चार से पांच महत्वपूर्ण परीक्षण शामिल हैं. ये जरूरी सेवाएं उनके लिए छूट गईं.’
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निधि के अनुसार मध्य प्रदेश में पिछले कुछ महीनों में इन सेवाओं के न मिलने के कारण कई मातृ मृत्यु दर्ज की गई हैं.
हालांकि, मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के उप निदेशक डॉ. शैलेश सकाले ने कहा कि लॉकडाउन ने आउटरीच सेवाओं के लिए समस्या उत्पन्न नहीं की है क्योंकि आशा कार्यकर्ता अपने वार्ड और गांवों में काम करती हैं और उन्हें अन्यत्र नहीं जाना पड़ता है.
उन्होंने कहा, ‘जब तक हम एचएमआईएस (अस्पताल प्रबंधन सूचना प्रणाली) द्वारा प्रकाशित प्रामाणिक डेटा प्राप्त नहीं करते, तब तक ऐसा अनुमान लगाना ठीक नहीं होगा.’
(कोलकाता से मधुपर्णा दास और मुंबई से हैमा देशपांडे के इनपुट्स के साथ)
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