नयी दिल्ली, सात जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मादक पदार्थ मामले में एक आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि हालांकि तकनीक पुलिस जांच की पारदर्शिता बढ़ाती है और निश्चित रूप से ऐसी सुविधा का उपयोग करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए, लेकिन कुछ मामलों में वीडियो या ऑडियो रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल करना संभव नहीं हो सकता है।
अदालत ने कहा कि स्वतंत्र गवाह और वीडियोग्राफी नहीं होने की स्थिति में अदालत पर साक्ष्य की अधिक सावधानी से जांच करने का अतिरिक्त दायित्व है।
वर्तमान मामले में, स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम (एनडीपीएस) के तहत, बिना किसी वीडियो रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल किये बिना एक वाहन से कुछ प्रतिबंधित सामग्री बरामद की गई।
याचिकाकर्ता के पास कथित तौर पर 10.860 किलोग्राम मादक पदार्थ पाया गया था। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत प्रवेश, तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी से संबंधित प्रावधानों का उल्लंघन हुआ था।
उनके वकील ने दलील दी कि प्रतिबंधित मादक पदार्थ भीड़भाड़ वाले स्थान पर बरामद किया गया था, लेकिन घटनास्थल पर की गई तलाशी और जब्ती की कार्रवाई की वीडियोग्राफी करने के लिए कोई ईमानदार प्रयास नहीं किया गया।
न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा ने पांच जून को जमानत याचिका खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा कि हालांकि, बरामदगी या किसी फोटोग्राफी/वीडियोग्राफी का कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था, लेकिन यह एक ‘‘गंभीर अनियमितता’’ थी और इस स्तर पर रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे यह पता चले कि याचिकाकर्ता दोषी नहीं है।
अदालत ने कहा, ‘‘तकनीक का इस्तेमाल निश्चित रूप से पुलिस जांच की प्रभावशीलता और पारदर्शिता को बढ़ाता है और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है और इसलिए जांच एजेंसी द्वारा जांच में सहायता के लिए तकनीकी साधनों का उपयोग करने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। हालांकि, ऐसी परिस्थितियां हो सकती हैं जहां ऑडियो/वीडियो रिकॉर्डिंग संभव न हो, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ है।’’
इसने कहा कि वर्तमान मामले में सूचना थी कि एक वाहन में प्रतिबंधित सामग्री राजस्थान के अलवर से पंजाबी बाग होते हुए दिल्ली के आजादपुर ले जाई जा रही है और जिस समय याचिकाकर्ता और उसके सह-आरोपी को पकड़ा गया, वे प्रतिबंधित सामग्री को कार से मोटरसाइकिल में स्थानांतरित कर रहे थे।
अदालत ने कहा कि अगस्त 2023 से याचिकाकर्ता की हिरासत की अवधि या मुकदमा शुरू होना, अपने आप में एनडीपीएस अधिनियम के तहत याचिकाकर्ता को राहत देने के लिए ठोस आधार नहीं हैं।
भाषा देवेंद्र पवनेश
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