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Friday, 14 June, 2024
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देश के ‘हीरो साहब’ हैं UP के पुलिस अधिकारी, भोजपुरी के बाद तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री को भी उनकी तलाश

आनंद ओझा भोजपुरी फिल्मों में एक्टिंग करने के लिए अपनी पुलिस की नौकरी से हर साल कुछ दिनों की छुट्टी लेते हैं. रण और माही जैसी उनकी फिल्में जल्द ही अमेज़न प्राइम और नेटफ्लिक्स पर दिखाई दे सकती हैं.

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आगरा: ताजमहल के शहर में झमाझम बारिश के बीच आनंद कुमार ओझा का फोन लगातार बज रहा है. उनकी ड्यूटी एक व्यस्त बाजार में लगी है जहां उन्हें ट्रैफिक जाम को हटाना है और फिर लंबित मामलों पर चर्चा करने के लिए पुलिस अधीक्षक से भी मिलना है. सलीके से प्रेस की गई खाकी वर्दी और बेदाग भूरे रंग के चमड़े के जूते पहने ट्रैफिक पुलिस इंस्पेक्टर ओझा, ड्यूटी के लिए तैयार हैं. लेकिन कुछ और भी है जिसे वह मिस नहीं करते, वो है उनके फिल्म निर्देशकों की आने वाली फोन कॉल्स.

बड़े पर्दे पर आने के अपने बचपन के सपने को पूरा करने के लिए, ओझा भोजपुरी फिल्मों में अभिनय करने के लिए अपनी पुलिस की नौकरी से हर साल कुछ दिनों की छुट्टी लेते हैं. एक दशक में तीन मुख्य किरदार वाली फिल्में करने के बाद ओझा काफी व्यस्त हो गए हैं. इस साल उनकी तीन और फिल्में रिलीज होने वाली हैं. भोजपुरी फिल्मों में उनके साथ काम करने वाले निर्देशकों ने अब उन्हें हिंदी और तेलुगू सिनेमा में भी मौका देना शुरू कर दिया है.

निर्देशक धीरज कुमार कहते हैं, ‘सिनेमा आनंद का पहला प्यार है.’ उन्होंने ओझा को ‘सबसे बड़ा मुजरिम’ (2013) नामक एक भोजपुरी फिल्म में अपना पहला ब्रेक दिया था. इसमें वह मुख्य अभिनेता राहुल रॉय के छोटे भाई के किरदार में नजर आए थे. तनाव से भरी ट्रैफिक पुलिस की अपनी नौकरी में आमतौर पर शांत और संयत रहने वाले ओझा ने एक गुस्से वाले युवक की भूमिका निभाई थी, जो अपनी मां के बलात्कार का बदला लेने के लिए अपने ही पिता को मार देता है. कुंभ निवास (2022) फिल्म में उन्हें एक भूत से प्यार हो जाता है. सजे-धजे ओझा फिल्म में गाते- नाचते और भूत के घर को तोड़ने वाले भू-माफियाओं की वह अकेले ही पिटाई करते नजर आते है. 2022 में आई फिल्म रण में, वह एक सैनिक बने हैं जो अपने प्रेमिका के हत्यारों से बदला लेता है. ओझा के सहयोगी का मानना है कि उनका ऑन-स्क्रीन गुस्सा और नफरत उनके आकर्षक व्यक्तित्व के बिल्कुल उलट है.

वह अब भोजपुरी फिल्मों से परे बड़े सितारों के साथ सिनेमाघरों में डेब्यू करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.

कुमार ने कहा, ‘मैं उन्हें अपनी अगली बड़ी फिल्म में लॉन्च करूंगा. एक हिंदी वेब सीरीज के लिए एक बड़े ओटीटी प्लेटफॉर्म के साथ भी बातचीत चल रही है. ओझा भी इसका हिस्सा होंगे. उन्हें आप एक पॉजिटिव भूमिका में देखेंगे.’ फिल्म की घोषणा इसी महीने और वेब सीरीज की घोषणा एक महीने बाद की जाएगी.

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ओझा पर कास्टिंग डायरेक्टर और सेलिब्रिटी मैनेजर मिथिलेश तिवारी की भी नजर पड़ी, जो उन्हें टॉलीवुड लेकर जा रहे हैं. तिवारी बताते हैं, ‘इसके लिए एक जाने-माने प्रोडक्शन हाउस के साथ बातचीत चल रही है. वह 15 से 20 फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं. टॉप के 20 तेलुगू अभिनेता उनके बैनर तले काम कर चुके हैं. फिलहाल इस समय मैं इससे ज्यादा कुछ भी खुलासा नहीं कर सकता हूं.’

2019 में ओझा की आगरा में पोस्टिंग की गई थी. वह एक सख्त पुलिस वाले और एक अभिनेता के रूप में जोशीले गीतों पर थिरकने, अपने सह-कलाकारों के साथ रोमांस करने और खलनायक से लड़ने के बीच अपनी भूमिका बदलते रहते हैं.

ओझा का कहना है कि उनकी नई फिल्म ‘रण’ एक बेहतरीन तरीके से तैयार की गई फिल्म है. इसके एक्शन सीन, स्पेशल इफेक्ट्स और करेक्टर के हिसाब से स्पेशलाइज्ड मेकअप भोजपुरी सिनेमा की धारणा को बदलने के लिए ट्रैक पर है. ‘रण’ की सफलता से ओझा भी दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींच पाएंगे.

लेकिन भूरी आंखों और भरे-पूरे शरीर वाले 45 साल के ओझा ने अपनी रफ्तार धीमी बनाए रखी है. हालांकि उनका कैलेंडर अभी भरा हुआ है, लेकिन उनके लिए काम करना आसान नहीं है. एक पुलिस वाले के रूप में उनकी नौकरी उन्हें साल में सिर्फ 2 महीने शूट करने की अनुमति देती है. बस यही वो समय होता है जब वह भोजपुरी फिल्मों में अपने एक्टिंग करने के सपने को पूरा कर पाते हैं.

ओझा आगरा में अपने टूटे-फूटे सरकारी बंगले में अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ‘जब मेरे लिए कुछ भी काम नहीं कर रहा था, उस समय यह नौकरी एक तारणहार के रूप में आई थी. मैं इसे नहीं छोड़ सकता. भोजपुरी फिल्मों से मेरा खास लगाव रहा है. अगर मैंने कमिटमेंट किया है, तो मैं उससे पीछे नहीं हटूंगा.’

ओझा ने इस साल चार से पांच बड़ी भोजपुरी फिल्में साइन की हैं. ऐसे में बॉलीवुड और टॉलीवुड को उनके लिए अगले साल तक इंतजार करना होगा.


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संघर्ष के वो दिन

बिहार के आरा के डोघेरा गांव में एक किसान परिवार में जन्मे ओझा और उनके दोस्त किसी तरह से रोजाना 25 से 50 पैसे बचाकर एक रुपया जोड़ा करते थे. और फिर एक्शन, ड्रामा और रोमांस की दुनिया में चले जाते जिसका टिकट एक रुपया था. एक छोटे से कमरे में एक वीसीआर पर वह इन पैसों से अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, रजनीकांत, मिथुन चक्रवर्ती, ऋषि कपूर और राजेश खन्ना की रोमांटिक और मार-धाड़ वाली फिल्मों को अपने परिवार के साथ बैठकर मजे से देखते.

एक ‘हीरो’ की यह छवि ओझा के मन में तब बस गई जब वह सिर्फ 10 साल के थे.

ओझा कहते हैं, ‘मैं हमेशा चाहता था कि लोग मुझे एक अच्छे इंसान के तौर पर देखें और मुझे लगा कि हीरो बनना ही इसे हासिल करने का एकमात्र तरीका है. यह मुझे अपने लिए एकदम सही पेशा लगा.’

वह दो बार मुंबई भाग कर गए थे. पहली बार एक दोस्त के साथ, जब वह मिडिल स्कूल में पढ़ते थे. उस समय उनकी जेब में सिर्फ सात रुपये थे. दूसरी बार, ओझा 11वीं की पढ़ाई बीच में छोड़कर मुंबई गए थे. पूरे फिल्मी अंदाज में अपने माता-पिता को एक पत्र लिखा कि वह कुछ हासिल करके ही वापस लौट कर आएंगे.

ओझा जानते थे कि उनके पिता भगवान उन्हें कभी भी मुंबई भेजने के लिए राजी नहीं होंगे. उनका पूरा जोर बच्चों की पढ़ाई पर रहता था.

ओझा ने बताया, ‘मैंने मायापुरी पत्रिका (उन दिनों एक बॉलीवुड पत्रिका) में पढ़ा था कि रजनीकांत एक बस कंडक्टर थे. फिर भी एक सुपरस्टार बन गए. मुझे यकीन हो चला था कि एक अभिनेता बनने के लिए पढ़ाई जरूरी नहीं है.’

ओझा के ‘लिए राह आसान नहीं थी. मुंबई में रहते हुए, उन्होंने एक निर्माणाधीन इमारत के बाहर एक सुरक्षा गार्ड के रूप में 800 रुपये प्रति माह की नौकरी की. दिन में वह स्टूडियो जाते और रात में गार्ड की नौकरी. चार महीनों तक अपने सपने को पूरा करने के लिए जब उनके हाथ कुछ नहीं लगा तो वह थक गए और गहरी निराशा ने उन्हें जकड़ लिया. वह अपने पिता के पास अपने गांव लौट आए. स्कूल पूरा किया और यूपी पुलिस में भर्ती के लिए निकली वैकेंसी के लिए आवेदन किया.

लेकिन आज जब आगरा में हीरा टॉकीज में ‘रण’ की ओपनिंग के समय, प्रशंसक उनके चारों ओर एक सेल्फी के लिए घूम रहे हैं और उनकी गर्दन गेंदे की माला से ढकी हुई है तो काली शर्ट और गहरे धूप के चश्मे में ओझा की मुस्कराहट थमने का नाम नहीं ले रही थी.

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि अगर आप वास्तव में कुछ चाहते हैं, तो चीजें आपके लिए काम करती हैं.’

पुलिस ट्रेनिंग के दिनों के उनके बैचमेट्स को लगता है कि भाग्य के साथ-साथ, ओझा के लगातार समर्पण ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है.

आगरा में तैनात यातायात पुलिस के उपनिरीक्षक आशुतोष कुमार सिंह कहते हैं, ‘पुलिस ट्रेनिंग एकेडमी में, जहां हम सभी क्लास के बाद अपना समय बर्बाद करते थे, वहीं ओझा डांस क्लास में भाग लेते थे.’

ओझा तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सुरक्षा घेरे का एक हिस्सा थे. उनके सहयोगी उन्हें ‘हीरो साहब’ कहकर बुलाते थे. वह सुबह 6 बजे जिम जाते और 2 घंटे बाद ड्यूटी पर रिपोर्ट करते. शाम को फ्री होने के बाद वह फिर से मार्शल आर्ट और डांस के लिए निकल जाते.

ओझा को सीएम के साथ फिर मुंबई जाने का मौका मिला. तभी उनकी मुलाकात भोजपुरी फिल्म निर्देशक निर्मल पांडे से हुई. उन्होंने ओझा को एक भूमिका ऑफर की. लेकिन भाग्य ने यहां उनका साथ फिर से छोड़ दिया. फिल्म एक फायनेंसियल विवाद में फंस गई और यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया. ऐसा ही कुछ उनकी दूसरी फिल्म के साथ भी हुआ. उनकी यह फिल्म अभिनेता रवि किशन के साथ थी. उन्हें सेट पर बुलाया गया और ओझा ने एक होटल के कमरे में 10 दिन भी बिताए, लेकिन उन्हें फिल्म से हटा दिया गया. इसके बाद तो वह पूरी तरह टूट गए.

हालांकि, वह उस समय बड़े पर्दे पर नहीं आ पाए थे, लेकिन उन्होंने लोगों पर एक बड़ी छाप छोड़ी थी. अब यह बॉलीवुड और टॉलीवुड के मौजूदा ऑफर्स में साफ नजर आ रहा है.

बचपन के सपने

असफलताओं के बावजूद ओझा का हीरो बनने का संकल्प कभी कम नहीं हुआ. गांव की शादियां, उनके लिए अपने डांस मूव्स दिखाने का मौका था. अपने माता-पिता को बताए बिना उन्होंने ट्रायल म्यूजिक क्लासेज में दाखिला ले लिया था. उनके चाचा शहर से मायापुरी पत्रिका लेकर आते थे. उनका बचपन इसी पत्रिका को पढ़ते हुए बीता. बॉलीवुड सितारों के जीवन के बारे में पढ़ते हुए कब घंटों बीत जाते उन्हें पता ही नहीं चलता था.

ओझा के मुताबिक, ‘मुझे पत्रिकाओं से पता चला कि सभी नायक बॉम्बे में रहते हैं. मुझे नहीं पता था कि बॉम्बे कहां है या वहां कैसे पहुंचना है. बस मुझे ये पता था कि मुझे वहां रहना है.’

उन्होंने अपने 10 से 12 दोस्तों के साथ फिल्म स्टार बनने के अपने सपने को साझा किया. उन्हें मुंबई भेजने के लिए सभी ने उसका साथ देने का फैसला किया.

अशोक उनके बचपन के दोस्त हैं. ओझा के साथ पहली बार मुंबई भागकर जाने वालों में वही उनके साथ थे. लेकिन भूख लगने पर दोनों दोस्त बीच रास्ते में ही लौट आए. वह बताते हैं, ‘उन दिनों शायद ही कोई पॉकेट मनी मिला करती थी. इसलिए, हमने अपने खेतों से आम चुराए और पैसे इकट्ठा करने के लिए उन्हें बाजारों में बेच दिया.’

600 रुपये का इंतजाम किया और गांव के एकमात्र ठीक-ठाक दिखने वाली जगह मंदिर के बाहर फोटो खिंचवाने के बाद उन सबने मिलकर उसे उसके सपनों के शहर भेज दिया.

अशोक ने बताया, ‘वह हर समय गाने गुनगुनाते रहते थे. हम खेतों में जाते और आनंद गायक कुमार शानू की नकल करते. ऐसे समय में जब मोबाइल फोन या इंटरनेट नहीं थे, वह हमारा मनोरंजन करते थे.’

ओझा भारतीय नाट्य परिषद में घूमते रहते. ये एक थिएटर ग्रुप था जो फिलहाल बंद हो चुका है. यहां भारत भर से टीमें प्रदर्शन करने के लिए आतीं. वह उनके नाटक देखते, उन्हें चाय परोसते, मंच तैयार करते और पर्दे के पीछे के ओर भी बहुत से काम करते. लेकिन उनका हीरो बनने का सपना अभी भी जिंदा था.


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नई ऊंचाइयों को छूना

ओझा ने अपनी आने वाली भोजपुरी फिल्म माही का पोस्टर दिखाने के लिए अपना फोन निकाला. यह उनकी अब तक की सबसे बड़ी फिल्म है, जिसे हिंदी में भी डब किया जाएगा. एक अवतार जैसी आकृति में, तन के खड़ा हुआ हीरो जिसके पीछे से तेज रोशनी चमक बिखेर रही है. उनकी फिल्म का यह पोस्टर सस्पेंस और सुपरहीरो एक्शन से भरपूर किसी भोजपुरी फिल्म जैसा ही कुछ दिखता है.

हीरा टॉकीज से हटाने के बाद आगरा के सिनेमा हॉल ‘रण’ के लिए स्क्रीनिंग अधिकार मिलने का इंतजार कर रहे हैं. फिल्म निर्माता अमेज़न प्राइम के साथ बातचीत कर रहे हैं और माही के निर्माता की नेटफ्लिक्स से बात हो रही है.

ओझा कहते हैं, ‘माही के पास ज्यादा एक्शन है.’ उन्होंने बताया कि पोस्टर में वह जो मास्क पहने दिख रहे हैं उसे लंदन में बनाया गया है.’

ओझा का लाइफ स्टाइल पुलिस में उसके साथियों से अलग नहीं है. वह एक सेवारत पुलिसकर्मी हैं और एक से अधिक स्रोतों से कमाई नहीं कर सकते. वह बताते हैं कि फिल्म के बजट का उनका हिस्सा इसके निर्माण में चला जाता है. इससे कम बजट वाली फिल्मों की गुणवत्ता को आगे बढ़ाने में मदद मिल जाती है.

वे कहते हैं, ‘मैं क्वालिटी सिनेमा बनाने की कोशिश कर रहा हूं ताकि भोजपुरी सिनेमा को वैश्विक स्तर पर ले जा सकूं.’

उनके दोस्त और प्रशंसक उनकी इस बात से सहमत हैं.

सिकंदरा, आगरा के एसएचओ एके शाही उनके बैचमेट रह चुके हैं. उन्होंने कहा, ‘भोजपुरी इंडस्ट्री में औपचारिक प्रशिक्षण वाले कलाकार ज्यादा नहीं हैं. लेकिन अब यह बदल रहा है. ओझा एक ऐसे अभिनेता हैं जो बदलाव की राह पर चल रहे हैं. भोजपुरी फिल्मों में एक्शन भी नदारद था, लेकिन ओझा की फिल्मों में एक्शन भरा रहता है.’

पुलिस सूत्रों का कहना है कि ओझा को जल्द ही पुलिस उपाधीक्षक के रूप में पदोन्नत किया जाएगा.

शाही हंसते हुए कहते हैं, ‘फिल्म इंडस्ट्री में एक बार जब वह अपनी छाप छोड़ देगा, तो राजनीति में चला जाएगा, अधिकांश भोजपुरी अभिनेता यही रास्ता अपनाते हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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