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Friday, 3 May, 2024
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यौन उत्पीड़न मामले में कोर्ट ने दी ज़मानत, कहा- पुलिस रिकॉर्ड से पता चला जांच में सहयोग कर रहे थे संदीप सिंह

बीजेपी विधायक पर पिछले साल हरियाणा के खेल विभाग की एक जूनियर एथलेटिक्स कोच ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि शिकायतकर्ता का बयान दर्ज कर लिया गया है और आरोप पत्र भी दाखिल किया गया है.

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गुरुग्राम: चंडीगढ़ की एक जिला अदालत ने खेल विभाग की एक जूनियर एथलेटिक्स कोच की शिकायत मामले में हरियाणा के मंत्री संदीप सिंह की अग्रिम जमानत याचिका को शुक्रवार को स्वीकार कर लिया. बता दें कि पिछले साल संदीप सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया गया था.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राजीव के. बेरी ने शर्तों के साथ जमानत याचिका की अनुमति देते हुए याचिका के तर्क को बरकरार रखा. कोर्ट ने माना कि सिंह को अब तक चंडीगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया है और उन्हें उनकी गिरफ्तारी की कोई आवश्यकता नहीं है.

न्यायाधीश के आदेश में यह भी कहा गया कि शिकायतकर्ता का यह तर्क कि आरोपी एक विधायक है और वह अदालत की कार्यवाही को प्रभावित कर सकता है, “स्पष्ट रूप से एक मुश्किल कदम लगता है”, क्योंकि अब तक के रिकॉर्ड से पता चलता है कि सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया था. वह पुलिस के सामने खुद उपस्थित हुए थे और मुकदमे का सामना करने के लिए तैयार थे. साथ ही प्रथम दृष्टया स्वयं शिकायतकर्ता के अलावा कथित उत्पीड़न का कोई दूसरा प्रत्यक्षदर्शी भी नहीं था.

कोर्ट का आदेश, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, में यह भी कहा गया है कि शिकायतकर्ता का बयान पहले ही दर्ज किया जा चुका है और मामले में आरोपपत्र पहले ही दायर हो चुका है.

भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान संदीप सिंह हरियाणा के पिहोवा से बीजेपी विधायक हैं और अपने खिलाफ उत्पीड़न की शिकायत के बाद इस साल जनवरी में हरियाणा के खेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, उनके पास मुद्रण और स्टेशनरी विभाग अभी भी है.

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पिछले दिसंबर में हरियाणा खेल विभाग के जूनियर एथलेटिक्स कोच ने चंडीगढ़ के सेक्टर 26 पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज कराई थी. इसमें सिंह द्वारा 1 जुलाई, 2022 को अपने आधिकारिक आवास पर उन पर कथित हमले की बात कहीं गई थी.

FIR में यह भी कहा गया है कि घटना के बाद सिंह उसे धमकी देता रहा और जब उसने उसकी बात नहीं मानी तो उसे पंचकुला से झज्जर ट्रांसफर कर दिया गया.

सिंह ने सभी आरोपों से इनकार किया है और FIR को उनकी छवि खराब करने का प्रयास बताया है.

उन पर IPC की धारा 354 (किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का इस्तेमाल), 354A (यौन उत्पीड़न), 354B (नग्न करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का इस्तेमाल), 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोप लगाए गए हैं.

अपनी जमानत याचिका में सिंह ने कहा कि उन्हें झूठे केस में फंसाया गया था और लगभग छह महीने की देरी के बाद FIR दर्ज की गई थी.

उनकी याचिका में यह भी कहा गया कि शिकायतकर्ता को उनसे खुन्नस थी क्योंकि तुर्की में ट्रेनिंग के लिए उसका आवेदन खेल विभाग ने खारिज कर दिया था.

सिंह की जमानत याचिका में कहा गया है: “कथित झूठे आरोपों की जांच के लिए एसआईटी (विशेष जांच दल) का गठन किया गया था, जिसने आवेदक को CRPC की धारा 41-A (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) के तहत नोटिस जारी किया था, जिसके जवाब में वह 07.01.2023, 10.02.2023, 02.06.2023 और 02.08.2023 को जांच में शामिल हुए. जांच पूरी हो गई है और चालान (चार्जशीट) ट्रायल कोर्ट के सामने पेश किया जा चुका है जिसमें आवेदक को सम्मन का नोटिस जारी किया गया है. उसे कभी गिरफ्तार नहीं किया गया. जांच एजेंसी को कभी उनकी हिरासत की जरूरत नहीं थी और न ही अब है.”


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न्यायालय का रुख

चंडीगढ़ की अदालत को पुलिस की इस दलील में कोई दम नहीं मिला कि सिंह की जमानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि आरोपपत्र पहले ही दाखिल किया जा चुका है और पुलिस ने कभी उसकी हिरासत की मांग नहीं की थी.

अदालत ने बताया कि FIR में कुछ अपराध गैर-जमानती प्रकृति के थे और आवेदक को ट्रायल कोर्ट में पेश होने पर गिरफ्तारी की आशंका थी.

अदालत ने जमानत याचिका की गैर-मौजूदगी के तर्क को खारिज करते हुए तर्क दिया, “पुलिस द्वारा आवेदक की गिरफ्तारी की किसी भी आशंका के अभाव में, उसे स्पष्ट रूप से निचली अदालत द्वारा गिरफ्तारी की आशंका है.”

शिकायतकर्ता द्वारा सिंह के खिलाफ बलात्कार के प्रयास के आरोप के संबंध में अदालत ने कहा कि यह मुकदमे के समय सबूत के अधीन है.

आदेश में कहा गया है, “CRPC की धारा 164 के तहत उसका बयान पहले ही दर्ज किया जा चुका है. इसकी प्रतिलिपि अपर लोक अभियोजक द्वारा फाइल पर प्रस्तुत की गई है जिसके अनुसार मार्च 2022 की कुछ घटनाओं का भी वर्णन किया गया है. FIR में इसका कहीं जिक्र नहीं है. ये सभी आरोप नियमित जांच में सबूत के रूप में हैं,”

शिकायतकर्ता की उसके जीवन और निजता को खतरे की आशंका के संबंध में अदालत ने कहा कि जो भी शर्तों के अनूरूप है उसका ध्यान रखकर इसका समाधान किया जा सकता है.

आदेश में कहा गया है, “उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और मामले की योग्यता पर टिप्पणी किए बिना, इस आवेदन को इस शर्त के साथ अनुमति दी जाती है कि आवेदक आज से 10 दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट/इलाका मजिस्ट्रेट, चंडीगढ़ के समक्ष आत्मसमर्पण करेगा और अपना विवरण देगा.”

इसमें कहा गया है, “वह अदालत शिकायतकर्ता की उसके जीवन और गोपनीयता को खतरे के बारे में कथित आशंका को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त उचित शर्तें लगा सकती है. दिए गए समय में उपरोक्त शर्तों का अनुपालन न करने की स्थिति में, यह आवेदन खारिज कर दिया गया माना जाएगा.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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