रायपुर: जेल में बंद निर्दोष आदिवासियों की रिहाई को लेकर माओवाद ग्रस्त बस्तर में ग्रामीणों और प्रशासन के बीच बड़े टकराव की आहट तेज हो गई है. दंतेवाड़ा में ग्रामीणों की होने वाली बड़ी आमसभा को पुलिस द्वारा विफल किये जाने के प्रयास के बाद अब आदिवासी नेता कह रहें हैं सरकार ने जेल में बंद ग्रामीणों की रिहाई का जल्द निर्णय नहीं लिया तो बड़ा आंदोलन होगा.
आदिवासी नेताओं का कहना है कि निर्दोष ग्रामीणों की रिहाई के लिए रविवार को दंतेवाड़ा में होनेवाली रैली में तीन जिलों से करीब 7-8 हजार आदिवासी इकठ्ठा होने वाले थे. पुलिस को इस बात की भनक लग गई जिसके कारण उन्होंने ने इसे बल पूर्वक विफल करने का प्रयास किया.
इन नेताओं के अनुसार 150-200 किलोमीटर पैदल चलकर दंतेवाड़ा आ रहे कई ग्रामीणों को पुलिस ने एक रात पहले ही रास्ते से उठा लिया और वापस भेज दिया.
दिप्रिंट से बात करते हुए ग्रामीणों का नेतृत्व कर रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री और बस्तर के आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने बताया कि पुलिस ने निर्दोष आदिवासियों के साथ बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया और कुछ को गिरफ्तार भी कर लिया है. उनकी रिहाई जल्द होनी चाहिए.
नेताम का कहना है, ‘राज्य सरकार ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासियों के साथ जो वादा किया था उसे निभाने में विफल रही है.
उन्होंने कहा, ‘सैकड़ों युवा जो अपने परिवारों की रोजी रोटी कमाने का एक मात्र जरिया थे पिछले 4-5 सालों से जेल में बंद हैं. हमारी पार्टी ने चुनाव से पहले इनकी रिहाई के लिए वादा किया था लेकिन पिछले करीब दो सालों से कुछ नही किया. सरकार का वादा इनके लिए विश्वास बन गया था लेकिन अब आदिवासियों का सब्र जवाब दे रहा है. इसलिये वे अब सड़क पर आ रहें हैं. लगता है हमारी पार्टी ने जो वादा किया उसपर अपना होमवर्क ठीक से नही किया.’
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‘फ्रंटलाइन डिफेंडर’ संस्था के स्थानीय कार्यकर्ता और दंतेवाड़ा के ग्रामीण लिंगाराम कोडोपी ने बताया, ‘सरकार और पुलिस से आने वाले दिनों में बड़ा टकराव तय है. सरकार अपने वादे से पीछे हट रही है और निर्दोषों को जेल से अभी तक नही छोड़ा गया है. कई आदिवासी युवकों को नक्सली बताकर पिछले 3-4 सालों से कैद कर रखा है और उनके परिवार में कमाने वाला कोई नही है. आदिवासी मजबूर हो गए हैं सड़क पर आने के लिए.’
ग्रामीणों और पुलिस के बीच तनाव का कारण
अपने परिजनों की रिहाई को लेकर स्थानीय संस्था ‘जेल बन्दी रिहाई मंच’ के बैनर तले रविवार को मंच की उपाध्यक्ष सोनी सोरी और अरविंद नेताम के नेतृत्व में ग्रामीणों की एक रैली रखी गई थी. इस रैली में भाग लेने के लिए ग्रामीण आदिवसी और जेल में बंद पीड़ितों के परिजन तीन जिले, दंतेवाड़ा, बीजापुर, और सुकमा से बड़ी संख्या में भाग लेने दंतेवाड़ा पहुंच रहे थे.
मंच के सदस्य और ग्रामीणों ने दिप्रिंट को बताया कि पहले डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड (डीआरजी) के जवानों ने रात में ही दंतेवाड़ा से करीब 23 किलोमीटर दूर ग्रामीणों को रोका और डरा धमकाकर कई लोगों को वापस भेज दिया. आरोप है की पुलिस ने रात में ही नौ लोगों को नक्सली बताकर गिरफ्तार कर लिया. इस आरोप को पुलिस ने सीधे नकारते हुए सभी 9 व्यक्तियों को नक्सली माना है.
दूसरे दिन भी रैली के लिए अन्य जिलों से आनेवाले ग्रामीणों को डीआरजी के जवानों ने श्यामगिरी के पास बल पूर्वक वापस भेजने का प्रयास किया और करीब 15 लोगों को गिरफ्तार किया.
हालांकि, बाद में नेताम और सोरी के बीच बचाव के बाद कण 15 लोगों को छोड़ दिया लेकिन 9 अभी भी पुलिस कस्टडी में हैं. मंच के सदस्य लिंगाराम कहते हैं, ‘ग्रामीण दंतेवाड़ा जेल तक शांतिपूर्ण रैली और मार्च कर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपना चाहते थे लेकिन शनिवार रात और रविवार की सुबह डीआरजी के लोगों ने उन्हें बेरहमी से दौड़ाकर पीटा. दुधमुहे बच्चों को लेकर चल रही महिलाओं को भी पीटा गया. पुलिस के डर से कई ग्रामीण जंगल में भाग गए थे जो रविवार की दोपहर अरविंद नेताम और सोनी सोरी के आने के बाद ही बाहर निकल पाए.”
बीजापुर के गंगलूर थाना क्षेत्र के 20 वर्षीय लक्ष्मण हेमला ने बताया, ‘हमें नहीं मालूम पुलिस ने गिरफ्तार क्यों किया. हम तो दंतेवाड़ा रैली में जा रहे थे. मेरे क्षेत्र के कुछ लोग बे वजह जेल में हैं. हम उनकी रिहाई के लिए गए थे लेकिन पुलिस ने नक्सली बताकर पहले गिरफ्तार किया बाद में नेताओं के कहने पर छोड़ दिया.’
बीजापुर के ही 25-वर्षीय हुर्रा कुंजाम जो 15 गिरफ्तार ग्रामीणों में शामिल थे ने बताया, ‘पुलिस ने हमें दौड़ाकर पीटा और फिर गिरफ़्तार करके कुआकोंडा थाना लेकर गए. हमको नक्सली कह रहे थे लेकिन बाद में छोड़ दिया.’
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पुलिस ने खारिज किया आरोप
दिप्रिंट द्वारा ग्रामीणों की पिटाई के संबंध में पूछे जाने पर बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने बताया, ‘कोरोना महामारी की वर्तमान स्थिति को देखते हुए आयोजक को रैली न करने की प्रशासन द्वारा समझाईश दी गई थी. इसके बावजूद भी 13 सितंबर को दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा के कुछ ग्रामीण आयोजक द्वारा प्रचारित उक्त रैली में शामिल होने आ रहे थे जिन्हें कोरोना संक्रमण रोकथाम के प्रोटोकाल के अनुसार वापस भेजा गया था.’
आईजी ने कहा ,’ग्रामीणों के ऊपर बल प्रयोग की खबर झूठी और निराधार है. कोरोना संक्रमण के दौर में दिग्भ्रमित करके उनके स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्यवाही की जाएगी.
दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव ने बताया, ’12 सितंबर को गिरफ्तार किए गए नौ लोग नक्सली थे जो पुलिस को देखकर भाग रहे थे लेकिन डीआरजी जवानों द्वारा पकड़ लिए गए. ये फ्रंटल संगठनों के सदस्य थे जिनके कब्जे से नक्सली प्रचार प्रसार की सामग्री बरामद की गई हैं.’
पल्लव का कहना है, ‘आरोप पुलिस पर लगाया जा रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि 13 सितंबर की जनसभा के बाद कुछ नक्सलियों ने ग्रामीणों के वेश में डीआरजी जवानों के पांच परिवार वालों सहित 26 अन्य ग्रामीणों की बेरहमी से पिटाई कर भाग गए थे.’
‘अब होगी आर-पार की लड़ाई’
जेल बंदी रिहाई मंच की उपाध्यक्ष सोनी सोरी दिप्रिंट को बताया, ‘लोगों का सब्र जवाब दे रहा है. अब सरकार के खिलाफ आर-पार कि लड़ाई होगी.
सोरी ने दिप्रिंट से हुई बातचीत में कहा कि विधानसभा चुनाव 2018 के बाद एक बैठक में, कांग्रेस पार्टी के चुनावी वादे को याद दिलाने पर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वादा किया था कि नक्सली बताकर झूठे मुकदमों में फंसाए गए निर्दोष आदिवासियों को रिहा किया जाएगा. इस बात के साक्षी कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा भी हैं, लेकिन करीब दो साल के बाद भी उन्होंने अपना वादा नहीं निभाया. परेशान होकर लोग 13 सितंबर को अपना गुस्सा दिखाने के लिए दंतेवाड़ा में एक शांतिपूर्ण जनसभा करना चाहते थे लेकिन डीआरजी के जवानों ने उन्हें बेरहमी से पीटा, गिरफ्तार किया और बहुतों को वापस भगा दिया. सोरी कहतीं हैं,’जिन लोगों को पीटा गया उनकी गलती क्या थी. कब तक लोग पुलिस की बर्बरता का शिकार होते रहेंगे. उनकी दुर्दशा पर सरकार को तरस भी नहीं आ रहा है. यदि सरकार ने बेकसूरों को जेल से जल्द रिहा नहीं किया तो लोग इससे बड़ी तादात में सड़क पर उतरेंगे.’
मार्च 2019 में बघेल सरकार ने नक्सली होने के आरोपी में जेल में बंद आदिवासियों की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस ए के पटनायक के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की. बाद में सरकार ने इस समिति के मैंडेट में गैर आदिवासियों और दूसरे फर्जी केसों के मामलों को भी शामिल कर लिया था.
समिति ने दिसंबर 2019 में करीब 300 आदिवासियों की रिहाई के लिए अनुशंसा की जिसको सरकार ने मान लिया और 2020 में इनकी रिहाई भी हो गई. लेकिन सोरी और अन्य आदिवासी नेताओं का आरोप है कि इनमें से एक भी ऐसा बंदी नहीं था जो नक्सली होने के फर्जी आरोप में रिहा हुआ है. सोरी के अनुसार सरकार का यह निर्णय उनकी मांग के अनुरूप नही था जिसके कारण बस्तर की आदिवासी जनता उद्वेलित है.
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