प्रयागराज, आठ मई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जमानत की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि 18 वर्ष की आयु से नीचे के बच्चों की यौन शोषण से रक्षा करने के लिए बनाया गया पॉक्सो कानून अब इन बच्चों के उत्पीड़न का हथियार बन गया है।
अदालत ने कहा कि इस कानून का अर्थ कभी भी किशोरों के बीच परस्पर सहमति से बने यौन संबंधों को आपराधिक बनाना नहीं था। न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने कहा कि जमानत देते समय प्रेम के कारण सहमति से बने रिश्ते पर विचार किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि यदि पीड़िता के बयान को नजरअंदाज किया जाता है और आरोपी को जेल में पड़े रहने दिया जाता है तो यह न्याय की विकृति के समान होगा।
अदालत ने 18 वर्ष के एक किशोर को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। इस किशोर के खिलाफ 16 वर्षीय एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म के आरोप में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
आरोपी राज सोनकर को इस वर्ष मार्च में गिरफ्तार किया गया था। उसके वकील ने दलील दी कि यह सहमति से बने रिश्ते का मामला है और घटना की कोई चिकित्सीय पुष्टि नहीं हुई है। साथ ही याचिकाकर्ता का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और यदि उसे जमानत पर रिहा किया जाता है तो वह जमानत का कोई दुरुपयोग नहीं करेगा।
इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों, रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्य और प्राथमिकी दर्ज करने में हुए 15 दिनों के अनुचित विलंब को ध्यान में रखते हुए अदालत ने 29 अप्रैल को दिए अपने निर्णय में आरोपी किशोर को जमानत दे दी।
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राजेंद्र, रवि कांत
रवि कांत
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