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Sunday, 5 May, 2024
होमदेशपीएमओ में पी.के. मिश्रा के कमान संभालते ही मोदी सरकार में गुजरात और ओडिशा कैडर का वर्चस्व बढ़ा

पीएमओ में पी.के. मिश्रा के कमान संभालते ही मोदी सरकार में गुजरात और ओडिशा कैडर का वर्चस्व बढ़ा

अगस्त 2019 में नृपेंद्र मिश्रा के इस्तीफा देने के बाद से प्रधानमंत्री मोदी के प्रधान सचिव की जिम्मेदारी निभा रहे पी.के. मिश्रा ने कई बदलाव किए हैं. सरकार में कई शीर्ष अधिकारियों की नियुक्तियों में उनकी छाप साफ नजर आ रही है.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद एक अप्रत्याशित फैसला किया था और यह था प्रधानमंत्री के करीबी तीन अधिकारियों—तत्कालीन प्रधान सचिव नृपेन्द्र मिश्रा, अतिरिक्त प्रधान सचिव पी.के. मिश्र, और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल—को कैबिनेट रैंक का दर्जा दिया जाना.

सरकार ने मोदी के सबसे भरोसेमंद आईएएस अधिकारियों में से एक पी.के. सिन्हा को समायोजित करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में एक नया पद—प्रधानमंत्री के प्रधान सलाहकार—भी सृजित किया. हालांकि, सबसे लंबे समय तक कैबिनेट सचिव बने रहने के लिए तीन बार सेवा विस्तार पाने वाले सिन्हा को कैबिनेट रैंक नहीं मिली.

2021 की बात करें तो इन चार अधिकारियों में से दो ने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए पीएमओ छोड़ दिया है, नृपेंद्र मिश्रा ने 2019 में और सिन्हा ने इस महीने के शुरू में.

राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में जहां डोभाल की शक्तियां और प्रभाव बरकरार है, वहीं, अब प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव बन चुके पी.के. मिश्रा पीएमओ के हर मामले में मुख्य पावर सेंटर बनकर उभरे हैं. उनका बढ़ता वर्चस्व सरकार में उनके गृह कैडर गुजरात और गृह राज्य ओडिशा के शीर्ष अधिकारियों की भर्ती से साफ नजर आता है.

मोदी सरकार के दूसरे कार्यालय के शुरुआती कुछ महीने छोड़ दें तो बाकी पूरे समय पी.के. मिश्रा ही प्रधानमंत्री मोदी के प्रधान सचिव रहे हैं और इस दौरान उन्होंने पीएमओ के अंदर कुछ नियुक्तियों, कुछ फेरबदल और अधिकार संबंधी ढांचे में कुछ बदलाव किए हैं.

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दिप्रिंट ने प्रतिक्रिया के लिए फोन कॉल और व्हाट्सएप मैसेज के जरिये पीएमओ के प्रवक्ता और कॉल और ईमेल के जरिये पी.के. मिश्रा के कार्यालय से संपर्क साधा, लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने तक कोई जवाब नहीं मिला.


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गुजरात और ओडिशा कैडर के अधिकारी शीर्ष पदों पर

जैसा दिप्रिंट ने पिछले वर्ष प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया था कि 2014 के बाद से केंद्र में कई शीर्ष पदों पर गुजरात कैडर के अफसरों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में यह ट्रेंड और मजबूत ही हुआ है. नौकरशाही हलकों में माना जाता है कि यूपी कैडर के अधिकारी रहे नृपेंद्र मिश्रा के हटने के बाद से सारी ताकत गुजरात कैडर के अधिकारी पी.के. मिश्रा के हाथों में आ गई है.

कुछ उदाहरणों पर गौर करें, गुरुप्रसाद महापात्रा, सचिव, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी); रक्षा उत्पादन सचिव राज कुमार; पर्यावरण सचिव आर.पी. गुप्ता; रसायन एवं उर्वरक सचिव एस. अपर्णा; बी.बी. स्वैन, विशेष सचिव, वाणिज्य; स्कूल शिक्षा सचिव अनीता कारवाल; और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) में एस्टैबलिशमेंट अधिकारी, श्रीनिवास कटिकिथला आदि. भारत सरकार के शीर्ष पदों पर तैनात ये सभी सचिव स्तर के अधिकारी गुजरात कैडर के हैं.

यह ट्रेंड केवल सचिवों तक ही सीमित नहीं है—ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी, पीएम के निजी सचिव और पीएमओ में निदेशक, गृह मंत्रालय और आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) में निदेशक स्तर के अधिकारी, और विदेश जैसे शीर्ष मंत्रालयों में निजी सचिव जैसे कई प्रमुख पदों पर भी गुजरात कैडर के अधिकारी ही काबिज हैं.

हालांकि, सरकार के अंदरूनी सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि अब शीर्ष पदों पर बड़ी संख्या में ओडिशा कैडर के अधिकारियों का काबिज होना पी.के. मिश्रा का दबदबा बढ़ने का स्पष्ट संकेत हैं.

यहां तक कि सचिव स्तर के गुजरात कैडर के अधिकारियों में भी कम से कम दो—महापात्रा और स्वैन—ओडिशा से ही ताल्लुक रखते हैं. इसके अलावा, पिछले डेढ़ साल में नियुक्त कपड़ा सचिव, कॉर्पोरेट मामलों के सचिव और निवेश विभाग और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग के सचिव आदि सभी ओडिशा कैडर के अधिकारी हैं.

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कमान के साथ-साथ कानून मामले, स्वास्थ्य, रक्षा, नागरिक उड्डयन, खाद्य और सार्वजनिक वितरण आदि मंत्रालयों में भी अतिरिक्त और संयुक्त सचिव जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर ओडिशा कैडर के अधिकारियों का ही कब्जा है.

अपना नाम न छापने की शर्त पर केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज देश में सबसे शक्तिशाली नौकरशाह कौन है…(पीके मिश्रा) पिछले कुछ सालों में इस पद का दबदबा खासा बढ़ गया है लेकिन हाल में कुछ नियुक्तियों, ट्रांसफर आदि के संदर्भ में नौकरशाही में हुए कुछ बदलावों ने इसे और स्पष्ट कर दिया है.’

अधिकारी ने कहा, ‘मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी तमाम अधिकार पीएमओ में केंद्रित थे लेकिन पीएमओ के भीतर कम से कम दो पावर सेंटर थे—नृपेंद्र मिश्रा और पी.के. मिश्रा. दोनों के अधिकारों के बीच एक स्पष्ट रेखा थी, जिसके तहत नृपेंद्र मिश्रा नीतियों से जुड़े मामले देखते थे और पी.के. मिश्रा नियुक्तियों संबंधी जिम्मेदारी संभाल रहे थे.’

अधिकारी ने कहा, ‘भले ही नृपेंद्र मिश्रा ज्यादा वरिष्ठ अधिकारी थे, न केवल पदनाम के संदर्भ में बल्कि जो जिम्मेदारी वो संभाल रहे थे, वह काफी हद तक वाजपेयी के समय ब्रजेश मिश्रा वाली स्थिति में थे. लेकिन सरकार के लिए सत्ता की सबसे महत्वपूर्ण चाबी मानी जाने वाली नियुक्तियों की जिम्मेदारी खास तौर पर पी.की. मिश्रा को मिली हुई थी. दोनों ही सीधे तौर पर प्रधानमंत्री के संपर्क में रहते थे.’

हालांकि, पीएमओ से नृपेंद्र मिश्रा के हटने के बाद कार्य विभाजन पर तस्वीर कुछ हद तक अस्पष्ट हो गई जिसमें प्रधान सलाहकार सिन्हा (जो नृपेंद्र मिश्रा वाले यूपी कैडर से ही आते थे) को पी.के. मिश्रा को रिपोर्ट करना पड़ रहा था और केवल वही कार्य उनके जिम्मे थे जो स्पष्ट तौर पर मिश्रा को आवंटित नहीं किए गए थे.

एक दूसरे अधिकारी ने बताया, ‘नृपेंद्र मिश्रा के पीएमओ से बाहर होने के बाद बस पी.के. मिश्रा ही बचे थे जिनसे प्रधानमंत्री की सीधी बात होती थी. पी.के. सिन्हा वह जगह हासिल नहीं कर पाए. पिछले एक साल में आप जो देख रहे हैं, वह ये कि सारी ताकत पी.के. मिश्रा के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गई है.’

पीएमओ में बदलाव

सरकार से हटने वालों में एक और हाई प्रोफाइल अधिकारी ए.के शर्मा का नाम होना भी काफी चौंकाने वाला है. मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान ही उनके काफी करीबी सहयोगी रहे शर्मा 2014 से ही पीएमओ का हिस्सा थे लेकिन इस साल जनवरी में वह बाहर हो गए.

ऊपर उद्धृत दो अधिकारियों में से दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘ए.के. शर्मा प्रधानमंत्री के सबसे करीबी अधिकारियों में से एक रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘उन्हें पहले पीएमओ से हटाया गया और एमएसएमई मामलों का सचिव बनाया गया, जो इस तरह का हाई-प्रोफाइल पद नहीं है. लेकिन गडकरी के नेतृत्व वाले मंत्रालय में उनकी नियुक्ति को उस समय तो महामारी के संदर्भ में देखा गया. लेकिन वह नृपेंद्र मिश्रा के भी काफी करीब थे, इसलिए उनके बाहर होने को भी उसी संदर्भ में देखा जा सकता है.’

शर्मा जब पीएमओ में अतिरिक्त सचिव के पद से हटे तो उनके साथ अतिरिक्त सचिव रहे तरुण बजाज को आर्थिक मामलों का सचिव बना दिया गया. बजाज को अब राजस्व विभाग का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया है.

सरकार ने जून 2020 में पीएमओ का हिस्सा रहे दो वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों राजीव टोपनो और ब्रजेंद्र नवनीत को क्रमशः विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में नियुक्त किया.

पिछले साल तक केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहे एक अधिकारी ने कहा, ‘पिछले एक साल में पीएमओ के अंदर ऐसे बहुत से अहम बदलाव हुए हैं…पीएमओ का एक बड़ा अहम हिस्सा पिछले कुछ महीनों में ही बदल गया है.’

‘कुछ असामान्य नहीं, बस भरोसे की बात है’

अटल बिहारी वाजपेयी के समय पीएमओ में संयुक्त सचिव के तौर पर कार्य करने वाले शक्ति सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया कि नियुक्तियों के मामले में प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव का बहुत ज्यादा प्रभाव होने में कुछ असामान्य नहीं है. अब इंडिया फाउंडेशन में एक प्रतिष्ठित फेलो और अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिसी रिसर्च एंड इंटरनेशनल स्टडीज, एमएस यूनिवर्सिटी, वडोदरा के मानद निदेशक सिन्हा कहा कि दरअसल यह चलन तो शासन व्यवस्था में हमेशा से ही रहा है.

पूर्व आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘यह तो एक ऐतिहासिक चलन का हिस्सा है जो लाल बहादुर शास्त्री के समय शुरू हुआ था, जब कैबिनेट सचिव के कार्यालय वाले अधिकार पीएमओ में प्रधान सचिव को स्थानांतरित कर दिए गए थे. तब से भारत में जब ’कमजोर’ प्रधानमंत्री रहे, तब भी पीएमओ बेहद अहम रहा है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘नियुक्तियों आदि के मामले में थोड़ा-बहुत पूर्वाग्रह होना गलत नहीं है, क्योंकि इसमें भरोसा भी मायने रखता है. एक बात जो इस पीएमओ के बारे में अलग है, वो यह है कि काफी ज्यादा छानबीन और सलाह-मशविरे के कारण इसमें नियुक्तियों में लंबा समय लगता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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