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Wednesday, 8 May, 2024
होमदेशकोविड-19 संकट, आदिवासियों की मदद के लिए पीएम वन धन योजना का कवरेज 18,000 से 50 एसएचजीएस किया गया

कोविड-19 संकट, आदिवासियों की मदद के लिए पीएम वन धन योजना का कवरेज 18,000 से 50 एसएचजीएस किया गया

ट्राइफेड (आदिवासी सहकारी विपणन विकास फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड), जनजातीय कार्य मंत्रालय ने वन धन स्टार्टअप के लिए वेबिनार के माध्यम से जानकारी दी.

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नई दिल्ली: प्रकृति के अभूतपूर्व संकट और कोविड-19 महामारी से पैदा हुई चुनौतियों से निपटने के लिए पीएम वन धन कवरेज को 18,000 एसएचजीएस से बढ़ाकर 50,000 वन धन एसएचजीएस कर दिया गया है. आदिवासी संग्रहकर्ताओं का कवरेज तीन गुना बढ़ाकर 10 लाख करने का प्रस्ताव है. ट्राइफेड (आदिवासी सहकारी विपणन विकास फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड), जनजातीय कार्य मंत्रालय ने वन धन स्टार्टअप के लिए आज वेबिनार के माध्यम से मीडिया ब्रीफिंग आयोजित की.

इस वेबिनार की अध्यक्षता प्रवीर कृष्ण, प्रबंध निदेश, ट्रायफेड ने की और इसमें 40 से ज्यादा प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. वेबिनार में पीआईबी की एडीजी नानू भसीन और मायगोव के सीईओअभिषेक सिंह ने भी हिस्सा लिया. ट्राइफेड टीम का प्रतिनिधित्व सभी विभागों के प्रमुखों और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किया गया.

प्रवीर कृष्ण ने बताया कि 22 राज्यों में 3.6 लाख आदिवासी संग्रहकर्ताओं और 18000 स्वयं सहायता समूहों को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए 1205 जनजातीय उद्यम स्थापित किए गए हैं. स्लोगन ‘गो वोकल फॉर लोकल’, इस मुश्किल समय के मंत्र को ‘गो वोकल फॉर लोकल गो ट्राइबल- मेरा वन मेरा धन मेरा उद्यम’ के तौर पर स्वीकार किया गया है.

वहीं सरकार देशभर में 3,000 वन धन केंद्र स्थापित करने का लक्ष्य है. जिसका मकसद वन संपदा (गैर-लकड़ी उत्पादन) करना है.

स्टार्ट-अप योजना का उद्देश्य अनुच्छेद 275 (1) के तहत जनजातीय कार्य मंत्रालय के कोविड-19 राहत योजना के माध्यम से आदिवासी संग्रहकर्ताओं के कवरेज को तिगुना 10 लाख करना है. राज्यवार ब्योरा भी प्रस्तुत किया गया, जिसमें दिखाया गया कि कैसे राज्य इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. 2019 में शुरू होकर स्टार्टअप्स तेजी से सभी 22 राज्यों में फैल गया.

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कृष्ण ने जिक्र किया कि पूरे देश में 2000 उत्पादों की पहचान की गई है. प्रतिभागियों को जंगली शहद, झाड़ू, दोना पत्तल, समिधा लकड़ी, कॉफी, तेज पत्ता, बेल पल्प के सैंपल्स दिखाए गए.

उन्होंने उदाहरण के रूप में, मणिपुर में स्टार्ट-अप के प्रयास पैकेजिंग, नवाचारों और प्रशिक्षण को लेकर देश के बाकी हिस्सों के लिए एक मॉडल उद्यम बन गए हैं. मणिपुर में वन उत्पादों के प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन के लिए राज्य में 77 वन धन केंद्र स्थापित किए गए हैं. सितंबर 2019 से अब तक वन धन केंद्रों ने 49.1 लाख रुपये मूल्य के एमएफपी उत्पादों की बिक्री की है. इन उत्पादों की बिक्री सुनिश्चित करने के लिए एक जिले में मोबाइल वैन सेवा भी शुरू की गई है.

उन्होंने बताया कि अनुच्छेद 275 (1) के तहत जनजातीय कार्य मंत्रालय के कोवि-19 राहत योजना के माध्यम से पहला अगला कदम 18,000 एसएचजी के मौजूदा कवरेज को 50,000 वन धन एसएचजी और आदिवासी संग्रहकर्ताओं के कवरेज को तीन गुना बढ़ाकर 10 लाख करना है. इसके मकसद की बात करते हुए कहा कि मुख्य उद्देश्य एमएफपी के संदर्भ में वन धन योजना को अगली ‘अमूल क्रांति’ के रूप में स्थापित करके देशभर में जनजातीय पारिस्थितिकी तंत्र को बदलना है.

खरीद आदि के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को पूरा करने के लिए नियोजित माइग्रेशन है. एटीआरआईएफईडी वेबसाइट (https://trifed.tribal.gov.in/) को आज से 30 जून तक (जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री के औपचारिक लॉन्च से पहले) ट्रायल रन के लिए शुरू किया गया और एक खरीद प्लेटफॉर्म, जिसे 30 जुलाई 2020 को लॉन्च किया जाएगा. देशभर में वन धन योजना के सभी विवरण, आंकड़े और रियल-टाइम जानकारी (https://trifed.tribal.gov.in/vdvk/auth/login.php) पर देखी जा सकती है.

कृष्ण ने बताया कि केंद्र सरकार की तरफ से इनमें से प्रत्येक केंद्र को 15 लाख रुपये प्रदान किए गए हैं. इन अनुदान का अब तक 25%-30% वन धन विकास केंद्रों द्वारा कच्चे माल की खरीद, श्रम लागत आदि गतिविधियों पर खर्च किया गया है. इन केंद्रों में से प्रत्येक के लिए एक राशि निर्धारित की गई है और वे कैसे और किस मद में पैसे का उपयोग करते हैं, यह फैसला उन्हें लेना है. नगालैंड के मामले में करीब 3.5 करोड़ मूल्य की बिक्री हुई है. एक बार अन्य सभी राज्य इस योजना के संबंध में रफ्तार पकड़ते हैं तो कुछ महीनों में ही हर राज्य से 1 करोड़ की बिक्री संभव होगी.

(इस ख़बर में फोटो को अपडेट किया गया है)

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