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Sunday, 5 May, 2024
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गुजरात के CM भूपेंद्र पटेल के सलाहकारों का क्या है PM मोदी से कनेक्शन

एक ओर जहां गुजरात के मुख्यमंत्री के प्रमुख मुख्य सलाहकार की भूमिका में के. कैलाशनाथन को मिला यह नवां विस्तार है, वहीं मुख्य सलाहकार हसमुख अधिया और सलाहकार एस.एस. राठौड़ के रूप में नई नियुक्तियां की गईं हैं.

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नई दिल्ली: भूपेंद्र पटेल के दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के ठीक दो सप्ताह बाद, 12 दिसंबर को राज्य सरकार ने एक नोटिस जारी किया, जिसमें मुख्यमंत्री की सलाहकारों की टीम में हुए बदलाव की सूचना दी गई. इस बार इन पदों के लिए चुने गए नामों में मुख्यमंत्री के प्रधान मुख्य सलाहकार के रूप में के. कैलाशनाथन, मुख्य सलाहकार के रूप में हसमुख अधिया और सलाहकार के रूप में एस.एस. राठौड़ के नाम शामिल हैं.

जहां कैलाशनाथन का यह नौवां विस्तार है, वहीं अन्य दो नई नियुक्तियां हैं. इन तीनों को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद के रूप में देखा जा रहा है, जो गुजरात के साथ प्रधानमंत्री मोदी के जुड़ाव को और मजबूत करता है और उन्हें अपने गृह राज्य में शासन की निगरानी करने में मदद करता है.

गुजरात के मुख्यमंत्री के ये तीन सलाहकार- कैलाशनाथन, अधिया और राठौड़- भी अपने अतीत से जुड़ा एक संबंध साझा करते हैं. ये तीनों ही सेवानिवृत्त नौकरशाह गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी की शोपीस परियोजना, विवादास्पद सरदार सरोवर बांध परियोजना, का हिस्सा रहे थे. मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री का पद त्यागने से पहले साल 2001 और 2014 के बीच इस पद पर कार्य किया था.

हालांकि, सरदार सरोवर बांध की आधारशिला साल 1961 में ही देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा रखी गई थी, मगर जल्द ही यह परियोजना जल वितरण एवं पर्यावरण, सामाजिक और धन संबंधी मुद्दों पर विवादों में घिर गई. इस बांध के खिलाफ चलाये गए आंदोलनों में सबसे प्रमुख कार्यकर्ता मेधा पाटकर की अगुआई में चलाया गया ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ था.

इस परियोजना को गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के कार्यकाल के दौरान ही माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार फिर से शुरू किया गया था और बांध का काम पूरा होने के बाद साल 2017 में प्रधानमंत्री के रूप में उनके द्वारा ही इसका उद्घाटन किया गया था. इस बांध को अब गुजरात की ‘जीवन रेखा’ कहा जाता है क्योंकि यह सौराष्ट्र क्षेत्र और उसके आसपास के इलाकों के लिए सिंचाई का पानी उपलब्ध कराता है.

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कैलाशनाथन, अधिया और राठौड़, इन सभी ने साल 2001 और 2006 के बीच अलग-अलग क्षमताओं में इस परियोजना पर काम किया, जबकि राठौड़ लंबे समय तक इसका हिस्सा बने रहे थे.

इस राज्य में सेवारत एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के अनुसार, जिन लोगों ने आंदोलनरत कार्यकर्ताओं के विरोध और अन्य बाधाओं का सामना करते हुए भी इस परियोजना पर काम किया, वे सब प्रधानमंत्री मोदी के सबसे करीब माने जाते हैं. पटेल के तीन सलाहकारों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह मुख्यमंत्री कार्यालय में प्रधानमंत्री की पसंदीदा सरदार सरोवर टीम है.’

फिर भी, साल 2013 के बाद से कैलाशनाथन की भूमिका में किया गया नौवां विस्तार (जिनमें से प्रत्येक एक वर्ष की अवधि के लिए था) कई लोगों के लिए एक आश्चर्य के रूप में आया. कुछ लोगों ने सेवानिवृत्ति के बाद नौकरशाहों की राजनीतिक नियुक्तियों की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है, क्योंकि इससे ‘सिविल सर्वेन्ट्स के रूप में उनकी ईमानदारी प्रभावित हो सकती है.’

हालांकि कैलाशनाथन को फिर से नियुक्त किये जाने की घोषणा सबसे पहले की गई थी, अन्य दो सलाहकारों के नामों की घोषणा उसके चार दिन बाद मंगलवार को की गई थी.

एक ओर जहां अधिया साल 2018 में केंद्रीय वित्त सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे और सेवानिवृत्ति के बाद भी कुछ पदों पर रहे हैं, वहीं गुजरात इंजीनियरिंग सेवा के एक अधिकारी रहे राठौड़ साल 2014 में राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे और वर्तमान में गुजरात मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक (एमडी) का प्रभार संभाल रहे थे.


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वह सूत्र जो इन तीनों को एक साथ बांधता है

कैलाशनाथन ने पहले सचिव, जल संसाधन (नर्मदा) के रूप में कार्य किया था, वहीं अधिया सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड के निदेशक रहे थे और राठौड़ इस परियोजना के सीएमडी (चेयरमैन-कम-मैनेजिंग डायरेक्टर) थे. इस बांध का निर्माण उनके (राठौड़ के) सीएमडी वाले कार्यकाल में ही पूरा हुआ था.

ऊपर उद्धृत वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘सरदार सरोवर बांध परियोजना हमेशा से प्रधानमंत्री मोदी के दिल के बहुत करीब रही है. उन्होंने इसके हर हिस्से पर हुए काम की निगरानी की है. सभी तरह के प्रतिरोध और नर्मदा (बचाओ) आंदोलन का बिना थके सामना करते हुए इस परियोजना पर काम करने वाले अधिकारियों के लिए उनके जीवन में एक खास जगह है. उन्हें मोदी के भरोसेमंद लोगों के रूप में देखा जाता है. ये तीनों उसी समूह के हैं.’

दिप्रिंट ने कई वरिष्ठ सेवारत और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों से भी बात की जिन्होंने यह दावा किया कि कैलाशनाथन अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं जिन्हें एक ही पद पर कई बार सेवा विस्तार मिला है.


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‘प्रधानमंत्री के आंख और कान’

गुजरात कैडर के 1979 बैच के आईएएस अधिकारी और साल 2013 के बाद से ही गुजरात के मुख्यमंत्री के प्रधान मुख्य सलाहकार के रूप में कार्य करने वाले 69 वर्षीय कैलाशनाथन को आज के दिन में गुजरात के सबसे शक्तिशाली नौकरशाह के रूप में देखा जाता है. राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि लोकप्रिय रूप से ‘केके’ कहे जाने वाले इस अधिकारी को प्रधानमंत्री मोदी की ‘आंख और कान’ के रूप में भी देखा जाता है.

राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस दोनों पार्टियों के कुछ नेताओं ने दावा किया कि केके लगभग एक डिफैक्टो (अनाधिकारिक) मुख्यमंत्री के रूप में राज्य को चलाने वाले व्यक्ति हैं. हालांकि, साल 2014 में मोदी के मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद से गुजरात में भाजपा के तीन मुख्यमंत्री- आनंदीबेन पटेल, विजय रूपानी और भूपेंद्र पटेल रहे हैं, उनके मुख्य प्रमुख सलाहकार कभी नहीं बदले.

कैलाशनाथन के साथ काम करने वाले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों ने उन्हें एक कुशल अधिकारी और मोदी का वफादार बताया.

आईएएस अधिकारियों के कार्यकारी अभिलेख (एग्जीक्यूटिव रिकॉर्ड) वाली शीट के अनुसार, कैलाशनाथन ने कभी भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर काम नहीं किया. वे हमेशा गुजरात सरकार में ही टिके रहे और साल 2006 से 2013 के बीच, अपनी सेवानिवृत्ति तक सात साल तक मुख्यमंत्री कार्यालय में सेवा की.

सेवानिवृत्ति के बाद, उन्हें मुख्यमंत्री का प्रधान मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया और वे अभी भी इस पद पर बने हुए हैं.

हालांकि, प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी अपने कुछ भरोसेमंद आईएएस अधिकारियों, जैसे कि पी.के. मिश्रा, अधिया और राजीव टोपनो को गुजरात से केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय में लेकर आये, मगर कैलाशनाथन गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय में ही इस उच्च और आकांक्षित पद पर बने रहे.

गुजरात में सेवारत एक दूसरे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘सेवानिवृत्ति के बाद वाले पद सत्तारूढ़ दल की राजनीतिक प्राथमिकताओं से जुड़े होते हैं. कैलाशनाथ को राज्य में प्रधानमंत्री मोदी के आदमी के रूप में देखा जाता है. कोई भी, उनकी बात नहीं काट सकता है, यहां तक कि मंत्री लोग भी नहीं.’

एजीएमयूटी (अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम एंड यूनियन टेरिटरी) कैडर के 1980 बैच के एक सेवानिवृत्त अधिकारी के अनुसार, राज्य के मुख्यमंत्री के मुख्य सलाहकार या मुख्य प्रधान सलाहकार का पद अब सेवानिवृत्त अधिकारियों के लिए सबसे आकांक्षित पद बन गया है.

उन्होंने कहा, ‘कोई भी अधिकारी जो किसी राज्य के मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का करीबी है, हमेशा इस पद को पाने का लक्ष्य रखेगा. भले ही यह एक राजनीतिक पसंद वाला पद है लेकिन यह एक सिविल सेवा अधिकारी की ईमानदारी को प्रभावित करता है.’

इन सेवानिवृत्त अधिकारी ने आगे कहा, ‘न केवल गुजरात में, बल्कि अन्य राज्यों में भी सेवानिवृत्त आईएएस या आईपीएस अधिकारियों की ऊंचे ओहदे वाले पदों पर नियुक्ति (पल्म पोस्टिंग) की यह परंपरा फल-फूल रही है. कुछ राज्यों में तो सरकारें उन्हें समायोजित करने के लिए ऐसे पद सृजित भी करती हैं. उन्हें अपनी सेवानिवृत्ति के एक दशक बाद तक भी कैबिनेट रैंक और कैबिनेट पद के समकक्ष भत्ते मिलते हैं.’

(अनुवाद: रामलाल खन्ना | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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