(फाइल फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, चार जून (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर दिल्ली से गुजरात तक फैली 700 किलोमीटर लंबी अरावली पर्वतमाला के पुनर्वनीकरण के मकसद से एक विशेष पहल की शुरुआत करेंगे।
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, मोदी राष्ट्रीय राजधानी के भगवान महावीर वनस्थली पार्क में ‘एक पेड़ मां के नाम’ पहल के तहत बृहस्पतिवार सुबह बरगद का पौधा लगाएंगे।
बयान के अनुसार, यह कदम ‘अरावली ग्रीन वॉल परियोजना’ का हिस्सा होगा, जिसका मकसद 700 किलोमीटर लंबी अरावली पर्वतमाला का पुनर्वनीकरण है।
बयान में कहा गया है कि ‘अरावली ग्रीन वॉल परियोजना’ दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के 29 जिलों में फैली भारत की सबसे प्राचीन पर्वत शृंखला के आसपास के पांच किलोमीटर के बफर क्षेत्र में हरित आवरण का विस्तार करने की एक अहम पहल है।
इसमें कहा गया है कि परियोजना का मकसद वनरोपण, पुनर्वनीकरण और जलाशयों के जीर्णोद्धार के जरिये अरावली की जैव विविधता को बढ़ावा देना है।
पीएमओ ने कहा कि इससे क्षेत्र की मिट्टी की उर्वरता, पानी की उपलब्धता और जलवायु लचीलापन में सुधार लाने में भी मदद मिलेगी।
उसने कहा कि परियोजना से स्थानीय समुदायों को रोजगार और आय सृजन के अवसर उपलब्ध कराए जा सकेंगे, जिससे उन्हें लाभ होगा।
पीएमओ के मुताबिक, विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री दिल्ली सरकार की सतत परिवहन पहल के तहत 200 इलेक्ट्रिक बस को भी हरी झंडी दिखाएंगे।
पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि परियोजना की शुरुआत के अवसर पर दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के मुख्यमंत्री उपस्थित रहेंगे।
उन्होंने बताया कि परियोजना के तहत अरावली पर्वत शृंखला में आने वाले 29 जिलों में लगभग 1,000 नर्सरियां विकसित की जाएंगी।
सरकार के अनुसार, यह पहल क्षेत्र में वायु प्रदूषण से निपटने में महत्वपूर्ण होगी और इससे 2030 तक 2.5 से 3 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सोखने की क्षमता विकसित करने तथा 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि को पुनः उपजाऊ बनाने जैसे जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी।
सरकार ने मार्च 2023 में ‘अरावली ग्रीन वॉल’ पहल पेश की थी।
इस परियोजना का लक्ष्य गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में लगभग 64.5 लाख हेक्टेयर भूमि को शामिल करते हुए पांच किलोमीटर चौड़ा ‘हरित पट्टी बफर जोन’ स्थापित करना है, जिसके भीतर की लगभग 42 फीसदी (27 लाख हेक्टेयर) भूमि बंजर है।
अरावली पर्वतमाला मरुस्थलीकरण के खिलाफ एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में काम करती है, थार रेगिस्तान के विस्तार को रोकती और दिल्ली, जयपुर तथा गुरुग्राम जैसे शहरों की रक्षा करती है।
अरावली की पहाड़ियां चंबल, साबरमती और लूनी जैसी महत्वपूर्ण नदियों का स्रोत भी हैं। इसके जंगलों, घास के मैदानों और आर्द्रभूमि में लुप्तप्राय पौधों और जानवरों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं।
हालांकि, वनों की कटाई, खनन, पशुचारण और मानव अतिक्रमण के कारण मरुस्थलीकरण की स्थिति और खराब हो रही है, जलभृतों को नुकसान पहुंच रहा है, झीलें सूख रही हैं तथा वन्यजीवों को पोषित करने की क्षेत्र की क्षमता प्रभावित हो रही है।
कुल अवक्रमित क्षेत्र का 81 प्रतिशत राजस्थान में, 15.8 प्रतिशत गुजरात में, 1.7 प्रतिशत हरियाणा में और 1.6 प्रतिशत दिल्ली में है।
भाषा पारुल रंजन
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