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Friday, 22 November, 2024
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सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ याचिकाओं की बाढ़- पूर्व न्यायाधीश और पत्रकार आये आगे

जम्मू और कश्मीर से हटाए गए विशेष दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में छह याचिकाएं आईं हैं, जिसमें तीन कम्यूनिकेशन ब्लैकआउट को लेकर है.

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नई दिल्ली: जम्मू और कश्मीर में जब से मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को समाप्त किया है, तभी से इस कदम की संवैधानिकता पर सवाल उठाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाओं की बाढ़ सी आ गई है.

जम्मू- कश्मीर पुनर्गठन एक्ट 2019 के अंतर्गत विशेष राज्य का दर्जा हटाते हुए सूबे को जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख- दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा राज्यसभा में कानून पेश किए जाने के एक दिन पहले से ही जम्मू और कश्मीर में संचार सेवाएं बंद कर दी गयीं थीं जिन्हें पिछले हफ्ते आंशिक रूप से बहाल किया गया है.

16 अगस्त को, भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने याचिकाओं की सुनवाई की, लेकिन कुछ याचिकाओं बदलाव की आवश्यकता को देखते हुए इस हफ्ते की सुनवाई टाल दी गई.

आइये जानते हैं क्या हैं ये याचिकाएं और किस के द्वारा इन्हें दायर किया गया है.

कश्मीरी वकील की याचिका

कश्मीरी मूल के शाकिर शबीर एक दशक से जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट में वकालत कर रहे हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में ‘संविधान सभा’ के ‘विधान सभा’ से बदल दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए याचिका दायर की. शबीर की याचिका में लिखा गया है कि जम्मू और कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा स्टेट असेंबली की रजामंदी के बगैर हटाया नहीं जा सकता था.

उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह के एक समझौते से ‘लोगों की इच्छा झलकती’, जो इस तरह के व्यापक परिवर्तनों को लागू करने से पहले आवश्यक था, और सरकार का कदम इस प्रकार से असंवैधानिक है.

शबीर ने यह भी तर्क दिया कि राज्यपाल द्वारा सत्ता का अवैध प्रयोग किया गया है, क्योंकि मंत्रिपरिषद के साथ कोई परामर्श नहीं किया गया था.

नेशनल कांफ्रेंस की याचिका

नेशनल कांफ्रेंस से लोकसभा सदस्य मोहम्मद अकबर लोन और पूर्व न्यायाधीश हसनैन मसूदी ने भी शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर दावा किया है कि राष्ट्रपति का आदेश असंवैधानिक था, और इसे वापिस लिया जाना चाहिए. अकबर लोन जम्मू और कश्मीर विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं वहीं मसूदी जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश हैं, जिन्होंने धारा 370 को संविधान का स्थायी हिस्सा बताया था. याचिका में कहा गया है कि ये कानून और उसे पास करने के लिए दिए गए राष्ट्रपति के आदेश जम्मू और कश्मीर के राज्य के लोगों को संविधान द्वारा दिए गए आर्टिकल 14 और 21 के तहत गैर कानूनी है.

पूर्व सैनिकों व प्रशानिक अधिकारियों द्वारा

गृह मंत्रालय के ग्रुप ऑफ इंटरलोक्यूटर्स ऑफ जम्मू एंड कश्मीर (2010-11) के पूर्व सदस्य राधा कुमार के नेतृत्व में पूर्व रक्षा कर्मियों और सिविल सेवकों के एक समूह द्वारा भी अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण को चुनौती दी गई है. याचिका दायर करने वाले लोगों में जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्य सचिव हिंडल हैदर तैय्यब जी, राज्य के निवासी और रिटायर्ड एयर मार्शल कपिल काक, 1965 और 1971 के युद्ध में शामिल और उरी जैसे इलाकों में तैनात रह चुके रिटायर्ड मेजर जनरल अशोक कुमार मेहता, इंटर स्टेट काउंसिल के पूर्व सचिव अमिताभ पाण्डे व पूर्व गृह सचिव गोपाल पिल्लई शामिल हैं.

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार जो संशोधन लायी है उसमे जम्मू और कश्मीर के लोगों की सहमति शामिल नहीं थी, और यह 1947 के इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन का उल्लंघन है.

कश्मीरी पत्रकारों और लेखकों द्वारा

यह याचिका बीबीसी के पूर्व संवाददाता सतीश जैकब और कश्मीरी लेखक इंद्रजीत टिकू ने दायर की है. हालांकि जैकब का इस मामले में सीधा संबंध नहीं है, लेकिन टिकू कश्मीरी वंश के हैं.

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि राष्ट्रपति आदेश और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम ने कानून की उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया है, और यह कि जम्मू में संचार प्रक्रिया बाधित करना राज्य के लोगों को दी गयी संवैधानिक सुरक्षा का सीधा उल्लंघन है.

यह जोर देते हुए कि यह कदम संवैधानिक रूप से अवैध है, याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि सरकार ने ‘अनिवार्य संवैधानिक आवश्यकताओं’ से परहेज किया है, ‘संवैधानिक निकायों के बसे अधिकारों’ को बाधित किया है, जो कि देश के संघीय ढांचे में असंतुलन का भी कारण बना है.

दिल्ली के मुस्लिम वकील की दलील

दिल्ली के एक वकील वकील सोयेब कुरैशी, जो लॉ फर्म पीएसएल – एडवोकेट्स एंड सॉलिसिटर का हिस्सा हैं, ने राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है. याचिका में कुछ खामियों के कारण इसे अभी रोक दिया गया है.

एम एल शर्मा की याचिका

जब सरकार ने जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाने के अपने फैसले की घोषणा की थी तो शर्मा ने सबसे पहले शीर्ष अदालत का रुख किया था. हालांकि उनकी व्यक्तिगत रूप से इस मामले से सीधा सम्बन्ध नहीं है.

उनकी याचिका में ज़िक्र किया गया कि भले ही धारा 370 और 35 ए संविधान के मूलस्वरूप के विरुद्ध है फिर भी इसे गैर कानूनी और असंवैधानिक तरीके से हटाया गया.

हालांकि, जब देश के मुख्य न्यायाधीश गोगोई के समक्ष याचिका का उल्लेख किया गया था, उन्होंने टिप्पणी की कि याचिका को पढ़ने में उन्हें घंटों लग गए लेकिन फिर भी इसका कोई मतलब नहीं निकल सका. वह यह कहते हुए आगे बढ़ गये कि वह याचिका को खारिज कर सकता थे, पर नहीं किया.

खुद को राजनैतिक विश्लेषक कहने वाले तहसीन पूनावाला ने राज्य में लगाये गए कर्फ्यू और बाधित संचार सुविधाओं को बहाल करने को लेकर याचिका दायर की है.

वहीं कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन ने पत्रकारों और अन्य मीडिया कर्मियों को अपना काम निष्पक्ष ढंग से करने के योग्य माहौल मुहैया करवाने के लिए सरकार से अनुरोध किया है.

जब ये याचिकाएं शीर्ष अदालत के सामने आईं, तो सॉलिसिटर जनरल ने प्रतिबंधों को आसान बनाने के लिए और समय मांगा, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति दी. 19 अगस्त से घाटी में स्कूल फिर से खुल गए हैं, जबकि सरकार इस सप्ताह से इंटरनेट और फोन पर प्रतिबंधों में ढील दे रही है.

भसीन ने इस दौरान ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ पर भी बहस करते हुए पूछा कि क्या प्रेस को ब्लैकआउट कर रोका जा सकता है. इस दलील को दूसरी दलीलों के साथ सुना जाएगा.

जामिया छात्रों की दलील

जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र मोहम्मद अलीम सैयद ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने कश्मीर में अपने माता-पिता और भाई के बारे में जानकारी की मांग की गई है, जिसके साथ सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद उन्होंने अपना संपर्क खो दिया है.

इस याचिका की धारा 370 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली अन्य दलीलों के साथ सुनवाई के होने की संभावना है.

( इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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