नई दिल्ली: जैसे-जैसे घड़ी की सुइयां 1 जुलाई से शुरू होने वाले प्लास्टिक बैन के नजदीक आती जा रही है, भारतीय प्लास्टिक उद्योग खुद को बेबस खड़ा पा रहा है. वो इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि महामारी के दौरान निर्माताओं ने कोविड की रोकथाम के लिए जरूरी माने जाने वाली पीपीई किट और अन्य सिंगल यूज प्लास्टिक वस्तुओं की मांग को पूरा करने के लिए सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर काम किया था, लेकिन आज उन्हें रातों रात अपराधी बना दिया गया. सरकार ने उनके साथ अनुचित व्यवहार किया है.
शुक्रवार से भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक से बनी वस्तुओं के निर्माण, आयात, स्टॉकिंग, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लग जाएगा. ये प्लास्टिक एक बार इस्तेमाल कर फेंक दी जाती है और कूड़े के बड़े ढेर के लिए जिम्मेदार है. सरकार ने फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) कंपनियों समेत कई अलग-अलग हितधारकों के अनुरोधों के बावजूद समय सीमा बढ़ाने से इनकार कर दिया है.
प्रतिबंधित की जाने वाली वस्तुओं में प्लास्टिक के प्लेट, कप और गिलास, और कटलरी जैसे कांटे, चम्मच, चाकू, पुआल, ट्रे और स्टिरर शामिल हैं. ईयरबड्स, गुब्बारे, झंडे, कैंडी और आइसक्रीम के लिए प्लास्टिक की छड़ें, और सजावट के लिए थर्माकोल, रैपिंग या पैकिंग फिल्म, प्लास्टिक के इनविटेशन कार्ड, सिगरेट के पैकेट और 100 माइक्रोन से कम के पीवीसी बैनर की भी अनुमति नहीं होगी.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, भारत में लगभग 683 इकाइयां हैं जो हर साल लगभग 2.4 लाख टन सिंगल यूज प्लास्टिक का निर्माण करती हैं.
उद्योग के प्रतिनिधि सरकार से सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लगाए जाने की समय-सीमा को बढ़ाए जाने की मांग कर रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने कई उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के कदम पर भी सवाल उठाया है, जिनके बारे में उनका दावा है कि उन्हें रिसाइकिल किया जा सकता है.
थर्मोफॉर्मर्स एंड एलाइड इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (TAIA) के अनुसार, उद्योग का टर्नओवर 10,000 करोड़ रुपये है और इसमें सीधे तौर पर 2 लाख लोग काम कर रहे हैं. उनके अनुसार, यह प्रतिबंध रातोंरात 5,000 करोड़ रुपये की संपत्ति को बेकार कर देगा.
उन्होंने कहा कि इस प्रतिबंध से रीसाइक्लिंग उद्योग पर भी असर पड़ेगा, जो अप्रत्यक्ष रूप से 4.5 लाख लोगों की रोजी-रोटी से जुड़ा है. पॉलीप्रोपाइलीन से बनी ट्रे, ग्लास और कटलरी जैसे सिंगल यूज प्लास्टिक की वस्तुओं को रैग पिकर्स कूड़े से उठाकर और रीसायकलर्स को बेचते हैं, जो उनका इस्तेमाल प्लास्टिक शीट बनाने में करते है और फिर उनसे टूथब्रश और अन्य कठोर प्लास्टिक उत्पादों के ब्रिसल्स बनाए जाते हैं.
दिप्रिंट ने ईमेल के जरिए पर्यावरण मंत्रालय से टिप्पणी लेने की कोशिश की थी, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के विशेषज्ञों ने प्रतिबंध को ‘लिमिटेड’ बताया है, लेकिन साथ ही ये भी कहा कि प्लास्टिक के खतरे को नियंत्रित करने की दिशा में यह ‘एक महत्वपूर्ण कदम’ है. उन्होंने इस तथ्य पर उद्योग की चिंताओं का समर्थन किया कि प्रतिबंध मल्टी-लेयर्ड पैकेजिंग को कवर नहीं करता है, जिसका इस्तेमाल ‘चिप्स से लेकर शैंपू और गुटखा पाउच तक लगभग सभी उपभोक्ता सामानों में धड़ल्ले से किया जाता है.’
‘मल्टी-लेयर प्लास्टिक से नुकसान ज्यादा’
TAIA के अनुसार, मल्टी-लेयर्ड प्लास्टिक या मल्टी-लेयर्ड पैकेजिंग (MLP), प्लास्टिक प्रदूषण का एक बड़ा कारण हैं. लेकिन सरकार ने एमएलपी को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के लिए अपने निर्माताओं को दो साल का समय दिया है.
टीएआईए के संयुक्त सचिव अंकुर नागपाल ने कहा, ‘ये उत्पाद वजन में हल्के होते हैं और इन्हें रीसायकल करना ज्यादा मुश्किल है. ये लैंडफिल के ढेर को बढ़ाने और महासागरों को प्रदूषित करने का काम करते है.’
मल्टी-लेयर्ड प्लास्टिक का निपटारा करने के लिए, इनका इस्तेमाल सड़क निर्माण और ईंधन उत्पादन जैसे उद्देश्यों के लिए किया जाता है. सीपीसीबी विभिन्न एजेंसियों को सड़क निर्माण के लिए बेकार प्लास्टिक का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित कर रहा है.
इस उद्योग से जुड़े खिलाड़ियों का कहना है कि कम रिटर्न के कारण कचरा बीनने वाले ऐसे वेस्ट प्लास्टिक उत्पादों को इकट्ठा करने से बचते हैं. इस वजह से नगर पालिका एजेंसियों पर एमएलपी अलगाव की जिम्मेदारी डाल देता है.
टीएआईए पूर्वी क्षेत्र के संयुक्त सचिव प्रेम कुमार ने कहा, ‘ हमने पाया कि बिहार में सरकार सड़कों के निर्माण के लक्ष्य को पूरा करने के लिए आवश्यक प्लास्टिक की खरीद तक नहीं कर पा रही थी. ऐसा इसलिए क्योंकि नगर निगम प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करने और अलग करने जैसे जरूरी काम को अंजाम नहीं दे पा रहा था.’
लोकसभा में एक सरकारी जवाब के अनुसार, भारत ने 2019-2020 में 34.69 लाख टन प्रति वर्ष (टीपीए) प्लास्टिक कचरे का उत्पादन किया. जिसमें से लगभग 15.8 लाख टीपीए प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल किया गया और 1.67 लाख टीपीए को सीमेंट भट्टों में को- प्रोसेस्ड किया गया.
29 जून को जारी एक बयान में सीएसई प्रमुख सुनीता नारायण ने भारत में प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए तीन-आयामी रणनीति की वकालत की थी.
उन्होंने कहा, ‘सबसे पहले उत्पादित और इस्तेमाल की जाने वाली सभी प्लास्टिक को निपटान के लिए इकट्ठा किया जाना चाहिए. दूसरे, वेस्ट प्लास्टिक को रिसायकल्ड करना या फिर जला दिया जाना चाहिए ताकि यह लैंडफिल तक न पहुंचे या फिर हमारे जलाशयों में जाकर इकट्ठा न हो.’
वह आगे कहती हैं, ‘तीसरा, इसका रीयूज या निपटान कुछ इस तरह से किया जाना चाहिए कि वह पर्यावरण के अनुकूल हो और इससे अधिक प्रदूषण या स्वास्थ्य संबंधी खतरे पैदा न हों. लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि जिन प्लास्टिक वस्तुओं को इकट्ठा करना या उनका रिसाइकिल करना मुश्किल है, उन्हें उपयोग से बाहर कर देना जाना चाहिए. यह वह जगह है जहां मौजूदा प्रतिबंध, हालांकि सीमित है, लेकिन फिट बैठते हैं’
कोई ‘व्यवहार्य’ विकल्प नहीं
TAIA के प्रतिनिधियों का कहना है कि प्लास्टिक काफी आम है और इसका अब तक कोई अन्य व्यवहार्य विकल्प नहीं हैं.
नागपाल ने कहा, ‘बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक काफी महंगी हैं. सड़क किनारे समान बेचने वाले के लिए इसे इस्तेमाल में लाना आसान नहीं है. इससे उसकी लागत काफी बढ़ जाएगी. इसके अलावा उस प्लास्टिक में गर्म खाना और पेय पदार्थ नहीं परोसा जा सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘कागज से बना समान पर्यावरण पर और अधिक बोझ डालते हैं. और वैसे भी इन्हें जूस या पेय उत्पादों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. अधिकांश पेपर कप की मजबूती के लिए प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है. इस वजह ये इसका कचरा नॉन-रीसाइकिलेबल हो जाता है और माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को बढ़ा देता है.’
एसोसिएशन ने दावा किया कि भले ही प्रधानमंत्री ने 2019 में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के भारत की मंशा को जाहिर किया हो लेकिन इसके कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं हैं.
कुमार ने कहा, ‘सरकार के साथ शुरुआती विचार-विमर्श के दौरान हमें बताया गया था कि रिसाइकिल करने योग्य उत्पादों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा. अगर सरकार उन पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रही थी, तो उन्होंने इस तरह के विस्तार को मंजूरी क्यों दी? जब हम गेल या ओएनजीसी से कच्चे माल के लिए भारी ऑर्डर दे रहे थे तो हमें क्यों नहीं रोका गया?’
नागपाल ने कहा कि वे चाहते हैं कि ‘सरकार हमें बताए कि हमें क्या उत्पादन करना चाहिए कि जिस पर वह प्रतिबंध नहीं लगाएगी.’
टीएआईए के राष्ट्रीय सचिव भावेश भोजानी ने कहा, ‘हमारी रोजगार के साधनों को बंद करने के बजाय, हम सरकार से उन ऐसे खास बिंदुओं की जानकारी देने के लिए कह रहे हैं जिससे प्लास्टिक वेस्ट की रिसाइकिलिंग आसान हो जाए.’ वह आगे कहते हैं, ‘हम सरकार के साथ हैं और सहयोग करने के इच्छुक हैं.’
एसोसिएशन ने सुझाव दिया है कि सरकार 210 मिली से कम क्षमता वाले और 5 ग्राम से कम वजन वाले प्लास्टिक कप के उत्पादन को प्रतिबंधित करे. इसमें कहा गया है कि प्लेट और ट्रे की मोटाई 150 माइक्रोन से कम या वजन 5 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए.
भोजानी ने कहा कि अगर उत्पाद भारी हैं, तो कचरा बीनने वालों के लिए उन्हें इकट्ठा करने और उन्हें रीसायकल करने वालों को बेचने के लिए अधिक प्रोत्साहन मिलता है. उन्होंने कहा कि उद्योग फोमड प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले का समर्थन करते हैं.
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