श्रीनगर, आठ अक्टूबर (भाषा) जम्मू-कश्मीर में सुगंधित चावल की देशज प्रजाति ‘मुश्क बुडजी’ के उत्पादन में बड़ा उछाल आने की संभावना है क्योंकि इस केंद्रशासित प्रदेश के अधिकारी इसकी खेती के रकबे को अगले तीन साल में बढ़ाकर 5,000 हेक्टेयर करने की योजना बना रहे हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी।
‘शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी’ (एसकेयूएएसटी) के विशेषज्ञों के अनुसार, चावल की यह उच्च लागत वाली पारंपरिक प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर थी और ‘ब्लास्ट’ रोग के प्रति संवेदनशीलता के कारण इसकी खेती घाटी के कुछ हिस्सों तक सिमट गई थी।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा उत्पादन में असमानता, गुणवत्तायुक्त बीज का अभाव, कई प्रजातियों के घालमेल से खराब उत्पादन की संभावना, अधिक क्षेत्रफल में उच्च पैदावार वाली धान के फसलों की खेती आदि ऐसे कारण हैं जिससे ‘मुश्क बुडजी’ की खेती का रकबा सिमटता गया।
कृषि विभाग और एसकेयूएएसटी के प्रयास के कारण ‘मुश्क बुडजी’ को ‘जियोग्रैफिकल इंडिकेशन’ (जीआई) टैग हासिल हुआ। फिलहाल ‘मुश्क बुडजी’ की खेती अधिकतर कोकेरनाग के पांच गांवों की 250 हेक्टेयर भूमि पर की जाती है।
‘मुश्क बुडजी’ की खेती खास जलवायु में होती है। कृषि उत्पादन और किसान कल्याण विभाग, कश्मीर के निदेशक चौधरी मोहम्मद इकबाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमारा लक्ष्य कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के समग्र विकास की योजना के तहत अगले तीन वर्षों में 5,000 हेक्टेयर भूमि को फसल की खेती के तहत लाना है।’’
इकबाल ने कहा, ‘‘हम ‘मुश्क बुडजी’ को बडगाम तक विस्तारित करने में सफल रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि और अधिक किसान इस फसल को उगाएंगे, जिससे बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इसके उत्पादन में वृद्धि होगी।’’
श्रीनगर के ‘कश्मीर हाट’ में दो अक्टूबर को शुरू हुए सप्ताह भर चलने वाले ‘जीआई मोहत्सव’ का जिक्र करते हुए इकबाल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के भीतर और बाहर, दोनों जगहों के 100 जीआई-टैग वाले कृषि और बागवानी उत्पादों का प्रदर्शन किया गया।
कोकेरनाग के सगाम गांव के मंजूर अहमद भट ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। उन्होंने कहा कि लगभग आधा दर्जन गांवों के 500 से अधिक किसान मुश्क बुडजी उगा रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हम एक किलोग्राम मुश्क बुडजी 260 रुपये में बेच रहे हैं और इसे श्रीनगर में काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। हमें उत्पाद के लिए दुबई से भी कॉल आए हैं।’’
सगाम गांव के बुजुर्ग किसान गुलाम मोहम्मद ने कहा कि उन्होंने मुश्क बुडजी की खेती बहुत पहले बंद कर दी थी, लेकिन सरकार का समर्थन मिलने पर पिछले कुछ समय से वह इसकी खेती फिर कर रहे हैं।
भाषा संतोष अविनाश
अविनाश
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.