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शनिवार, 31 मई, 2025
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प्लास्टिक में मौजूद फैथेलेट्स के कारण 2018 में हृदय रोग से विश्व में 3.5 लाख मौतें हुईं: अध्ययन

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नयी दिल्ली, 29 अप्रैल (भाषा) घरेलू उपयोग में लाई जाने वाली प्लास्टिक की वस्तुओं को बनाने में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले फैथेलेट्स के नुकसानदेह प्रभाव कारण वर्ष 2018 में दुनिया भर में हृदय रोग से 3.5 लाख से अधिक मौतें हुईं, जिनमें 55 से 64 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की संख्या सबसे अधिक थी। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है।

‘ईबायोमेडिसिन’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि सबसे अधिक भारत में 1,03,587 मौतें हुईं, जिसके बाद चीन और इंडोनेशिया का स्थान है।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि 3.5 लाख मौतों में से लगभग तीन चौथाई दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया, पूर्वी एशिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में हुईं।

न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के शोधार्थियों के नेतृत्व में, 200 देशों और क्षेत्रों में फैथेलेट्स के दुष्प्रभावों का अनुमान लगाने के लिए जनसंख्या सर्वेक्षणों से स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी डेटा का विश्लेषण किया गया।

अध्ययन में ‘डाइ-2-एथिलहेक्सिल फैथेलेट’ (डीईएचपी) के प्रकार पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसका उपयोग खाद्य पदार्थों के कंटेनर जैसी वस्तुओं में प्लास्टिक को नरम और अधिक लचीला बनाने के लिए किया जाता है।

मूत्र के नमूनों सहित डेटा का विश्लेषण करके फैथेलेट्स के रासायनिक विघटन के कारण बनने वाले उत्पादों की मात्रा का पता लगाया गया।

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन की एसोसिएट अनुसंधान वैज्ञानिक और अध्ययन की मुख्य लेखिका सारा हाइमन ने कहा, ‘‘फैथेलेट्स और दुनिया भर में हुई मौतों के एक प्रमुख कारण के बीच संबंध को उजागर कर, हमारे निष्कर्ष ये संकेत देते हैं कि ये रसायन मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं।’’

अध्ययन के अनुसार, ‘‘2018 में, दुनिया भर में 3,56,238 मौतें डीईएचपी के दुष्प्रभावों के के कारण हुईं, जो 55 से 64 वर्ष आयु वर्ग के व्यक्तियों में सभी हृदय संबंधी मौतों का 13.49 प्रतिशत है।’’

अध्ययन में यह पाया गया है कि पैथेलेट्स सूक्ष्म कणों में टूटकर मानव शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे मोटापा, प्रजनन संबंधी समस्याएं और कैंसर जैसी कई तरह की बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।

शोधार्थियों ने कहा कि इस यौगिक के संपर्क में आने से हृदय की धमनियों में सूजन पैदा हो जाती है, जो आगे चलकर दिल का दौरा पड़ने का खतरा पैदा करती है।

अध्ययन में कहा गया है कि भारत में प्लास्टिक उद्योग तेजी से बढ़ रहा है और प्लास्टिक कचरे और इस वस्तु के व्यापक उपयोग के कारण फैथेलेट्स के संपर्क में आने से स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो रहा है।

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन में बाल चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर और वरिष्ठ लेखक लियोनार्डो ट्रासांडे ने कहा, ‘‘हमारे परिणाम वैश्विक विनियमन की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां प्लास्टिक का उपयोग अधिक हो रहा है।’’

भाषा सुभाष पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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