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Wednesday, 24 April, 2024
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पैडिगरी डॉग्स हैं भारत के न्यू थेरेपिस्ट, ‘रेंट-ए-डॉग’ बना देश का नया बिजनेस

पर्सनल डॉग थेरेपी, तीन मास्टर और एक पीएचडी की डिग्री धारक मुंबई के एक डॉक्टर को काम पर रखने के जैसा ही महंगा हो सकता है.

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जैसे ही अवनि नरेश कोको के साथ अपने दिल्ली के ऑफिस में कदम रखती हैं, उनके कर्मचारी शिह जू को घेर लेते हैं. सभी लोग सेल्फीस ले रहे हैं और वो हमेशा मुस्काराता है. लेकिन कोको अवनि का आम डॉग नहीं है- यह ‘थेरेपी डॉग’ है जिसे उन्होंने दो घंटे के लिए 1,500 रुपये के डिस्काउंट रेट पर किराए पर लिया है.

केवल किराने का सामान और इलेक्ट्रॉनिक्स ही ऐसी चीजें नहीं हैं जिन्हें एक क्लिक पर ऑर्डर किया जा सकता है – एक गोल्डन रिट्रीवर भी आपके दरवाज़े पर एक क्लिक में दस्तक दे सकता है.

‘रेंट-ए-डॉग’ आज के समय का एक नया बिजनेस है. दिल्ली में कारोबारियों की एक छोटी लेकिन बढ़ती संख्या अब उन ग्राहकों को पैडिगरी डॉग्स उधार दे रहे हैं जो उन्हें प्यार करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें पालने, नहलाने या खिलाने की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते.

तीन साल में, नरेश के कोको के साथ 15 सेशन बीत चुके हैं. शिह जू उनका ‘डॉग थेरेपिस्ट’ है.

शहर में एक आईटी सर्विस कंपनी चलाने वाली नरेश कहती हैं, “इसने मेरे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है. मेरे सभी दोस्त कोको से मिल चुके हैं. मैं उसे अपने ऑफिस भी ले गई हूं. हम खेलते हैं, गले मिलते हैं और अक्सर शाम एक साथ बिताते हैं.” सेशन के अंत में, वह कोको को अलविदा कहती हैं और अपने बाकी दिन को नई ऊर्जा के साथ शुरू करती हैं.

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लेकिन यह सिर्फ साथ नहीं, जिस कारण अवनी बार-बार कोको से मिलना चाहती हैं. सेशन ने उनके मन में कुत्तों के प्रति अपने डर को दूर करने में मदद की है और उन्होंने इमोशनल लेवल पर पालतू जानवरों से जुड़ना सीख लिया है.

उन्होंने कोको को गुरुग्राम में एक पालतू जानवरों की कंपनी ‘फरबॉलस्टोरी’ से किराए पर लिया है. यह कपंनी एक फार्महाउस-कम-पेट कैफे में चार डॉग्स को रखती है. कोको के साथ, फरबॉलस्टोरी के दो गोल्डन रिट्रीवर्स और जर्मन शेफर्ड ने दिल्ली-एनसीआर की यात्रा की है.

‘डॉग्टर’, कोको, पैट थेरेपिस्ट | स्पेशल अरेंजमेंट
दिल्ली में अपने ऑफिस में पैट थेरेपिस्ट के साथ अवनि नरेश | स्पेशल अरेंजमेंट

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पैट थेरेपी: एक बढ़ती हुई इंडस्ट्री

पर्सनल डॉग थेरेपी, तीन मास्टर और एक पीएचडी डिग्री धारक मुंबई के एक डॉक्टर को काम पर रखने के जैसा ही महंगा हो सकता है.

दिल्ली की एक कंपनी चेरिश एक्स को, बर्थडे पार्टी की सजावट, गुलदस्ते और गिफ्ट्स उपलब्ध कराती है. यह ‘प्ले डेट विद डॉग्स’ भी मुहैया कराती है, जिसकी कीमत घर पर आराम से “दो थेरेपी डॉग्स” के साथ दो घंटे तक खेलने के लिए 3,700 रुपये है.

इस बीच, फरबॉलस्टोरी ने 2016 से स्कूलों में निशुल्क सेशन शुरू किए हैं.

फरबॉलस्टोरी के सीईओ अनिमेष कटियार कहते हैं, “इस तरह की पहल के साथ, हम बच्चों में पशु संवेदनशीलता को बढ़ाना चाहते हैं.”

पैट कंपनी ने अपने दायरे का विस्तार किया है, यह 2 से 4 चार घंटे के थेरेपी सेशन के लिए 2,000-5,000 रुपये तक फीस लेती है. हालांकि, यह स्कूलों में मुफ्त सेशन करवाती है.

कटियार कहते हैं, “गुड़गांव जैसे शहरों में, लोग अपने परिवारों और पालतू जानवरों को छोड़कर दूसरे शहरों में जाते हैं. हम उनके जीवन में बिना शर्त प्यार महसूस करने के लिए एक प्रेरणा बनना चाहते हैं. फरबॉलस्टोरी पालतू जानवरों को किराए पर देने की सर्विस से कहीं अधिक है और स्नेह की तलाश में डूबे लोगों के लिए मनोरंजन से ज्यादा है.”

कटियार के तर्क में कुछ तो दम होगा. फरबॉलस्टोरी के किराये पर दिए जाने वाले डॉग्स केवल पैडिगरी डॉग नहीं हैं, जिनके साथ खेलने में मज़ा आता है – वे ट्रैनिंग प्राप्त जानवर हैं जो अपने काम में माहिर हैं.

कटियार ने चारों पैट्स को बहुत सावधानीपूर्वक चुना है और उन्हें लोगों के साथ बातचीत करने, उनकी कंपनी का आनंद लेने और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फोटो खिंचवाने या काटने से बचने के लिए ट्रैनिंग दी गई है. सिलेक्शन प्रोसेस इतना मुश्किल है कि डॉग्स के माता-पिता भी इससे गुज़रते हैं.

स्क्रीनिंग से इस बात की बेहतर समझ मिलती है कि कुत्ता पैट थेरेपिस्टर बन सकता है या नहीं.

कटियार कहते हैं, “भारत में कोई उचित नियम नहीं हैं, इसलिए हम थेरेपी डॉग्स के लिए हांगकांग स्टाइलशीट का पालन करते हैं और उन्हें वैसे ही ट्रैनिंग देते हैं.”

डॉग थेरेपी गुजरात में भी पैर जमा रही है. अहमदाबाद की एक पैट कंपनी “क्यू आई टू हैप्पीनेस” फाउंडेशन अपने डॉग्स को किराए पर नहीं देती. इसके बजाय, यह फाउंडेशन के ‘कम्फर्ट डॉग प्रोग्राम’ के तहत ग्राहकों को अपने तीन गोल्डन रिट्रीवर्स से सीधे मेलजोल की अनुमति देता है.

“क्यू आई टू हैप्पीनेस” फाउंडेशन की डायरेक्टर रुवाब खेमचंदानी कहती हैं, “कई परिवार, दोस्त और व्यक्ति हमारे कम्फर्ट डॉग प्रोग्राम का लाभ उठाने के लिए हमारे फाउंडेशन में आते हैं.” उन्होंने डॉग्स के साथ एक सेशन के बाद लोगों के व्यवहार में बदलाव देखे हैं.

वह कहती हैं, “डॉग थेरेपी के कईं फायदे हैं. यह किसी व्यक्ति की मुद्रा भी बदल सकता है! जानवरों के साथ बातचीत करने और चलने से, एक व्यक्ति बाइक चलाने के स्किल्स में सुधार ला सकता है.”


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नियमों की कमी

हालांकि, जूरी अभी भी इस बात को नहीं मानती है कि यह प्रथा कितनी ‘कुशल’ और ‘नैतिक’ है. कार्यकर्ता चिंतित हैं कि कुछ स्थानों पर, पैट थेरेपिस्ट में तंग और खिड़की रहित कमरों में नींद वाले डॉग शामिल हैं, जो इंसानों के स्पर्श के प्रति उदासीन होते हैं.

नई दिल्ली में जानवरों के लिए एक एनजीओ, नेबरहुड वूफ की आयशा क्रिश्चियन कहती हैं, “एक तरफ यह लोगों को जानवरों से जुड़ने में मदद करने का एक शानदार तरीका दिखाई देता है. हालांकि, इस बात का हमेशा डर लगा रहता है कि यह पैसे कमाने का व्यवसाय बन जाएगा.”

उन्होंने कहा, वह डॉग्टर के विचार को पूरी तरह से नहीं नकारती हैं. कटियार की तरह, वह बताती हैं कि व्यवसाय के लिए सख्त नियमों की जरूरत है, जो वर्तमान में भारत में बहुत कम है.

क्रिश्चियन कहती हैं, “शुरुआत के लिए, कुत्तों को सामान्यीकृत नहीं करना महत्वपूर्ण है. वे सभी एक जैसे नहीं हैं. वे सभी काटते नहीं हैं. लेकिन पैसे बनाने की भावना से, ध्यान असल जांच के बजाय जल्दी से कॉस्मेटिक दिखावे पर केंद्रित हो सकता है.”


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डॉग थेरेपिस्ट बनने की डगर मुश्किल

थेरेपी डॉग्स के पास तनावपूर्ण पलों होते हैं उनके शेड्यूल के लिए वीक ऑफ ज़रूरी होते हैं, लेकिन उनकी पैरवी कौन कर रहा है?

चाहे वह कांच का टूटना हो, दरवाज़े की घंटी बजना हो या घर में तेज़ आवाज़ हो, अचानक हलचल डॉग्स को उसके आसपास असहज महसूस करवा सकता है. थेरेपी डॉग्स को ऐसी स्थितियों में अपना आपा नहीं खोने के लिए कड़ी ट्रैनिंग से गुज़रना पड़ता है.

कटियार उन उदाहरणों को याद करते हैं, जहां बच्चों ने उनके पालतू जानवरों की पूंछ पकड़ कर और उनकी आंखें पोछकर उन्हें उकसाया था. हालांकि, डॉग्स शांत रहे और उनके संचालकों ने हमेशा सक्रिय रूप से स्थिति को नियंत्रित किया.

फरबॉलस्टोरी यह सुनिश्चित करती है कि उसके डॉग्स ग्राहक के साथ कभी अकेला नहीं रहें. जानवर को कंट्रोल में रखने के लिए एक हैंडलर हमेशा उपलब्ध रहता है.

मुंबई में स्थित एक कैनाइन बिहेवियरिस्ट शिरीन मर्चेंट कहते हैं, “कुत्ते इंसानों के प्रति बहुत सहनशील नहीं हैं, पुराने स्किन इंफेक्शन, तनाव के कारण वह व्यवहार में बदलाव विकसित करना शुरू कर सकते हैं.”

मर्चेंट कहते हैं, “यदि एक अनुपयुक्त डॉग इन सर्विस को प्रदान करने से बाहर रहना शुरू कर देता है, तो यह समय के साथ चिड़चिड़ा हो सकता है और तनाव में जा सकता है.”

कटियार, जो डॉग्स के प्रति भावुक हैं, याद करते हैं कि जब वे उन कंपनियों के संपर्क में आए, जिन्होंने अपनी सर्विस में पशु के कल्याण की परवाह नहीं की.

वह कहते हैं, “हम ऐसे थेरेपी डॉग सर्विस के साथ संबंध तोड़ देते हैं जो उन जानवरों के साथ संबंध बनाने की बजाय उन्हें मनोरंजन का साधन बनाने पर आतुर होते हैं.”

फरबॉलस्टोरी और क्यू आई टू हैप्पीनेस फाउंडेशन कुत्ते के व्यवहार को नियंत्रण में रखने के लिए लगातार ट्रैनिंग देते हैं. उनकी टीम यह सुनिश्चित करती है कि डॉग्स सहज हों और उनकी डायट ठीक रहे.

खेमचंदानी और कटियार दोनों डॉग्स से मिलने के लिए अपने फार्महाउस पर जाने की सलाह देते हैं.

मर्चेंट कहते हैं, “एक महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या जानवर खुद इसका आनंद ले रहा है. हम उनकी परवाह किए बिना दूर नहीं जा सकते.”

खेमचंदानी का कहना है कि उनके गोल्डन रिट्रीवर्स के पास काम से वीक ऑफ भी होता है, जो उनके मूड और उस दिन के उत्साह के लेवल पर निर्भर करता है.

आवार जानवरों के साथ काम करने वाले विशेषज्ञों ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, पैडिगरी डॉग्स को थेरेपिस्ट जानवरों के रूप में उपयोग करने की अनिवार्य जरूरत पर सवाल उठाया.

आयशा क्रिश्चियन कहती हैं, “स्ट्रीट डॉग्स की देखभाल करना सबसे आसान है और हम इन चीजों में सबसे अच्छे हैं. इंडियन डॉग्स के रूप में, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पैडिगरी डॉग्स की तुलना में बेहतर है और वे पर्यावरण के लिए कहीं अधिक अनुकूल हैं”.

अधिकांश थेरेपिस्ट डॉग और कैफे के पोस्टर में चमकदार फर, चमकदार आंखें और फैंसी दिखने वाले डॉग दिखाई देते हैं. नोएडा में बार्क स्ट्रीट नामक एक पालतू कैफे से एक ऑनलाइन पोस्टर में लिखा है- “अपने जर्मन शेफर्ड के साथ आइए और अपने टोटल बिल पर 20 प्रतिशत की छूट पाइए” उच्च वर्ग के विदेशियों को महंगी ब्रीड पर पैसे खर्च करने की जरूरत पर बल देना.

लेकिन यह एक अच्छी तरह से तैयार पैडिगरी आकर्षण है जो ग्राहकों को अधिक सेशन के लिए वापस लाता रहता है. आज की इंस्टाग्राम-वाली दुनिया में, एक साथी, यहां तक कि एक अस्थायी चार-पैर वाला सबसे अच्छा दोस्त भी अच्छा दिखना चाहता है.

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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