नयी दिल्ली, 23 अक्टूबर (भाषा) एकीकृत रक्षा स्टाफ प्रमुख (सीआईएससी) एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित ने बृहस्पतिवार को कहा कि आधुनिक युद्ध तेजी से बहुआयामी और सीमाहीन होते जा रहे हैं और आजकल संघर्षों में संयुक्त रूप से देशों की सेनाएं, मिलिशिया और आतंकवादी समूह शामिल होते हैं, जिससे शांति अभियान अभूतपूर्व स्तर पर जटिल हो जाते हैं।
नयी दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में व्याख्यान देते हुए एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित ने कहा कि इस बात पर मंथन करने की जरूरत है कि शांति स्थापना और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून को आधुनिक वास्तविकताओं के अनुरूप कैसे ढाला जाए।
उन्होंने कहा, ‘‘हम वैश्विक भू-राजनीति में एक निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं। अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की संरचना में गहरा बदलाव आ रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की व्यवस्था, जो सामूहिक उत्तरदायित्व, साझा मानदंडों और मानवीय मूल्यों पर आधारित थी, अब अत्यधिक दबाव में है।’’
सीआईएससी ने रेखांकित किया कि दुनिया का लगभग एक-चौथाई हिस्सा संघर्ष प्रभावित है और आज दुनिया भर में 61 संघर्ष चल रहे हैं, जो 1946 के बाद से सबसे अधिक संख्या है।
दिल्ली स्थित रक्षा क्षेत्र से जुड़े ‘थिंक टैंक’ यूएसआई द्वारा संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र (सीयूएनपीके) और अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति (आईसीआरसी) के सहयोग से 23 और 24 अक्टूबर को ‘‘संघर्षरत विश्व में शांति स्थापना और मानवीय अनिवार्यता को आगे बढ़ाना’’ विषय पर ‘यूएसआई संयुक्त राष्ट्र वार्षिक फोरम’ का आयोजन किया जा रहा है।
एयर मार्शल दीक्षित ने कहा, ‘‘हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि शांति स्थापना और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून को आधुनिक वास्तविकताओं के अनुरूप कैसे ढालना चाहिए, तथा इस संघर्ष के बीच हमें मानवीय मूल्यों को कैसे कायम रखना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि इस मंच का विषय प्रासंगिक और सामयिक है, क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया जा रहा है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद 24 अक्टूबर, 1945 को अस्तित्व में आया था।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, नागरिकों की सुरक्षा, युद्ध की भयावहता को कम करने और वैश्विक स्थिरता बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई थी और जिनेवा संधि अस्तित्व में आई थी।
एयर मार्शल दीक्षित ने कहा कि इसमें गैर-लड़ाकों की सुरक्षा और अंधाधुंध हिंसा के निषेध जैसे सिद्धांतों को संहिताबद्ध किया गया है।
उन्होंने कहा कि शीत युद्ध के आरंभिक दौर में शांति मिशन की संख्या अपेक्षाकृत सीमित थी। उन्होंने पश्चिम एशिया में शांति स्थापना के लिए 1948 में स्थापित यूएनटीएसओ (संयुक्त राष्ट्र युद्धविराम पर्यवेक्षण संगठन) तथा 1953 में कोरिया में मिशन का उदाहरण दिया।
सीआईएससी ने कहा, ‘‘आईएचएल के आधारभूत सिद्धांत अब भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन समकालीन संघर्षों की जटिल प्रकृति उनके कार्यान्वयन के लिए मुश्किल पैदा करती है।’’
अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून (आईएचएल) नियमों के एक समूह को संदर्भित करता है जो मानवीय कारणों से सशस्त्र संघर्ष के प्रभावों को सीमित करने का प्रयास करता है।
एयर मार्शल दीक्षित ने कहा, ‘‘आधुनिक युद्ध तेजी से बहुआयामी और सीमाहीन होते जा रहे हैं। आजकल के संघर्षों में अक्सर देश की सेनाएं, मिलिशिया, विद्रोही, आतंकवादी समूह, निजी सैन्य कंपनियों और अन्य किरदार संयुक्त रूप से संलिप्त होते हैं।’’
उन्होंने कहा कि ये समूह आमतौर पर खुली सीमाओं और अस्थिर भूभागों में सक्रिय होते हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिम एशिया में, गैर-सरकारी तत्व नियमित सेनाओं के साथ या उनके विरुद्ध लड़ते हैं।
सीआईएससी ने कहा, ‘‘इसकी प्रमुख विशेषताओं में बहुध्रुवीय और गैर-रैखिक युद्धक्षेत्र शामिल हैं, युद्ध अब राज्य बनाम राज्य नहीं रह गए हैं, बल्कि सशस्त्र समूहों और मिलिशिया का एक नेटवर्क एक ही क्षेत्र में शामिल हो सकता है, जैसा कि हमने लीबिया और सीरिया के गृह युद्धों में देखा है।’’
एयर मार्शल दीक्षित ने अपने संबोधन में आधुनिक संघर्षों में असैन्य आबादी पर बढ़ते खतरों को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा, ‘‘सशस्त्र बलों या अन्य किरदारों द्वारा रणनीति के रूप में नागरिक बुनियादी ढांचे को निशाना बनाना, नागरिकों को ढाल के रूप में इस्तेमाल करना या उन्हें हथियार बनाना अब आम बात हो गई है।’’ शीर्ष सैन्य अधिकारी ने रेखांकित किया कि अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत ऐसा करना निषिद्ध है।
सीआईएससी ने कहा कि गाजा, सूडान और अन्य स्थानों पर इस तरह के संरक्षण का अक्सर उल्लंघन किया जाता है।
उन्होंने कहा कि आधुनिक युद्ध लंबे समय तक चलते हैं और ‘‘गहरे मानवीय संकट’’ पैदा करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विस्थापन, खाद्य असुरक्षा और आघात समय के साथ बढ़ते जाते हैं। सीआईएससी ने अपने इस कथन के समर्थन में सूडान और गाजा में संघर्ष के मद्देनजर बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु और विस्थापन का हवाला दिया।
सीआईएससी ने जोर देकर कहा कि इन चुनौतियों के बावजूद, ‘‘संयुक्त राष्ट्र जैसी बहुपक्षीय संस्थाएं अपरिहार्य बनी हुई हैं।’’
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र शांति सेना ने कई देशों को गृहयुद्ध या तानाशाही से उबरने में मदद की है। जिन क्षेत्रों में शांति सैनिक तैनात हैं, वहां नागरिकों की मृत्यु दर कम है और शांति समझौते ज़्यादा स्थिर हैं।
एयर मार्शल ने कहा, ‘‘फिर भी शांति अभियान समुदाय को अभूतपूर्व जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है। दुनिया भर में कई स्थानों पर सशस्त्र संघर्ष हो रहे हैं, और शांति अभियान अभूतपूर्व जटिलताओं का सामना कर रहे हैं, जिनमें गैर-राज्यीय तत्व, छद्म युद्ध, सीमित संसाधन और असैन्य आबादी पर बढ़ता खतरा शामिल है।’’
भाषा धीरज वैभव
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