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Saturday, 23 November, 2024
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पटना HC ने बिहार में जाति-आधारित सर्वे को दी मंजूरी, याचिकाकर्ता फैसले को देंगे SC में चुनौती

सर्वे की पूरी प्रक्रिया इस साल मई तक पूरी करने की योजना थी, लेकिन 4 मई को HC जनगणना पर रोक लगा दी थी और राज्य सरकार से डेटा को सुरक्षित रखने को कहा था.

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नई दिल्ली: पटना हाई कोर्ट ने मंगलवार को बिहार सरकार द्वारा किए जा रहे जाति सर्वेक्षण के फैसले को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए सर्वे को बरकरार रखने का आदेश जारी किया.

सरकार के फैसले को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता यूथ फॉर इक्वेलिटी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील दीनू कुमार ने बताया कि वो फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे.

कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘‘वो सरकार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इस फैसले के खिलाफ हैं. उन्होंने कहा कि अभी जजमेंट नहीं पढ़ा है, लेकिन फैसले से वो नाखुश हैं और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे.’’

मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की पीठ ने जाति-आधारित सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर फैसला सुनाया था.

बता दें कि सर्वे दो चरणों में किया जाना है. पहला चरण, जिसके तहत घरेलू गिनती का अभ्यास किया गया था, जिसे इस साल जनवरी में राज्य सरकार द्वारा आयोजित किया गया था.

सर्वेक्षण का दूसरा चरण 15 अप्रैल को शुरू हुआ, जिसमें लोगों की जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबंधित डेटा इकट्ठा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया. हालांकि, सर्वे की पूरी प्रक्रिया इस साल 15 मई तक पूरी करने की योजना थी, लेकिन 4 मई को हाई कोर्ट ने जनगणना पर रोक लगा दी थी और राज्य सरकार से डेटा को सुरक्षित रखने को कहा था.

मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की पीठ ने रोक लगाने की मांग वाली तीन याचिकाओं पर आदेश पारित किया. इसमें पाया गया कि सर्वेक्षण वास्तव में एक जनगणना थी, जिसे केवल केंद्र सरकार ही कर सकती है.

जातिगत जनगणना के फॉर्म में कुल 17 प्रश्न हैं जिसमें शैक्षणिक योग्यता, परिवार में सदस्यों, उनके लिंग और आवासीय स्थिति आदि की जानकारी देनी होती है. प्रत्येक 215 जातियों में हरेक जाति का अपना एक विशिष्ट कोड है.

कोर्ट ने कहा, “हमने पाया है कि जाति-आधारित सर्वेक्षण एक सर्वेक्षण की आड़ में एक जनगणना है; इसे पूरा करने की शक्ति विशेष रूप से केंद्रीय संसद के पास है, जिसने जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत बनाया गया है.”

इसके बाद, बिहार सरकार ने जाति-आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगाने वाले हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

हालांकि, शीर्ष अदालत ने रोक हटाने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद मामले की सुनवाई हाई कोर्ट ने की, जिसने मंगलवार को इस चुनौती को खारिज कर दिया.

अधिवक्ता अपराजिता और राहुल प्रताप ने याचिकाकर्ता यूथ फॉर इक्वेलिटी का प्रतिनिधित्व किया. याचिकाकर्ता अखिलेश का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता ऋतुराज, दीनू कुमार, रितिका रानी और वरदान मंगलम ने किया था.

बहुत सारे अन्य राज्य भी अब जातिगत जनगणना को लेकर खुश हैं और इसे अपने राज्य में कराने की मांग कर रहे हैं.

बिहार में जातिगत जनगणना पर विवाद या असहमति किसी के लिए नई बात नहीं है. इसका उद्देश्य 12 करोड़ नागरिकों की जानकारी एकत्र करना है. राज्य के 38 जिलों में लगभग 2.58 करोड़ परिवार निवास करते हैं.

2018 और 2019 में बिहार विधानसभा में जातिगत जनगणना को लेकर प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया था. हालांकि, बीजेपी सहित सभी दलों ने जनगणना का समर्थन किया, लेकिन मोदी सरकार ने सितंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर कहा था कि जातिगत जनगणना ‘संभव नहीं’ है.


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