नई दिल्ली: पतंजलि के सीईओ आचार्य बालकृष्ण ने ‘हेल्थ फ्रैंडली’ वॉल पेंट और एलईडी बल्बों को अपनी स्वीकृति देने और आयुर्वेद में वैज्ञानिक साक्ष्यों का अभाव बताने के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) पर निशाना साधा है.
बालकृष्ण ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘वे हमें लगातार निशाना बना रहे हैं और आयुर्वेदिक इलाज को छद्म वैज्ञानिक करार देते हैं. बहरहाल, मैं यह सवाल उठाना चाहता हूं कि 99 फीसदी बैक्टीरिया मारने, वायरल ट्रांसमिशन का खतरा घटाने और प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने के दावे वाले वॉल पेंट को उनके समर्थन का आधार क्या है. पेंट ने श्वसन संक्रमण और त्वचा पर प्रतिक्रिया घटने की संभावना होने का भी दावा किया है. क्या वह वैज्ञानिक तौर पर सही है?’
उन्होंने दावा किया कि आईएमए के अधिकारियों में आयुर्वेदिक दवाओं और अनुसंधान की समझ कम है, और कहा कि पतंजलि को ‘उनके लिए जरूरी प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराने में खुशी होगी.’
आधुनिक चिकित्सा पद्धति का अभ्यास करने वाले 3.5 लाख डॉक्टरों की लॉबी आईएमए ने फरवरी में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन से कोरोनिल को प्रमोट करने के लिए स्पष्टीकरण मांगा था, इस उत्पाद को शुरुआत में पतंजलि की तरफ से कोविड-19 की दवा के तौर पर प्रचारित किया गया था.
आईएमए की तरफ से ब्रांड को प्रचारित किए जाने को लेकर पतंजलि के हमले पर लॉबी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जे.ए. जयलाल ने दिप्रिंट से कहा, ‘आईएमए किसी भी उत्पाद का समर्थन नहीं कर रहा, बल्कि हम केवल विज्ञान में नई प्रौद्योगिकी या नए आविष्कारों को प्रोमोट करते हैं.’
जयलाल ने यह भी कहा कि आईएमए 92 साल पुराना संगठन है और बालकृष्ण कोई ऐसे व्यक्ति नहीं है, जिससे इस चिकित्सा निकाय को प्रमाणपत्र लेना पड़ेगा.
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आईएमए- पतंजलि में टकराव
पतंजलि और आईएमए के बीच यह टकराव पिछले महीने उस समय तेज हो गया था जब बालकृष्ण ने ‘कोरोनिल के वैज्ञानिक आधार’ पर एक खुली चर्चा के लिए चिकित्सा निकाय को खुली चुनौती दी थी. उसी महीने कोरोनिल टैबलेट को नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से कोविड-19 के ‘सहायक’ इलाज के तौर पर अपग्रेड कर दिया गया था. आईएमए ने भी चुनौती को स्वीकार कर लिया था.
बालकृष्ण ने पूछा, ‘हमारे पास तो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित कोरोनिल का समर्थन करने वाले अध्ययन हैं. क्या वे हमें अपने ब्रांड के समर्थन के पीछे का वैज्ञानिक आधार बता सकते हैं?’
उन्होंने कहा कि सिर्फ वॉल पेंट ही नहीं आईएमए ने ऐसे एंटी-माइक्रोबियल एलईडी बल्बों को भी सर्टिफाई किया है जो 85 प्रतिशत कीटाणुओं को मारने का दावा करते हैं.
पतंजलि के सीईओ ने आगे कहा, ‘आईएमए, जैसा वे दावा करते हैं कि एक संस्था है जो वैज्ञानिक नियमों को मानती है. आईएमए जैसे वैज्ञानिक संस्थान ने ऐसे उत्पादों को प्रमाणित और अधिकृत करने के लिए कुछ अंतरराष्ट्रीय मानकों और मानदंडों को अपनाया होगा.’
उन्होंने आगे आग्रह किया कि डॉक्टरों की लॉबी को इस तरह के फैसले लेने वाली समिति के सदस्यों के नाम और इसमें अपनाए जाने वाले वैज्ञानिक मापदंडों का खुलासा करना चाहिए और यह भी बताना चाहिए कि ऐसे समर्थन के लिए वे कितने पैसे लेते हैं.’
उन्होंने कहा कि प्रत्येक ब्रांड के प्रोमोशन के लिए आईएमए को पत्रिकाओं या शोध पत्रों में इसका वैज्ञानिक आधार या अध्ययन प्रकाशित करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘हम आईएमए से उन सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक रूप से सामने रखने का अनुरोध करेंगे.’
उन्होंने दावा किया कि कुछ सौदों के लिए तो लॉबी ने एंडोर्समेंट फी के तौर पर 30 लाख से 50 लाख रुपये तक लिए है. कुछ मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘पूर्व में एसोसिएशन को फ्रूट जूस, साबुन, ओट्स और वॉटर प्यूरीफायर के एंडोर्समेंट और करोड़ों में शुल्क वसूलने के लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है.’ इस मामले की मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने जांच भी की थी.’
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‘आईएमए सदस्यों की संख्या हजारों में हैं, लाखों में नहीं’
बालकृष्ण ने आईएमए की सदस्य संख्या को लेकर भी निशाना साधा जो लगभग 3.5 लाख है. उन्होंने कहा, ‘संगठन का दावा है कि इसके सदस्य 3.5 लाख हैं. लेकिन सोशल मीडिया चैनलों पर उसे फॉलो करने वालों की संख्या हजारों में ही है…आईएमए का तो दावा है कि आधुनिक चिकित्सा से जुड़े डॉक्टर ज्यादा आधुनिक और शिक्षित हैं. क्या वे सोशल मीडिया चैनलों पर नहीं हैं या फिर वे इसे फॉलो नहीं करते हैं? मुझे यही लगता है कि उनके सदस्यों की संख्या हजारों में है, लाखों में नहीं.’
उन्होंने कहा, ‘जो डॉक्टर वास्तव में सेवा भाव से काम करना चाहते हैं वे मरीजों की देखभाल में व्यस्त हैं. उनके पास राजनीति करने, इलाज को लेकर गुटबाजी करने और दूसरों पर निशाना साधने का समय नहीं है.’
कोरोनिल या आयुर्वेद के खिलाफ नहीं, हम सिर्फ विज्ञान पर बात करते हैं : आईएमए
डॉ. जयलाल के मुताबिक, आईएमए के पतंजलि की कोरोनिल और आयुर्वेद के खिलाफ नहीं है. उन्होंने कहा, ‘वास्तव में तो आईएमए आयुर्वेद का समर्थन करता है. लेकिन हमने प्रतिक्रिया तब जताई जब कोरोनिल को कोविड-19 के इलाज के रूप में प्रोमोट किया गया था. इस महामारी के दौर में किसी को यह कहने से बचना चाहिए कि यह दवा कोविड-19 का इलाज’ है, जबकि इसे केवल 49 लोगों पर टेस्ट किया गया है. हमने अपनी आवाज उठाई क्योंकि दावे में वैज्ञानिक आधार का अभाव था.’
आईएमए की तरफ से ब्रांड एंडोर्समेंट्स किए जाने के पतंजलि के हमले पर उन्होंने यह भी कहा, ‘ये ब्रांड एंडोर्समेंट नहीं केवल एसोसिएशन है. प्रोमोशन फीस के बारे में किए गए दावे निराधार हैं क्योंकि हमारे बारे में सब कुछ सार्वजनिक है और कोई भी चाहे तो हमारी फंडिंग की जांच कर सकता है. हम केवल सदस्यता शुल्क और कुछ वैज्ञानिक अकादमिक कार्यक्रमों से धन प्राप्त करते हैं.’
आईएमए सदस्यों की संख्या के बारे में बालकृष्ण के आरोप पर जयलाल ने कहा, ‘आईएमए के लगभग 3.46 लाख सदस्य हैं. यह 92 साल पुराना संगठन है और आचार्य कोई ऐसे व्यक्ति नहीं है, जिनके सामने हमें अपनी पहचान साबित करने की जरूरत हो. आईएमए का हर नेता विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक आधार पर काम करता है, जो इस समुदाय और बिरादरी के कल्याण में अपना समय और ऊर्जा खर्च करता है.’
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कोरोनिल कोरोना की दवाई है या नही ये मे नही जानता परंतु कोरोनिल लेने से मेरे पुरे परिवार को फायदा हुआ है तीन दिन हमारी रिपोर्ट नेगेटिव आ गई और इस दवा से किसी भी प्रकार का साईडइफेक्ट् नही हुआ
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