नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने यह सुनिश्चित किया कि उनके एडिशनल प्राइवेट सेक्रेटरी अरुण कुमार सिंह को उनके मूल कैडर एयर इंडिया में वापस भेज दिया जाए. दिसंबर में सीबीआई के द्वारा सिंह के आवास पर छापा मारा गया था.
केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान ने जनवरी के पहले सप्ताह में एयर इंडिया के सीएमडी प्रदीप सिंह खारोला को पत्र लिखकर भ्रष्टाचार के आरोप में काम करने वाले एक सिविल सेवक अरुण कुमार के खिलाफ ‘सख्त से सख्त कार्रवाई’ की सिफारिश भी की है.
उसी सप्ताह सिंह को एयर इंडिया में वापस भेज दिया गया. पासवान ने दिप्रिंट से पुष्टि की कि उन्होंने एयर इंडिया को पत्र लिखकर कुमार की वापसी की मांग की थी, लेकिन आगे कोई विवरण नहीं दिया.
मुकदमा
सिंह को भ्रष्टाचार के एक मामले में पिछले साल दिसंबर में रिश्वत लेने के बदले पद का दुरुपयोग करने के आरोप में दर्ज किया गया था.
सीबीआई ने 27 दिसंबर को अपनी भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में निरीक्षक से एक लिखित शिकायत प्राप्त की थी, जिसमें सिंह पर पैसे के बदले में मंत्रालय के मेट्रोलॉजी विभाग से एक प्रयोगशाला के लिए अनुमोदन की सुविधा देने का आरोप लगाया गया था. कथित रूप से सिंह ने लेन-देन दिल्ली की निवासी मोनिका गिल के माध्यम से आंध्र प्रदेश के निवासी रामचंद्र राव और उसके सहयोगी एमवी कृष्णय्या से किए थे.
4 अप्रैल 2019 को दायर एक शिकायत पर प्रारंभिक जांच के बाद सीबीआई ने सिंह को गिरफ्तार किया था. 27 दिसंबर को दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार एक सूत्र ने पुलिस को सूचित किया था कि गिल ने उपभोक्ता मंत्रालय सहित विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में संपर्क बनाया था. वह भ्रष्ट और संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त थीं.
शिकायत में आरोप लगाया गया था कि गिल उन लोगों के संपर्क में थीं, जिन्होंने मंत्रालयों में काम किया था और उन्होंने काम करने के नाम पर उन लोगों से पैसा वसूला था.
शिकायत में कहा गया है कि दो व्यक्ति सारिकी और कृष्णय्या- गिल के संपर्क में आए, क्योंकि उनके पास कानूनी मेट्रोलॉजी विभाग में कुछ काम लंबित थे, जो कि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के अंतर्गत आते हैं.
2012 में सारिकी ने आंध्र प्रदेश में वेट एंड मेजर की एक सरकारी प्रयोगशाला स्थापित करने की अनुमति के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी मंजूरी नहीं मिली थी. सीबीआई अधिकारी ने कहा, ‘सारिकी और कृष्णा दोनों द्वारा मामले को देखा जा रहा था.’ इस संबंध में, गिल ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वह अपने संपर्कों का उपयोग मंत्रालय में कर सकते हैं. यदि वे संबंधित अधिकारियों और उसको भुगतान करते हैं.
प्राथमिकी के अनुसार, सारिकी ने गिल को 70 लाख रुपये सौंपने की सहमति दी थी. अधिकारी ने कहा, ‘मुखबिर ने एजेंसी को यह भी बताया कि इस भुगतान का एक हिस्सा बैंक के खाते में नकदी, चेक और हस्तांतरण के रूप में सारिकी द्वारा गिल को भेजा गया था.’
लेन-देन का विवरण
प्राथमिकी के अनुसार सारिकी ने फरवरी 2018 के बाद विभिन्न लेन-देन के माध्यम से एक्सिस बैंक में गिल के खाते में 8,19,850 रुपये जमा किए थे. सीबीआई ने कहा कि प्रारंभिक जांच में कथित तौर पर पता चला है कि गिल सिंह के संपर्क में थीं. एफआईआर में कहा गया है कि यह भी पता चला है कि गिल ने सिंह के खाते में 1 लाख रुपये ट्रांसफर किए थे. सीबीआई ने मामले में लेन-देन का एक विवरण भी तैयार किया है.
अधिकारी ने कहा कि गिल के पास तीन अलग-अलग लेन-देन में 8,19,850 रुपये की राशि जमा की गई थी. हालांकि, केवल 1 लाख रुपये नेट बैंकिंग के माध्यम से सिंह को हस्तांतरित किए गए थे, हमें संदेह है कि अधिक धन दूसरे माध्यमों से स्थानांतरित किया गया था.
पैसा गिल के माध्यम से सिंह तक पहुंचा, जो कि प्रयोगशाला के लिए जीएटीसी अधिसूचना के लिए उसके संपर्क में थीं जो कि यह उनका कनेक्शन साबित करता है. प्राथमिकी में कहा गया है कि उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि सारिकी, गिल और सिंह ने एक गैरकानूनी कृत्य करने के लिए आपराधिक साजिश रची.
एफआईआर से पता चलता है कि यह अधिनियम भ्रष्ट या अवैध कामों में शामिल अधिकारियों को प्रभावित करने के लिए था, ताकि वो उनका फेवर कर सकें और इसके लिए कृष्णय्या और सारिकी से गिल ने स्वीकृति ले ली और तत्पश्चात जीएटीसी अधिसूचना जारी करने के लिए अरुण कुमार सिंह को स्थानांतरित कर दिया गया.
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