पुडुचेरी में एक संगीत कार्यक्रम की तैयारी के दौरान, तमिल रैपर और गीतकार अरिवु ने श्रीलंका में चल रहे विरोध पर कुछ गीत लिखे और उसी समय मंच पर इसे परफॉर्म भी किया. वह दिन था 14 अप्रैल, जो तमिल नव वर्ष का दिन था, और यह रैपर उस युवा प्रदर्शनकारी के एक वीडियो क्लिप से प्रेरित हुए थे, जो इस संकटग्रस्त द्वीपीय राष्ट्र में विरोध प्रदर्शनों की पहली लहर में भाग ले रहा था. जब वे समुद्र के तट पर बसे इस शहर में एक भीड़ के सामन गा रहे थे तो श्रीलंका में चाय के बागानों में काम करने के बारे में उनकी नानी द्वारा सुनाई कहानियां उनके जेहन में थीं.
28 वर्षीय-अरिवु, जिन्होंने मुख्यधारा के तमिल सिनेमा और एक स्वतंत्र कलाकार के रूप में 70 से अधिक गीत लिखे हैं, ने कहा, ‘मैं श्रीलंका में अपने दोस्तों से बात कर रहा था और मैंने एक महत्वपूर्ण बात – जिस तरह से लोग अपने मतभेदों के बावजूद एक साथ आए – से जुड़ाव महसुस किया.’
बैला, जिसकी जड़ों को 16 वीं शताब्दी में श्रीलंका के पुर्तगाली उपनिवेशीकरण के साथ जोड़ा जा सकता है, की आकर्षक ताल के साथ रचा गया अरिवु का यह गीत, ‘सीलोनकार’, इसी सप्ताह रिलीज़ होने वाला है. बैला (जिसे बेइला भी कहा जाता है और जो पुर्तगाली शब्द बेलर से, जिसका अर्थ है नृत्य करना से बना है) संगीत का एक स्वरूप है, जो श्रीलंका में और गोवा के कैथोलिकों के बीच काफी लोकप्रिय है. यह श्रीलंका में गृह युद्ध की समाप्ति की 13वीं वर्षगांठ पर ‘तमिल यादगार दिवस’ के दिन आएगा.
जब दिप्रिंट ने पिछले हफ्ते अपने चेन्नई स्टूडियो में अरिवु से मुलाक़ात की, तो उन्होंने हमारे सामने ‘सीलोनकार’ का एक टीज़र पेश किया और उनके मुंह से इस गीत के बोल फूट पड़े:
पोराडु पोराडु इलंगाई
(श्रीलंका तुम विरोध करो, विरोध करो)
इनि उन नादुम उन वीदं विलंगा
(अपने देश और घर की समृद्धि के लिए)
इनवाड़ाम मडवाथम जेइक्कादु
(जातीयता और धर्म का विभाजन जीतेगा नहीं)
अथेल्लम सर्वदिगरिक्कु उरीकाथु
(यह सत्ताधारी वर्ग को समझ में नहीं आएगा)
अप्पो उरीक्कनुम्ना एन्ना सेय्यानुं
(अगर यह समझने की जरूरत है कि क्या किया जाना चाहिए)
नंबेलम ओन्नु सेंधु संदाई सेय्यानुम
(हम सभी को एक साथ आना होगा और उनका विरोध करना होगा)
भारत में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान, अरिवु के ननिहाल पक्ष पूर्वजों (मैटरनल अनसस्टर्स) को तमिलनाडु से श्रीलंका के चाय बागानों में काम करने के लिए ले जाया गया था.
उन्होंने अपनी नानी वल्लियममल की कहानियों, जो गायक धी के साथ उनके प्रसिद्ध गीत ‘एनजॉय एन्जामी’ में शामिल हैं, को याद करते हुए कहा, ‘वह तब अनछुई जंगली जमीन हुआ करती थी. तमिलों ने उस जमीन पर काम किया, इसे साफ़ किया और इसे एक बड़ी सी अर्थव्यवस्था में बदल दिया. कहा जाता है कि तीन ‘टी’ : टेक्सटाइल, टूरिज्म और टी – साथ मिलकर श्रीलंका को बनाते हैं. चाय का उद्योग तो पूरी तरह से यहां से जाने वाले तमिल लोगों की कड़ी मेहनत की वजह से ही खड़ा हुआ था.’
अरिवु चाय बागान के जीवन के बारे में कहानियां सुनते हुए ही बड़े हुए हैं. वे कहानियां जिनमें महंगी कार चलाने वाले जमींदार थे जबकि दलित मजदूरों को ठीक-ठाक मजदूरी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था. वे कहते हैं, ‘10 से भी अधिक परिवार 100 साल के लिए पट्टे पर दी गई जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर बने छोटे बक्सों में रहते थे.’ उन्होंने अपने मध्यम आकार के स्टूडियो की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘इस कमरे के चारों ओर देखिये और फिर इतनी सी ही जगह में 10 परिवारों के फिट होने की कल्पना कीजिए.’
उनके नाना-नानी श्रीलंका के चाय बागान में बसे इसी समुदाय का हिस्सा थे. उन्होंने कहा, ‘लेकिन उत्पीड़ित और एक विदेशी भूमि में बसे होने के बावजूद वह समुदाय बहुत प्रतिभाशाली था और उन्होंने अपनी कला के स्वरूपों को जीवित रखा. वे सिलंबम को जानते थे, लोक गीत गाते थे.’
यह 1964 में भारतीय और श्रीलंकाई सरकारों के बीच हुआ सिरिमा-शास्त्री (सिरिमा भंडारनायके – लाल बहादुर शास्त्री) समझौता था, जिसने श्रीलंका में वल्लियमल और भारतीय मूल के अन्य लोगों की स्थिति और उनके भविष्य का फैसला किया. उनके नाना-नानी को वहां की सरजमीं से उखाड़ कर वापस भारत भेज दिया गया.
अरिवु ने कहा, ‘वे सभी भारत वापस आ गए थे, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि जाना कहां है. वे सलेम का नाम तो जानते थे, लेकिन यह नहीं जानते थे कि यह गांव है कहां. समुदाय के कई लोग नौकरी की तलाश में असम और ऊटी जैसे स्थानों पर बसे चाय के बागानों में चले गए. मेरे नाना-नानी को अरक्कोनम, जहां एक रेलवे स्टेशन बनाया जा रहा था, में मजदूर के रूप में काम मिला. मेरी नानी ने कड़ी मेहनत की और वहां पत्थर बिछाये.’
संगीत यदि विरोध और परिवर्तन का वाहन है, तो अरिवु इसका चालक है. वे लोकप्रिय संस्कृति और सामाजिक मुद्दों को आसानी से साथ लाते हैं, और उन्होंने सुपरस्टार रजनीकांत की 2018 की हिट फिल्म ‘काला’ और 2021 की अभिनेता विजय द्वारा अभिनीत फिल्म ‘मास्टर; के लिए गीतों के बोल भी लिखे हैं. वह इंडी बैंड ‘द कास्टलेस कलेक्टिव’ का भी हिस्सा हैं, जिसे तमिल निर्देशक पा रंजीत का समर्थन प्राप्त है. उनके कई गीत आज के दिन की राजनीति पर एक निडर टिप्पणी जैसे हैं और जिस तरह से जाति भारतीय समाज को पीड़ित करती है, उस पर एक बारीक नज़र डालते है.
2020 के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम या सीएए के विरोध के साथ एकजुटता दिखाने वाले उनके गीत ‘सांडा सेवोम’ को यूट्यूब पर 11 लाख से भी अधिक बार देखा गया था, जबकि ‘एंजॉय एन्जामी’- जो शुरू में अरिवु को इसके गीतकार के रूप में श्रेय नहीं दिए जाने की वजह से विवादों में घिर गया था – को पिछले साल रिलीज होने के बाद से 41 करोड़ बार देखा जा चुका है. ‘एन्जॉय एन्जामी’ श्रीलंका में तमिल बागान के कामगारों के प्रति एक श्रद्धांजलि थी और यह अरिवु की नानी वल्लिअम्मल की कहानी है.
उन्होंने अपने नवीनतम गीत, ‘पोराडु इलंगई’ की प्रेरणा के बारे में बताते हुए कहा, ‘विशेष रूप से श्रीलंका जैसे देश में, जहां एक भयानक गृह युद्ध देखा गया था और जो एक ऐसी भूमि को बहुत सारा दर्द समेटे है, मैं एकता के लिए एक जगह देखता हूँ.’ वे कहते हैं, ‘जब मैंने मजदूर वर्ग के लोगों को एक साथ आते देखा, तो मुझे लगा कि मुझे इसके बारे में बात करने की जरूरत है.‘
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अम्बेडकर से लेकर केंड्रिक लैमर तक
एक युवा बालक के रूप में, बी.आर. अम्बेडकर से अरिवु की पहली बार मुलाकात गीतों के माध्यम से हुई थी. तमिलनाडु का उत्तरी आरकोट जिला, जहां वे पले-बढ़े हैं, को अक्सर ‘अम्बेडकर जिला’ के रूप में जाना जाता था, क्योंकि इसने पिछले कुछ वर्षों से ढेर सारे अम्बेडकरवादी आंदोलनों की मेजबानी की थी. उनके माता-पिता, कलैनेसन और थेनमोझी, जो दोनों शिक्षक थे, उन्हें कई राजनीतिक बैठकों में भी ले गए.
करीवु बताते हैं, ‘लोग बहुत सारे गाने गाते थे और हर गाने में एक राजनीतिक मुद्दा होता था. वे हर चीज पर सवाल उठाते थे. इसलिए, इससे पहले कि मैं अम्बेडकर के बारे में पढ़ता, वे उन्हें संगीत के माध्यम से मेरे पास ले आए.’ अब उनके स्टूडियो में स्पीकर के ऊपर अम्बेडकर की एक मूर्ति रखी हुई है.
वे कहते हैं, ‘मेरे परिवार ने जानबूझकर हमें राजनीतिक होना नहीं सिखाया, यह उनके जिए हुए अनुभव थे जिन्होंने हमें राजनीतिक बना दिया. हम छोटी-छोटी बातों से खुश हो जाते थे. मेरी नानी को वह समय याद आता था जब मेरे नानाजी एक दिन घर में ‘बीफ करी’ लाए थे. उस समय, ‘बीफ करी’ खरीदना एक बहुत बड़ी बात थी, जैसे की आज कोई मर्सिडीज-बेंज कार खरीदना है, और ये साधारण से सुख ही थे जिनका आनंद उठाया जाता था.’
अपने बचपन की कला और संगीत से प्रेरित होते हुए अरिवु ने एक छात्र के रूप में ही कवितायेँ लिखना शुरू कर दिया था. दलित सुब्बैया, जिन्हें भारतीय ‘कामकाजी वर्ग के बॉब मार्ले’ के रूप में जाना जाता है, मुगिल परमानंदम, एक सरकारी कर्मचारी, जो विरोध के गीत गाते थे, और उनकी अपनी नानी वल्लिअम्मल, जो ओपारी (अंतिम संस्कार में गाया जाने वाला लोक संगीत) गाती थीं, ने उनके कला स्वरूप के लिए आधार प्रदान किया.
उन्होंने कहा, ‘उन सब ने अपने समुदाय के दर्द के बारे में लिखा; उन्होंने इस बात की चिंता किए बिना लिखा कि क्या उनके गाने यूट्यूब पर प्रदर्शित होंगें या किसी फिल्म के गीत के रूप में दिखाई देंगें या फिर दुनिया भर में प्रसारित होंगें. उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं थी. वे बस अपने सामने वाले व्यक्ति को यह व्यक्त करना चाहते थे कि उन्हें कैसा लग रहा है.’ यही वह चीज जिसका अरिवु अनुकरण करना चाहतें हैं. उनकी आधुनिक प्रेरणा अमेरिकी रैपर्स कान्ये वेस्ट (जो अब ‘ये के’ रूप में जानी जाते हैं) और केंड्रिक लैमर हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैं भी कला को एक उपकरण के रूप में उपयोग करता हूं. ‘सार’ तो पहले से ही मौजूद होता है, मैं इसे केवल हिप हॉप पर सेट करता हूं. अंतर् बस यही है कि जहां मैं सॉफ्टवेयर का उपयोग करता हूं, वहीँ मेरे पूर्वजों ने नारियल के गोले का इस्तेमाल करते थे. इस कला को अपनाने के लिए मुझे बहुत से लोगों ने प्रेरित किया है, हालांकि मैं कहूंगा, मैं उनके जितना अनुभवी नहीं हूं.‘
अरिवु उस युवा पीढ़ी के आलोचक हैं जो अपने समुदायों की मदद नहीं करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘यदि आप एक उत्पीड़ित जाति की पृष्ठभूमि से निकल का ऊपर आए हैं, तो यह केवल इसलिए है क्योंकि आपके पहले कई लोगों ने विरोध किया और आपके लिए यह जगह तैयार की. उन्हीं लोगों की बदौलत ही आप यहां तक पहुंचे हैं. यदि आप अपने लोगों की तरफ पीछे मुड़कर नहीं देखते हैं तो यही वह जगह है जहां से चीजें टूटनी शुरू हो जाती हैं और समाज में समस्याएं उत्पन्न होती हैं. शीर्ष पर बैठे लोगों को दोष देने का कोई अर्थ नहीं है; आपको अपने से नीचे के लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाने की दरकार है. इसलिए श्रीलंका वाले वीडियो क्लिप में उस युवक को देखना मेरे लिए प्रेरणादायी था.’
सांस्कृतिक हड़प
अपने संगीत के मजदूर वर्ग से काफी अधिक प्रेरित होने के साथ ही अरिवु को लगता है कि ‘मजदूर वर्ग द्वारा बनाई गई कला’ को अक्सर हल्के में लिया जाता है और इसे शासक वर्ग द्वारा ‘हड़प’ लिया जाता है. श्रमिक वर्ग के कला स्वरूपों के अब अधिक-से-अधिक संख्या में मुख्यधारा के तमिल सिनेमा में अपनी जगह बनाने के साथ ही उन्होंने अन्य लोगों द्वारा बिना उचित श्रेय दिए ‘इसे छीन लेने’ के खिलाफ चेतावनी भी दी.
उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर ओपारी एक मौखिक कला है – यह मौखिक साहित्य की तरह है. इसे वर्षों से एक से दूसरे शख्स को पारित किया गया है. इसका प्रतिनिधित्व करें, इसके बारे में बात करें, लेकिन इसे उनसे न छीनें कि जिनका यह वास्तव में है.’
वे कहते हैं, ‘मेरे मन में मैं इस कुर्सी पर नहीं बैठा हूं, दरअसल मैं जमीन पर बैठा हूं, और इसके जरिए मैं बहुत से लोगों से जुड़ रहा हूं क्योंकि दुनिया में हम सभी के बीच जमीन ही आम चीज है. इस तरह मैं कई लोगों से जुड़ा होता हूं, इससे मुझे प्रेरणा मिलती है. मैं जमीन से जुड़े किसी भी व्यक्ति के साथ शांति और प्रामाणिकता की भावना महसूस करने में सक्षम हूं.’
अरिवु के लिए ऐसे जुड़ाव महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने अपने दोस्त गण बालचंदर, जो चेन्नई के संगीत की एक शैली ‘गण’ को गाने वाले एक लोकप्रिय कलाकार हैं, के साथ एक शाम की गई एक सैर को याद किया. अरिवु बताते हैं, ‘उस शाम, सड़कों पर तमाम पुरुष और महिलाएं बालचंदर का अभिवादन करने के लिए रुक रहे थे, कुछ तो सेल्फी के लिए भी पूछ रहे थे. मैंने उनसे कहा कि जब तक आप मजदूर वर्ग को कला देते रहेंगे, तब तक आपकी कला का अच्छे से ख्याल रखा जाएगा.’
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