नयी दिल्ली, 29 अप्रैल (भाषा) अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी ने मंगलवार को कहा कि संसद द्वारा मध्यस्थता अधिनियम पारित किये जाने के दो वर्ष बाद मध्यस्थता परिषद की स्थापना में देरी के लिए मानव संसाधन की कमी एक कारण है।
शीर्ष विधि अधिकारी ने यहां संवाददाताओं से कहा कि आज कई ऐसे कानूनों को क्रियान्वित करने में समस्या आ रही है।
उन्होंने कहा कि कई बार ‘हमें उस तरह का व्यक्ति नहीं मिलता, जैसा होना चाहिए। न्यायिक नियुक्तियों में भी हमें इसी समस्या का सामना करना पड़ता है।’’
वेंकटरमणी ने कहा कि जब केंद्रीय कानून मंत्री ने कुछ नाम सुझाए, तो उन्हें कुछ ‘एतराज’ था।
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उन्होंने मंत्री से कहा कि वह ‘बहुत जल्दबाजी न करें।’
उन्होंने कहा कि प्रधान न्यायाधीश ने भी उनसे इस बात पर सावधानी बरतने को कहा है कि इस पद के लिए किसे चुना जाए।
वेंकटरमणी ने कहा कि जो लोग इस पद के माध्यम से नेटवर्क बनाना चाहते हैं, वे इसके मकसद में मदद नहीं करते हैं और जो लोग ऐसे निहित स्वार्थों से परे देखते हैं, उन्हें इस पद के लिए चुना जाना चाहिए।
परिषद के लिए उपयुक्त व्यक्ति न मिलने के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मानव संसाधन की कमी समस्या का एक हिस्सा है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम उन्हें ढ़ूढ़ सकते हैं।’’
उन्होंने उम्मीद जताई कि परिषद का गठन जल्द ही हो जाएगा।
केंद्रीय विधि सचिव अंजू राठी राणा ने कहा कि सरकार इस मामले पर विचार कर रही है और जल्द ही इस पर निर्णय लिया जाएगा।
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि तीन मई को मध्यस्थता पर प्रस्तावित सम्मेलन संभवतः देश में मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र के एजेंडे को आगे बढ़ाएगा।
वेंकटरमणी ने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सम्मेलन को संबोधित करेंगी।
मध्यस्थता अधिनियम में मध्यस्थों को विनियमित करने के लिए भारतीय मध्यस्थता परिषद की स्थापना का प्रस्ताव है। इसके अन्य कार्यों में मध्यस्थों का पंजीकरण, मध्यस्थता सेवा प्रदाताओं और मध्यस्थता संस्थानों को मान्यता देना शामिल है।
कानून में उन विवादों की सूची दी गई है, जो मध्यस्थता के लिए उपयुक्त हैं या नहीं।
भाषा राजकुमार रंजन
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