नई दिल्ली: फेसबुक के कथित पक्षपात को लेकर पैदा हुए विवाद के बीच इस सोशल मीडिया मंच के भारत प्रमुख अजीत मोहन से बुधवार को एक संसदीय समिति ने करीब दो घंटे तक पूछताछ की. समिति में भाजपा और कांग्रेस के सदस्यों ने फेसबुक पर सांठगांठ करने और विचारों को प्रभावित करने का आरोप लगाया, जिसका कंपनी ने खंडन किया.
भाजपा के सदस्यों ने फेसबुक के कर्मचारियों के कथित राजनीतिक संबंधों को लेकर सवाल उठाए और दावा किया कि कंपनी के कई वरिष्ठ अधिकारी कांग्रेस और उसके नेताओं के लिए अलग-अलग तरीकों से काम कर चुके हैं, जबकि विपक्षी सदस्यों ने पूछा कि घृणा भाषण वाले वीडियो और सामग्री अब भी ऑनलाइन उपलब्ध क्यों हैं ? तथा सोशल मीडिया कंपनी ने इन्हें हटाया क्यों नहीं ?
सूत्रों ने बताया कि मोहन से समिति के सत्तारूढ़ और विपक्षी सदस्यों ने पूछताछ की. मोहन ने कुछ सवालों का मौखिक जवाब दिया, जबकि उन्हें तकरीबन 90 सवाल दिए गए हैं जिनका जवाब उन्हें लिखित में देना है.
सूत्रों के मुताबिक, 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की केरल इकाई और संप्रग सरकार से मोहन के जुड़ाव के बारे में सवाल किए गए, जिसपर उन्होंने कहा कि वह एक पेशेवर के तौर पर पार्टी से जुड़े थे ना कि किसी राजनीतिक हैसियत से .
भाजपा सांसदों ने यह भी आरोप लगाया कि फेसबुक के लिए तथ्यों की जांच करने वाले तीसरे पक्ष की कंपनियों में उन लोगों का प्रभुत्व है जो वामपंथी विचारधारा का अनुसरण करते हैं या कांग्रेस के लिए काम कर चुके हैं. भगवा दल के सांसदों ने सोशल मीडिया कंपनी और तथ्यों की जांच करने वाली उसकी साझेदार कंपनी के शीर्ष प्रबंधन में शामिल कई कर्मियों के नामों का हवाला दिया.
यह भी पढ़ें: ट्रोलिंग, फेक न्यूज़, डेटा चोरी और भेदभाव का गढ़ बन चुका है सोशल मीडिया
सूत्रों के मुताबिक, फेसबुक कर्मी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि कंपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करती है और उसके यहां एक तंत्र है जिसमें नियमों का पालन किया जाता है और कार्रवाई की जाती है.
बैठक में मौजूद सूत्र ने नाम ना उजागर करने की शर्त पर बताया, ‘फेसबुक से संबंधित कई मुद्दों पर चर्चा की गई. कांग्रेस ने लेख और भाजपा तथा फेसबुक के बीच कथित सांठगांठ का मुद्दा उठाया. फेसबुक के नुमाइंदे ने आरोपों से इनकार किया और कहा कि वे पोस्ट की रिपोर्ट करने के लिए वैश्विक मानकों का अनुसरण करते हैं. उन्होंने भाजपा के साथ सांठगांठ के आरोप का भी खंडन किया.’
सुनवाई के बाद, फेसबुक कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, ‘हम माननीय संसदीय समिति के समय देने के लिए शुक्रगुजार हैं. हम खुद को एक खुला और पारदर्शी मंच बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है, साथ ही लोगों को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्ति और उनकी आवाज उठाने की अनुमति देते रहेंगे.’
समिति के अध्यक्ष और कांग्रेस नेता शशि थरूर ने बुधवार को ट्वीट कर कहा, ‘सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति की बैठक को लेकर मीडिया की रुचि को देखते हुए मैं बस इतना कह सकता हूं, हमने करीब साढ़े तीन घंटे बैठक की और इस मामले पर बाद में चर्चा जारी रखने पर सर्वसम्मति से सहमति बनी, जिसमें फेसबुक के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे.’
फेसबुक के प्रतिनिधियों के अलावा, कुछ अन्य भी समिति के समक्ष पेश हुए, जिस वजह से कार्यवाही करीब साढ़े तीन घंटे चली.
सूत्रों ने बताया कि फेसबुक के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा संपन्न नहीं हो सकी, 10 सितंबर को फिर से बैठक बुलाने का विचार था, लेकिन इस पर आम सहमति नहीं बन सकी क्योंकि कुछ सदस्यों ने इसका इस आधार पर विरोध किया कि समिति का कार्यकाल 12 सितंबर को पूरा हो रहा है और फिर इसका पुनर्गठन होना है.
सूत्रों ने बताया कि समिति में कुछ सदस्य थरूर को अध्यक्ष पद से हटाना चाहते थे, वहीं एक सदस्य ने थरूर के लिए एक तरह का ‘विदाई भाषण’ दिया, जिससे संकेत मिलता है कि उनके संसदीय समिति के प्रमुख पद पर बने रहने की संभावना नहीं है.
सुरक्षा और दुरुपयोग
समिति ने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और डिजिटल क्षेत्र में महिला सुरक्षा पर विशेष जोर देने सहित सोशल/ऑनलाइन न्यूज मीडिया मंचों के दुरूपयोग की रोकथाम के विषय पर फेसबुक के प्रतिनिधियों को उनके विचार सुनने के लिये बुलाया था.
समिति ने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के प्रतिनिधियों को भी इस विषय पर बुलाया था, जबकि कुछ डिजिटल मीडिया कार्यकर्ताओं सहित कुछ अन्य ने भी समिति के समक्ष अपने बयान दर्ज कराये हैं.
एक अधिकारी ने बताया कि समिति के अध्यक्ष सहित इसके 18 सदस्य बैठक में उपस्थित थे.
इस बीच, तृणमूल कांग्रेस ने फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग को पत्र लिखकर सोशल मीडिया मंच का भाजपा के प्रति कथित झुकाव का मामला उठाते हुए दावा किया कि इस मामले में सार्वजनिक तौर पर पर्याप्त सबूत मौजूद हैं.
पार्टी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने जुकरबर्ग को लिखे पत्र में उनके साथ पहले की मुलाकात का जिक्र भी किया, जिसमें इनमें से कुछ मामलों को उठाया गया था.
माकपा सांसद पी.आर. नटराजन ने थरूर को पत्र लिखकर भाजपा के साथ फेसबुक की कथित सांठगांठ की आपराधिक जांच कराने की मांग की है.
थरूर की यह घोषणा कि समिति अमेरिकी समाचार पत्र वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित उस खबर के बारे में फेसबुक का पक्ष सुनना चाहेगी, जिसमें (अमेरिकी अखबार की खबर में) दावा किया गया है कि सोशल मीडिया मंच ने नफरत भरे भाषण से जुड़े अपने नियमों को भाजपा के कुछ नेताओं पर लागू करने की अनदेखी की, जिसपर समिति में सत्तारूढ़ दल (भाजपा) के सदस्यों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी.
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस नेता (थरूर) अपना और अपनी पार्टी का राजनीतिक एजेंडा आगे बढ़ाने के लिये समिति का इस्तेमाल कर रहे हैं और यहां तक कि उन्होंने (दुबे ने) समिति के अध्यक्ष पद से थरूर को हटाने की भी मांग की थी.
वहीं, इस मुद्दे पर सोमवार को राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप फिर से शुरू हो गया, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दावा किया कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने फेसबुक को ‘बेनकाब’ कर दिया है.
यह भी पढ़ें: कोविड क्वारेंटाइन में नेटफ्लिक्स और अमेज़न ही लगातार मेरे साथी थे: किरन मजूमदार शॉ
कांग्रेस नेता ने ट्वीट किया, ‘किसी को भी हमारे राष्ट्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जा सकती. उनकी अवश्य ही जांच होनी चाहिए और दोषी पाये जाने पर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए.’
वहीं, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मंगलवार को फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग को तीन पृष्ठों वाला पत्र लिखकर कहा कि फेसबुक के कर्मचारी चुनावों में लगातार हार का सामना करने वाले लोगों तथा प्रधानमंत्री और वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों को ‘अभद्र शब्द’ कहने वालों का समर्थन कर रहे हैं.