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Wednesday, 24 April, 2024
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भाजपा सांसदों ने संसदीय समिति की बैठक में पीएम केयर्स फंड के ऑडिट का किया विरोध

लोक लेखा समिति की बैठक में, भाजपा के12 सांसदों समेत ज्यादातर सदस्यों ने कोविड पर चर्चा कराने के समिति के अध्यक्ष और कांग्रेस सांसद अधीर चौधरी के सुझाव का भी विरोध किया.

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नई दिल्ली: लोक लेखा समिति (पीएसी) की शुक्रवार को हुई एक बैठक के दौरान वरिष्ठ भाजपा नेता जगदंबिका पाल ने अचानक ही पीएम केयर्स फंड के ऑडिट का मुद्दा उठाकर अपनी पार्टी के सहयोगियों को असजह स्थिति में डाल दिया, खासकर यह देखते हुए कि पीएसी अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने इसका उल्लेख तक नहीं किया था.

बैठक में विचार-विमर्श के बारे में जानकारी रखने वाले सांसदों ने दिप्रिंट को बताया कि यह सब उस समय हुआ जब भाजपा सांसद कोविड महामारी और अर्थव्यवस्था पर उसके प्रभाव पर चर्चा के संबंध में चौधरी के प्रस्ताव का विरोध कर रहे थे.

बहस गर्माती देख राज्यसभा सांसद भूपेंदर यादव के नेतृत्व में भाजपा सदस्यों ने नियमों का हवाला देना शुरू कर दिया कि क्यों कोविड पर चर्चा नहीं की जा सकती, इसी दौरान पीएसी के सदस्य पाल ने हस्तक्षेप किया और कहा जब कैग प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष को ऑडिट नहीं कर सकता, तो पीएम केयर्स फंड का ऑडिट क्यों होना चाहिए.

भाजपा के कुछ अन्य सांसदों ने भी उनका समर्थन किया और कहा कि पीएम केयर्स फंड का ऑडिट नहीं होना चाहिए.

इस पर, पीएसी अध्यक्ष और कांग्रेस सांसद चौधरी ने जवाब दिया कि उन्होंने तो पीएम केयर्स फंड के बारे में एक शब्द का भी उल्लेख नहीं किया है.

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इस पूरी बहस की जानकारी रखने वाले एक सांसद ने बताया, ‘उन्होंने कहा था कि कोविड संक्रमण के कारण देश में जो स्थिति उत्पन्न हो गई है उसे देखते हुए यह जरूरी है कि समिति महामारी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श करे.’

चौधरी ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा: ‘ऐसा लगता है कि भाजपा नेताओं के मन में डर है कि कोविड के कहर पर किसी भी विचार-विमर्श का मतलब पीएम केयर्स के बारे में भी चर्चा करना है.’

पीएम केयर (प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात स्थितियों में राहत) कोष कोविद-19 प्रकोप जैसी किसी भी आपातकालीन या संकट की स्थिति से निपटने के लिए एक समर्पित राष्ट्रीय कोष है.

28 मार्च को अपने गठन के बाद से ही, यह कोष विपक्ष की आलोचना का शिकार रहा है, जो प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष पहले से ही होने के बावजूद इसकी उपयोगिता और गठन के औचित्य पर सवाल उठा रहा है.

पाल, जिन्हें एक दिन के मुख्यमंत्री के तौर पर याद किया जाता है, शहरी विकास पर लोकसभा की स्थायी समिति के अध्यक्ष भी हैं. इसके अलावा वह संसद की कार्यमंत्रणा समिति, सामान्य प्रायोजनों संबंधी समिति और आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय की परामर्श समिति के सदस्य भी हैं.


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भाजपा ने कोविड पर चर्चा के प्रस्ताव का विरोध किया

पीएसी की बैठक में, कांग्रेस और भाजपा के सदस्यों के बीच मतभेद नजर आए. भाजपा ने यह कहते हुए कि समिति इसके लिए अधिकृत नहीं है, चौधरी का कोविड-19 महामारी से संबंधित मुद्दों पर चर्चा का सुझाव खारिज कर दिया.

पीएसी एक वित्त समिति है और केवल उन्हीं विषयों पर विचार-विमर्श कर सकती है, जिनके व्यय का ऑडिट भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा किया जाता है. कोविड का प्रकोप शुरू होने के बाद से पहली बार समिति ने अपना एजेंडा तय करने के लिए शुक्रवार को बैठक बुलाई थी.

नियमों का हवाला देते हुए भाजपा सांसद यादव ने कहा कि पीएसी केवल सरकार के उन खर्चों के बारे में ही चर्चा कर सकती है जिनका ऑडिट कैग करता है.

समिति के 20 सदस्यों में से ज्यादातर, भाजपा के 12 सांसदों समेत, ने कोविड-19 की स्थिति पर चर्चा के चौधरी के सुझाव का विरोध किया.

बीजू जनता दल (बीजेडी) के वरिष्ठ नेता भर्तहरि महताब ने भी भाजपा का ही समर्थन किया.

सूत्रों के मुताबिक वह महताब ही थे जिन्होंने उस समय चौधरी को नियमों का पाठ पढ़ाया, जब उन्होंने कहा कि इस मामले में स्वत: संज्ञान लेकर विचार-विमर्श किया जा सकता है.

सदस्यों ने कहा वोटिंग करा लें, अध्यक्ष का इंकार

चौधरी ने इसके उदाहरण भी सामने रखे जिसमें पीएसी ने स्वत: संज्ञान लेकर चर्चा की, जिसमें 2जी स्पेक्ट्रम बिक्री का मुद्दा शामिल है.

ऊपर उल्लिखित सांसद ने महताब की टिप्पणी उद्धृत करते हुए बताया, ‘महताब ने पीएसी अध्यक्ष को बताया कि समिति स्वत: संज्ञान पर फैसला ले सकती है और वह भी सर्वसम्मिति से. लेकिन समिति का अध्यक्ष अकेले स्वत: संज्ञान पर फैसला नहीं ले सकता.’

इसके बाद भाजपा सांसदों ने चौधरी से कहा कि इस पर वोटिंग करा लें कि क्या पीएसी को कोविड पर चर्चा करनी चाहिए.

चौधरी ने दिप्रिंट को बताया: ‘मैंने वोटिंग से इनकार कर दिया. समिति के मामलों पर सर्वसम्मति से ही फैसला होना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘यह बहुत ही दुखद है कि वरिष्ठ सदस्य कोविड के प्रकोप जैसे एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य आपातकाल के मुद्दे की समीक्षा के लिए तैयार नहीं है. क्या देश के नागरिकों को यह पता नहीं होना चाहिए कि सरकार इस प्रकोप को लेकर क्या उपाय कर रही है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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