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Sunday, 8 September, 2024
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संसद को खनिज अधिकारों पर कर संबधी शक्ति को सीमित करने की है विधायी क्षमता: न्यायालय

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नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति है, इसके बावजूद संसद देश में निर्बाध खनिज विकास सुनिश्चित करने के लिए राज्यों की इस शक्ति को सीमित कर सकती है।

शीर्ष अदालत की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत के फैसले में यह कहा है। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार राज्यों के पास है, लेकिन यह खनिज विकास के लिए संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा परिकल्पित सीमाओं के अधीन है।

पीठ ने कहा, ‘‘संसद यह निर्धारित कर सकती है कि खनिज अधिकारों पर राज्यों की कर लगाने की शक्ति को किस प्रकार सीमित किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इससे खनिज विकास में बाधा न आए। यदि संसद ऐसा करती है और सीमाओं की प्रकृति को निर्धारित करती है, तो राज्य खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति का प्रयोग करते समय उनका पालन करने के लिए बाध्य हैं।’’

पीठ में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्ज्ल भुइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे।

पीठ ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची दो की प्रविष्टि 23 के तहत, संसद द्वारा राज्य की नियामक शक्ति को समाप्त कर दिया गया है, जबकि सूची दो की प्रविष्टि 50 के मामले में, खनिज अधिकारों पर कर लगाने के लिए राज्यों को सौंपा गया विधायी क्षेत्र केवल सीमित है।

सूची दो की प्रविष्टि 23 राज्यों द्वारा खानों और खनिज विकास के विनियमन से संबंधित है, जबकि सूची दो की प्रविष्टि 50 खनिज अधिकारों पर राज्यों की कर लगाने की शक्तियों से संबंधित है।

पीठ ने कहा, ‘‘राज्य विधानसभाओं की कर लगाने की शक्तियों में किसी भी तरह की ढील से राजस्व जुटाने की उनकी क्षमता पर असर पड़ेगा, जिससे लोगों को कल्याणकारी योजनाएं और सेवाएं देने की उनकी क्षमता बाधित होगी।’’

पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि संघीय शासन व्यवस्था में प्रत्येक संघीय इकाई को एक निश्चित सीमा तक स्वतंत्रता के साथ अपने मूल संवैधानिक कार्यों को पूरा करने में सक्षम होना चाहिए।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने बहुमत के दृष्टिकोण से असहमति जताई। हालांकि उन्होंने प्रधान न्यायाधीश से सहमति जताई कि सूची दो की प्रविष्टि 50 के तहत ‘‘किसी भी सीमा’’ की अभिव्यक्ति का दायरा प्रतिबंध, शर्तों, सिद्धांतों के साथ-साथ संसद के कानून द्वारा निषेध को लागू करने के लिए पर्याप्त व्यापक है।

भाषा आशीष पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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