नयी दिल्ली/जयपुर/चंडीगढ़, 27 फरवरी (भाषा) दिल्ली हवाई अड्डे पर रविवार की सुबह भावनाओं का उफान देखने को मिला जब यूक्रेन से लौटे अपने बच्चों को देखकर उनके प्रतीक्षारत माता-पिता की चिंता खुशी में बदल गई और वे अपने बच्चों को सीने से लगाकर भावुक हो उठे । यूक्रेन में फंसे लोगों को लेकर दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरने वाली यह तीसरी निकासी उड़ान थी।
यूक्रेन से लौटे अपने बच्चों को पाकर माता-पिता ने उनका स्वागत फूलों, कार्ड और गर्मजोशी से गले लगाकर किया। हालांकि, दूसरी तरफ दर्जनों ऐसे भी माता-पिता हैं जिनके बच्चे अब भी युद्धग्रस्त देश में फंसे हुए हैं। सायरन बजते ही बंकर में छिपने को मजबूर इन भारतीय बच्चों के माता-पिता की आंखों से नींद गायब है।
हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट से इन लोगों के दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचते ही माहौल भावुक हो गया।
एयर इंडिया की तीसरी निकासी उड़ान एआई1940 को दिल्ली में सुबह लगभग सात बजे उतरना था, लेकिन यह सुबह 9.20 बजे कुछ घंटे की देरी से पहुंची। लगभग 2.45 बजे रोमानियाई राजधानी बुखारेस्ट से एअर इंडिया की दूसरी निकासी उड़ान 250 भारतीय नागरिकों को दिल्ली वापस ले आई। पहली निकासी उड़ान एआई 1944 शनिवार शाम 229 लोगों को बुखारेस्ट से मुंबई लेकर आई थी।
लौटने वाले बच्चे कई राज्यों के हैं, इसलिए राज्यों ने भी हेल्प डेस्क स्थापित किये हैं। प्रथम वर्ष के मेडिकल छात्र शशांक सारस्वत ने अन्य लोगों के साथ उनकी वापसी के लिए भारत सरकार और दूतावास को धन्यवाद दिया। शशांक ने कहा, “अब हम सुरक्षित हैं, लेकिन यूक्रेन में स्थिति तनावपूर्ण है।”
तीसरी निकासी उड़ान से उतरने वाले 240 छात्रों में से अधिकांश पश्चिमी शहर उजहोरोड में पढ़ रहे थे, जो रूसी सैन्य अभियान के कारण सबसे कम प्रभावित शहरों में से एक है। पीटीआई-भाषा से बातचीत में कई छात्रों ने कहा कि यूक्रेन के पश्चिमी शहरों की स्थिति देश के बाकी हिस्सों की तुलना में ‘काफी बेहतर’ है।
एक अन्य मेडिकल छात्र अभिजीत कुमार ने भी वापसी सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार को धन्यवाद दिया। अभिनव ने कहा कि यूक्रेन के पश्चिम में कोई हिंसा नहीं है, लेकिन हमें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि लोग घबराने लगे और किराने के सामान की कीमतों में तेजी आ गई।
इस बीच राजस्थान की महिला एवं बाल विकास मंत्री ममता भूपेश ने राज्य की आठ छात्राओं की अगवानी की जो रोमानिया के रास्ते जयपुर पहुंचीं। भूपेश ने जयपुर में संवाददाताओं से कहा कि हमे खुशी है कि राजस्थान सरकार के प्रयासों से हमारी लड़कियां मुश्किल हालात में अपने घर वापस आ सकीं। उन्होंने बताया कि राजस्थान के कई अन्य विद्यार्थी दिल्ली पहुंच रहे हैं।
यूक्रेन में हरियाणा और पंजाब के कई छात्रों ने अपने माता-पिता को आपबीती सुनाई, जो भारत सरकार से निकासी में तेजी लाने के लिए बड़ी बेताबी के साथ अपील कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर छात्र युद्ध प्रभावित देश के पूर्वी हिस्से में हैं।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने अपने ट्विटर हैंडल पर कीव में फंसे भारतीय छात्रों के समूह का एक वीडियो साझा किया है जिसमें वे मदद मांग रहे हैं। बाजवा ने ट्वीट किया, ‘‘नरेंद्र मोदी जी मुझे कीव, यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों की ओर से मदद के लिए कॉल आए हैं। उन्हें भोजन की आवश्यकता है। उन्हें तुरंत शहर से निकाला जाना चाहिए। कीव स्थित भारतीय दूतावास के बगल में स्कूल नंबर 169 में 174 भारतीय विद्यार्थी शरण लिये हुए हैं।’’
सोनीपत की मीना शर्मा ने कहा कि उनकी बेटी खार्किव में पढ़ती है। मीना ने मीडिया को बताया कि उनकी बेटी और उसके कई दोस्तों ने तीन दिनों से ना तो खाना खाया था और ना ही सोये थे।
चंडीगढ़ के रहने वाले दिनेश डोगरा की बेटी सिमरन भी खार्किव में फंसी हुई हैं। डोगरा ने कहा कि जब बाहर सायरन बजता है तो उसकी बेटी और उसके दोस्त बंकरों में शरण लेते हैं। सिमरन ने एक वीडियो कॉल पर मीडिया से कहा, ‘‘जब हवाई हमले के सायरन और गोलाबारी होती है, तो हम प्रार्थना करते हैं।’’
एक अन्य वीडियो में अपनी पहचान मानसी मंगला के रूप में बताने वाली एक छात्रा ने कहा कि वह अन्य विद्यार्थियों के साथ 40 किमी से अधिक पैदल चलने और कई तरह की दूसरी कठिनाइयां उठाने के बाद यूक्रेन-पोलैंड सीमा पर पहुंची। मानसी ने कहा, ‘‘जब हम पोलिश सीमा पर पहुंचे, तो हमने देखा कि रूसियों और पोलिश लोगों को अनुमति दी जा रही थी, लेकिन हमें उस स्थान पर वापस जाने के लिए कहा गया जहां हम पढ़ते हैं। कोई भी मदद करने के लिए तैयार नहीं था।’’
मानसी के साथ गई मेघना राठौर ने कहा कि हम न तो वापस जा सकते हैं और न ही हमें पोलैंड जाने की अनुमति है। मेघना ने पूछा कि उसे क्या करना चाहिये। हालांकि यूक्रेन में भारतीय दूतावास ने शनिवार को ट्वीट करके वहां फंसे सभी भारतीय नागरिकों से कहा था कि वह भारत सरकार के अधिकारियों के साथ समन्वय के बिना किसी भी सीमा चौकी पर नहीं जायें।
भाषा
संतोष नरेश
नरेश
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