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Monday, 23 December, 2024
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पैंगोंग त्सो में फ्रोजन लेक मैराथन की शुरुआत, गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड और जलवायु जागरुकता है लक्ष्य

इस मैराथन के आयोजन के जरिए एडवेंचर स्पोर्ट्स फाउंडेशन ऑफ लद्दाख (एएसएफएल) हिमालय के पिघल रहे ग्लेशियरों और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में जागरूकता फैलाना चाहता है. यह मैराथन लुकुंग से शुरू होगी और मान गांव में खत्म होगी.

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लेह: पानी पर चलने वाली चमत्कार की कहानियां हम सदियों से सुनते आ रहे हैं. लेकिन भारत की पहली पैंगोंग त्सो झील मैराथन 75 एथलीटों को जमे हुए पानी पर दौड़ाने वाली है. लद्दाख में एक एडवेंचर स्पोर्ट्स फाउंडेशन 20 फरवरी को 13,862 फीट की ऊंचाई पर जमी हुई पैंगोंग त्सो झील पर 21 किमी की हाफ मैराथन का आयोजन कर रहा है.

इस मैराथन के आयोजन के जरिए एडवेंचर स्पोर्ट्स फाउंडेशन ऑफ लद्दाख (एएसएफएल) हिमालय के पिघल रहे ग्लेशियरों और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में जागरूकता फैलाना चाहता है. यह मैराथन लुकुंग से शुरू होगा और मान गांव में खत्म होगा. इस मैरॉथन को सबसे अधिक ऊंचाई पर आयोजित करके आयोजक गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की भी उम्मीद कर रहे हैं.

एएसएफएल के फाउंडर चंबा टेशन एक यूट्यूब वीडियो में कहते दिखते हैं, ‘अगर आप सच में पर्यावरण के बारे में सोचते हैं और एडवेंचर लवर हैं तो ये ट्रिप आपके लिए हैं.’

ASFL मैराथन की मेजबानी के लिए लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद-लेह, पर्यटन विभाग और लेह जिला प्रशासन के साथ सहयोग कर रहा है.

75 प्रतिभागियों में से 50 लद्दाख के बाहर के हैं, जिनमें चार अंतरराष्ट्रीय एथलीट शामिल हैं. भाग लेने वाले कुछ स्थानीय एथलीटों ने अन्य शहरों में मैराथन में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है.

छीमेत नामग्याल ने कहा, “मैं लद्दाख का रहने वाला हूं, मुझे यहां दौड़ने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी, लेकिन अगर कोई निचले हिस्सों से आता है, तो उसे मौसम और ऊंचाई से तालमेल बिठाने में कम से कम 10-15 दिन लगेंगे.”

पैंगोंग त्सो में फ्रोजन लेक मैराथन में भाग लेने के लिए भी मौसम के अनुकूल होने के अलावा भी कई चीजें ध्यान रखनी होती हैं. गोवा के 29 वर्षीय गर्वित पारीक ने कहा, “मैं गोवा में रहता हूं, और अब मैं यहां इतनी ऊंचाई पर हूं. इसके अलावा मैं शाकाहारी भी हूं. इसलिए मेरे लिए चीजें उतनी आसान नहीं हैं.”

तो आप इस मैराथन की तैयारी कैसे करते हैं?

गर्वित चुकंदर और ड्राइफ्रूट्स खा रहे हैं. लेह के रहने वाले छीमेत नामग्याल (49) हफ्ते में पांच बार 10-12 किमी दौड़ते हैं.

वो कहते हैं, “मेरे क्षेत्र में कई जमी हुई झीलें हैं. मैं वहां प्रैक्टिस के लिए जाता हूं. इस दौरान मैं एक या दो बार गिरा भी हूं.”

नामग्याल पिछले सात सालों से पूरे भारत में मैराथन में हिस्सा ले रहे हैं. वह लद्दाख में तीन मैराथन में दौड़ चुके हैं, लेकिन उन्होंने सबसे हाल में मुंबई की मैराथन में हिस्सा लिया था.

वह नए लोगों के लिए कुछ सलाह साझा करते हैं. वो बोलते हैं कि जमी हुई झील पर तेज न दौड़ें.

उन्होंने कहा, “अगर बर्फ गिरती है, तो दौड़ना आसान होगा क्योंकि आपकी पकड़ बेहतर होगी.”

लेह के तैंतीस वर्षीय पद्मा टुंडुप को सोशल मीडिया पर पैंगोंग त्सो झील मैराथन के बारे में पता चला. उन्होंने उमिलिंग जा में हाफ मैराथन में भी भाग लिया है, जो 19,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर दुनिया का सबसे ऊंचा मोटरेबल पास है.

खराब मौसम के कारण मैराथन के लिए आयोजक की तैयारी का सबसे बड़ा हिस्सा हेल्थकेयर प्लानिंग है. यह भी पहली बार है कि कई मैराथन धावक इतनी ऊंचाई पर दौड़ रहे होंगे. हर पांच किलोमीटर पर एंबुलेंस, मेडिकल टीम और गर्म पानी के प्वाइंट तैयार होंगे.

लेकिन प्रतिभागियों को ठंड, फिसलने को लेकर और अत्यधिक हवा के प्रति भी सावधानी बरतनी होगी.

नामग्याल कहते हैं, “आपको ठंड से खुद को बचाना होगा. यहां तापमान माइनस 20 डिग्री रहने वाला है. मैं 3-4 पतली परतें पहनने जा रहा हूं,” जैसे ही शरीर गर्म होगा नामग्याल एक परत हटा देंगे. वो कहते हैं, “मैं इस मैराथन को दो घंटे में पूरा करने की उम्मीद कर रहा हूं.”

आयोजकों के अनुसार, 21 किमी की दौड़ पूरी करने का औसत समय 3 से 3.5 घंटे है.

इस मैराथन में दौड़ने के लिए सबसे बड़ी चिंता है जूतों की.

नामग्याल कहते हैं, “बर्फ पर दौड़ने के लिए अलग तरह के जूतों की जरूरत होती है.” लेकिन उनके पास इसका एक जुगाड़ (अस्थायी सुधार) भी है.

छीमेत नामग्याल कहते हैं, ‘अगर किसी के पास सही जूते नहीं हैं या वह उसे नहीं खरीद सकता है, तो आम जूतों में स्पाइक्स और स्क्रू भी लगा सकते हैं. | विशेष व्यवस्था द्वारा फोटो

“यदि किसी के पास सही जूते नहीं हैं या वह उन्हें नहीं खरीद सकता है, तो आप सामान्य जूतों में स्पाइक्स और स्क्रू भी लगा सकते हैं.”

आयोजक चंबा के दिमाग में दूसरी समस्याएं थीं. इस मैराथन में भाग लेने के लिए केवल 75 प्रतिभागियों को ही चुना जा रहा है, दूसरी मैराथन की तरह हजारों लोगों को नहीं.

वो कहते हैं, “पैंगोंग त्सो झील पर बर्फ की मोटाई 14-16 इंच के बीच है. इतनी मोटाई के साथ, बर्फ की चादर एक पिकअप ट्रक को भी आसानी से पकड़ सकती है. इसलिए यह प्रतिभागियों के लिए बिल्कुल सुरक्षित है.”

लेकिन एहतियात के तौर पर, प्रतिभागियों को केवल 10 के बैच में दौड़ने की अनुमति दी जाएगी और एक बार में सभी को नहीं दौड़ाया जाएगा. कई स्थानों पर प्रोटीन बार और पानी के साथ 5 एनर्जी स्टेशन भी होंगे जहां एथलीट रुक सकते हैं और रिफ्रेश हो सकते हैं.

चंबा ने कहा “लोग फ्रांस, यूके, यूएस और पूरे भारत सहित दुनिया भर से आ रहे हैं. हर कोई मैराथन से चार दिन पहले अभ्यस्त होने के लिए आया है. ”

मैराथन पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थायी शीतकालीन पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रशासन और पर्यटन विभाग की कोशिश का हिस्सा है.

लेह के डीएम श्रीकांत बालासाहेब सुसे ने कहा, “एलएसी के करीब होने के नाते, हमारा ध्यान सीमा से लगे गांवों में विकास को गति देने पर रहा है. पैंगोंग मैराथन सीमावर्ती निवासियों के लिए आजीविका के अवसर पैदा करने की एक ऐसी पहल है जो हमारे वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के उद्देश्यों में से एक है.”

उन्हें उम्मीद है कि मैराथन “कार्बन न्यूट्रल लद्दाख” और “खेल के जरिए सभी हितधारकों” की पर्यावरणीय और पारिस्थितिक जिम्मेदारियों का संदेश फैलाएगा.

फ्रोजन लेक मैराथन दुनिया भर में एक लोकप्रिय खेल है. उदाहरण के लिए, नॉर्वे, एक लोकप्रिय ‘आइसबग फ्रोजन लेक मैराथन‘ की मेजबानी करता है, जो 21 किमी लंबा है.

आयोजक इस मैराथन को ‘द लास्ट रन’ कह रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता लंबे समय से जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उठाते रहे हैं, लेकिन खेलों की ताकत कहीं अधिक है.


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