scorecardresearch
मंगलवार, 29 अप्रैल, 2025
होमदेशपंचायत चुनाव उम्मीदवारों को लंबित मामलों की जानकारी देना अनिवार्य: उच्चतम न्यायालय

पंचायत चुनाव उम्मीदवारों को लंबित मामलों की जानकारी देना अनिवार्य: उच्चतम न्यायालय

Text Size:

नयी दिल्ली, 26 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें कहा गया था कि पंचायत चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अपने खिलाफ लंबित मामलों की जानकारी देना अनिवार्य है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मंडी जिले के पांगना ग्राम पंचायत के प्रधान की बर्खास्तगी को बरकरार रखने के हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले की पुष्टि करते हुए यह टिप्पणी की।

उच्च न्यायालय ने 16 अक्टूबर, 2024 को कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा तथ्यों को छिपाना हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1994 के प्रावधानों के तहत ‘‘भ्रष्ट आचरण’’ के बराबर है और यह उनके चुनाव को रद्द घोषित करने का एक और वैध आधार है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘जहां तक ​​उच्च न्यायालय के आदेश और निर्णय को याचिकाकर्ता द्वारा दी गई चुनौती का सवाल है, हम इसमें कोई दम नहीं पाते। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि राज्य चुनाव आयोग द्वारा बनाए गए नियमों को उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ कानून का हिस्सा माना है, इसलिए पंचायत चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए इसके प्रावधानों का पालन करना अनिवार्य है।’’

पीठ ने कहा कि किसी भी मामले में याचिकाकर्ता बसंत लाल के खिलाफ लगाए गए कदाचार के आरोप के लिए अधिनियम, नियमों या विनियमों के किसी भी प्रावधान का संदर्भ देने की आवश्यकता नहीं है।

पीठ ने कहा, ‘‘यह ऐसा मामला है, जिसमें उन्होंने जानबूझकर अपने खिलाफ आपराधिक मामले के लंबित होने के तथ्य को छिपाते हुए एक झूठा हलफनामा दाखिल किया। इस तथ्य को छिपाना ही उनके चुनाव को रद्द करने का एक वैध आधार था।’’

लाल ने अदालत के समक्ष बताया था कि दो फरवरी, 2025 को एक आपराधिक मामले का खुलासा न करने के कारण उन्हें छह साल की अवधि के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया गया था।

हालांकि, पीठ ने उल्लेख किया कि लाल को आपराधिक मामले में बरी कर दिया गया था, जिसका विवरण उन्होंने कथित तौर पर छुपाया था और उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

याचिकाकर्ता को छह वर्ष के लिए अयोग्य ठहराए जाने के मुद्दे पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि यह सजा कठोर है, क्योंकि संबंधित आपराधिक मामले में उसे बरी किया जा चुका है।

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि इस तथ्य के मद्देनजर कि याचिकाकर्ता को आपराधिक मामले में बरी कर दिया गया है, ऐसा लगता है कि उसे छह साल तक चुनाव लड़ने से रोकना ‘‘प्रथम दृष्टया उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों के संबंध में कठोर दंड है।’’

भाषा आशीष माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments