नई दिल्ली: ‘मैं रोज घर से स्कूल जाती हूं लेकिन मेरा अटेंडेंस नहीं होता. मेरा कोई टेस्ट नहीं होता है. कोई एग्जाम नहीं. मैं बड़ी होकर पुलिस बनना चाहती हूं.’
यह कहानी है 12 साल के नोमिता की. जो पिछले जुलाई में पाकिस्तान छोड़ भारत रहने आई हैं. लेकिन ये कहानी केवल नोमिता की ही नहीं है. उनके 5 भाई बहन और हैं जिन्हें दिल्ली के स्कूलों में एडमिशन नहीं मिल रहा है. दिल्ली के भाटी माइन्स इलाके में पाकिस्तान से आए हज़ारों की संख्या में शरणार्थी रहते हैं. वहां इस शैक्षणिक सत्र में 9 बच्चों को जिनमें 4 बच्चे विनोत कुमार, सुनील कुमार, नोमिता और मुस्कान को भाटी माइन्स के संजय कॉलोनी में स्थित गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी हाई स्कूल में दाखिला नहीं मिल रहा है. वहीं एसडीएमसी के स्कूल ने पांच बच्चों आरती, दीपक कुमार, सपना कुमारी, अनिल और अशान को एडमिशन देने से मना कर दिया है. ये सभी पाकिस्तान से भारत आए हिंदू शरणार्थियों के बच्चे हैं.
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स्कूल वालों का कहना है कि इनके पास एडमिशन के लिए जरूरी कागजात नहीं है. जबकि उनके अभिभावकों की मानें तो दस्तावेज का प्रबंध करा पाना मुश्किल है. उनके लिए वापस पाकिस्तान जाकर स्कूल से ट्रासंफर सर्टिफेकेट लाना और इतनी जल्दी नागरिकता के दस्तावेज बनवाना संभव नहीं है.
दिप्रिंट से बातचीत में नोमिता के पिता प्रेमचंद्र कहते हैं, ‘पाकिस्तान में हमारे साथ हो रहे भेदभाव के कारण हमें वहां से यहां आना पड़ा लेकिन अब यहां दिक्कत हमारी नागरिकता और बच्चों को स्कूल में दाखिले की हो गई है. हमारी तीन बच्चियां हैं और उन सबके एडमिशन में दिक्कत आ रही है. हमारे पास आईडी प्रूफ और हलफनामा है जो कि एडमिशन देने के लिए पर्याप्त है. इसी हलफनामे के आधार पर ही यहां पाकिस्तान से आए कई हिंदू शरणार्थियों के बच्चों का एडमिशन हुआ है.’
वे आगे कहते हैं, ‘ये स्कूल वालों की मनमानी है. हम यहां पिछले साल जुलाई में आए थे और तब यहां के नजदीकी स्कूल के प्रधानाचार्य ने कहा था कि अगले सत्र में यानी मार्च-अप्रैल 2019 में जब एडमिशन शुरू होंगे. तब दाखिला मिल जाएगा लेकिन कुछ महीने पहले ही स्कूल का प्रिसिंपल बदल गया और अब जो नया प्रिसिंपल आया है वो हमें कागज लाने के लिए बार-बार परेशान कर रहा है.’
वहीं गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में एडमिशन प्रक्रिया देखने वाले प्रमोद चक्रवर्ती ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐसे बच्चों (पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी) के कागजात को लेकर एडमिशन में दिक्कत होती है. इनके पास टूरिस्ट वीजा होता है, जबकि विदेश से पढ़ने आए बच्चों के लिए अलग वीजा जारी होता है. दूसरी समस्या है आधार कार्ड की. आधार कार्ड न होने से कंप्यूटर में एंट्री करना मुश्किल होता है.’
हालांकि जब उनसे यह कहा गया कि वहां से आने वाले लोग इसी वीजा पर आते हैं और धीरे-धीरे उसको एक्सटेंड कराते हैं लेकिन तब भी उनको दाखिला मिलता है.
इस पर वे कहते हैं, ‘हमने उन बच्चों के अभिभावक को मना नहीं किया है. हम केवल रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं. जिसके बाद वो फाइल आगे जाती है. जहां 4 स्कूलों के प्रिंसिपल, एक एसएमसी (स्कूल मैनेजमेंट कमेटी) और एक डीडीई (डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन) का साइन होता है. अब ये उन पर निर्भर करेगा कि वे इस मामले में क्या करते हैं.’
दिल्ली के मुख्यमंत्री को लिखा पत्र
स्कूलों द्वारा कागजों का हवाला देकर एडमिशन नहीं देने से परेशान प्रेमचंद्र ने आल इंडिया पैरेंटस एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक अग्रवाल से मुलाकत कर बच्चों के स्कूलों में एडमिशन कराने की मांग की है. अशोक अग्रवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दक्षिण दिल्ली नगर निगम के उपायुक्त को पत्र लिखकर इन बच्चों को जल्द से जल्द एडमिशन दिलाने की मांग की है.
दिप्रिंट से बातचीत में अशोक अग्रवाल ने कहा, ‘यह केवल स्कूल वालों की मनमानी है. भारत में शिक्षा का अधिकार कानून लागू है जिसके तहत किसी भी बच्चे को पढ़ने से रोका नहीं जा सकता है. कोई भी स्कूल अधार कार्ड और नागरिकता के प्रमाण पत्र के आधार पर एडमिशन देने से नहीं रोक सकता. यह शिक्षा के मौलिक अधिकारों का हनन है.’
बता दें, शिक्षा के अधिकार कानून की धारा 21 के तहत बच्चों को पढ़ाने का अधिकार प्रदान किया गया है.
जब सुषमा स्वराज की मदद से हल हुआ था ऐसा मामला
पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों के बच्चों को दाखिला नहीं मिलने का यह कोई नया केस नहीं है. ऐसा ही मामला 2016 में भी आया था.पाकिस्तान से आईं हिन्दू शरणार्थी मधु को 2016 में दिल्ली के स्कूलों में दाखिला नहीं मिल रहा था. पर्याप्त दस्तावेज नहीं होने के कारण मधु कई दिनों तक भटकती रहीं. जिसके बाद इंडिया टूडे ने इस पर एक स्टोरी की थी. इस खबर पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संज्ञान लेते हुए मधु को अपने घर बुलाया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को फोन कर उनके दाखिले के लिए बात की.
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पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी और भाटी माइन्स में रह रहे जवाहर बताते हैं, ‘सुषमा स्वराज से मिलने मधु के साथ मैं गया था. उन्होंने पूरा मामला समझने के बाद हमारे सामने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को फोन लगाया और उसको एडमिशन दिलाने में मदद करने के लिए कहा. केजरीवाल जी ने भी सुषमा जी की बातों का संज्ञान लेते हुए मधु की मदद की थी.’
खैर, मधु को तो सुषमा स्वराज की मदद से एडमिशन तो मिल गया था लेकिन अब ये देखने वाली बात होगी कि क्या प्रेमचंद्र के बच्चों को भी स्कूलों के बार-बार चक्कर काटने से निजात मिलेगी.