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Thursday, 19 December, 2024
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भारत में ‘रेडियोएक्टिव सामग्री की चोरी और बिक्री’ का आरोप बेबुनियाद निकलने से पाकिस्तान बेनकाब

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस तरह की तस्करी के तीन मामलों का उदाहरण दिया था, लेकिन उनमें से दो में भारतीय जांच एजेंसियों ने पाया कि कथित सामग्री रेडियोएक्टिव नहीं थी और एक में यह ‘मामूली रेडियोधर्मी’ पाई गई.

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नई दिल्ली/कोलकाता: अपने खुद के परमाणु शस्त्रागार के बारे में काफी गोपनीयता बरतने वाले पाकिस्तान की नजरें शायद भारत के घटनाक्रम पर ज्यादा टिकी रहती हैं.

पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के आधिकारिक हैंडल से 31 अगस्त को किए गए एक ट्वीट में कहा गया था कि ‘भारत में रेडियोएक्टिव पदार्थों की चोरी और अवैध बिक्री’ के तीन मामले उसकी ‘जानकारी’ में आए हैं और कैसे इस तरह की ‘घटनाएं बार-बार होना भारत में नाभिकीय और अन्य रेडियोएक्टिव पदार्थों की रक्षा एवं सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा करती हैं.’

हालांकि, उसका यह बयान हवा में तीर चलाने जैसा ही था.

ट्वीट में जिन तीन मामलों का हवाला दिया गया था उनमें से दो—जो पश्चिम बंगाल और लखनऊ में सामने आए थे—की जांच के दौरान ये पता चला था कि जिस सामग्री को कैलिफोर्नियम माना जा रहा है, वह दरअसल नकली थी और ‘रेडियोएक्टिव नहीं’ थी.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि मुंबई में सामने आए तीसरे मामले में, ‘रेडियोधर्मी यूरेनियम’ मानी जा रही सामग्री को ‘प्राकृतिक रूप में यूरेनियम’ पाया गया, जो थोड़ा-बहुत रेडियोधर्मी तो होता है लेकिन हानिकारक नहीं होता.

ट्वीट में ‘भारत में आयातित एसआरएस (सवाना रिवर साइट) सामग्री की सुरक्षा व्यवस्था लचर होने के साथ ही ऐसे पदार्थों की संभावित काला बाजारी’ को लेकर भी सवाल उठाया गया था.

भारतीय जांच एजेंसियों ने पाया कि इन सभी मामलों में आरोपी ‘कथित तौर पर अधिक धन कमाने के लालच में सामग्री को रेडियोधर्मी बताकर लोगों को ठगने’ की कोशिश कर रहे थे. पुलिस सूत्रों ने कहा कि इसके अलावा, इन तीनों मामलों का कोई साझा लिंक नहीं पाया गया है.

जांचकर्ताओं के मुताबिक, कैलिफोर्नियम एक ‘बहुत मजबूत न्यूट्रॉन उत्सर्जक’ है. यह आवर्ती सारिणी में सबसे भारी रेडियोधर्मी तत्वों में से एक है और यह एक विषैला पदार्थ भी होता है. ऐसे पदार्थों का उपयोग पूरी तरह परिभाषित नहीं है, लेकिन इसे खनन और परमाणु बम या अन्य तरह के विस्फोटक बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है.

दिप्रिंट ने इन तीनों ही मामलों में पड़ताल की और यह रहा इसका नतीजा….


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‘एक पेपर वेट’

5 मई को मुंबई में सामने आए पहले मामले में महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) ने दो लोगों—जिगर जिगर जयेश पंड्या (27) और अबू ताहिर अफजल चौधरी (31) को सात किलो से अधिक यूरेनियम के साथ गिरफ्तार किया, जिसके बारे में उनका दावा था कि यह ‘अत्यधिक रेडियोएक्टिव’ और इसकी कीमत 21 करोड़ रुपये है.

इसके बाद, मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को हस्तांतरित कर दिया गया और परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 की धारा 24 (1) (ए) के तहत एक नई प्राथमिकी दर्ज की गई, क्योंकि भारत में बिना लाइसेंस के यूरेनियम रखना गैरकानूनी है.

जांच के दौरान एनआईए ने पाया कि न तो यह सामग्री ‘अत्यधिक रेडियोधर्मी’ थी और न ही इसकी कीमत 50,000 रुपये से अधिक थी.

दरअसल एनआईए ने पाया कि ताहिर, जो सामग्री बेचने की कोशिश कर रहा था, वास्तव में पिछले आठ सालों से ज्यादा समय से इसे ‘पेपरवेट’ के तौर पर इस्तेमाल कर रहा था और उसे कोई अंदाजा नहीं था कि यह यूरेनियम हो सकता है.

सूत्रों ने बताया कि जब किसी ने उसे बताया कि इससे तो बहुत सारा पैसा मिल सकता है, तो उसने इसे ‘अत्यधिक रेडियोधर्मी’ पदार्थ के तौर पर बेचने की कोशिश की.

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) में जब इस सामग्री की जांच की गई तो पता चला कि अपने प्राकृतिक रूप में यूरेनियम था.

एनआईए के एक सूत्र ने कहा, ‘सामग्री अत्यधिक तो नहीं लेकिन मामूली रूप से रेडियोधर्मी जरूर है, जैसी यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में होती है और मात्रा भी काफी कम है. हमें मिली रिपोर्ट में बताया गया है कि यह मानव जीवन के लिए खतरनाक नहीं है.’

सूत्र ने आगे बताया, ‘यह सामग्री एक पैथोलॉजिकल लैब मशीन का हिस्सा थी जो किसी कबाड़ के कारोबारी के पास आई थी. वर्षों तक वह खुद ही नहीं जानता था कि यह यूरेनियम हो सकता है और इसे बेचा जा सकता है, जब तक कि उसे एक व्यक्ति ने यह नहीं समझाया कि यदि इसे अत्यधिक रेडियोधर्मी यूरेनियम कहकर बेचा जाए तो काफी धन मिल सकता है.’


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‘काला चमकीला पदार्थ’

27 मई को यूपी पुलिस ने पश्चिम बंगाल निवासी प्राचीन वस्तुओं के विक्रेता अभिषेक चक्रवर्ती के खिलाफ मामला दर्ज किया, जिसने कथित तौर पर पत्थर के दो टुकड़ों को कैलिफोर्नियम बताकर उन्हें लखनऊ में 12 लाख रुपये में बेचा था.

यूपी पुलिस के एक सूत्र ने कहा, ‘वह काले चमकदार पदार्थ के दो टुकड़े थे जिसे अभिषेक ने कैलिफोर्नियम कहकर बेचा था. जब हमने इसे जब्त करके बीएआरसी को भेजा, तो हमें बताया गया कि यह कैलिफ़ोर्नियम या रेडियोएक्टिव नहीं था.’

सूत्र ने यह भी बताया, ‘हमने आईआईटी कानपुर में भी सामग्री की जांच कराई थी जिसमें बताया गया कि यह कोई रेडियोधर्मी या हानिकारक पदार्थ नहीं है. यह धोखाधड़ी का एक साधारण मामला है और परमाणु ऊर्जा अधिनियम की कोई धारा लागू नहीं की गई है.’

‘ठगी का रैकेट’

तीसरे मामले में पश्चिम बंगाल में अपराध जांच विभाग (सीआईडी) ने पिछले गुरुवार को हुगली जिले के दो ग्रामीणों के पास से ‘कैलिफोर्नियम’ जब्त किया था.

यह पदार्थ भी जांच में ‘नकली’ पाया गया और पुलिस का मानना है कि संदिग्धों में से एक ‘ठगी के रैकेट’ का हिस्सा है जो किसी भी सामग्री को कैलिफोर्नियम बताकर बेचने की कोशिश करता है.

कोलकाता स्थित परमाणु ऊर्जा विभाग की एक आरएंडडी इकाई वैरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन सेंटर ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि जब्त सामग्री ‘कोई रेडियोधर्मी पदार्थ नहीं बल्कि नकली सिंथेटिक सामग्री’ थी.

नतीजतन, हुगली जिले के पोलबा में रहने वाले मध्यम आयु वर्ग के दो लोगों सैलेन कर्मकार (40) और असित घोष (49) के खिलाफ धोखाधड़ी की धाराओं का आरोप लगाया गया है. सीआईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मामले में परमाणु ऊर्जा कानून के तहत कोई धारा नहीं जोड़ी गई है.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘सामग्री चमक उत्पन्न कर रही थी क्योंकि इसमें कुछ फ्लोरोसेंट रसायन था. हमें इस मामले में कुछ एजेंसियों से एक महीने पहले इनपुट मिला था.

उन्होंने कहा, ‘हमें कुछ समय पहले कैलिफोर्नियम को लेकर सौदा होने के संबंध में कुछ जानकारी मिली थी. गोपनीय सूचना पर कार्रवाई करते हुए हमने दो लोगों को गिरफ्तार किया और कथित पदार्थ जब्त कर लिया. लेकिन यह नकली सामग्री निकली. एक गिरोह है जो इस तरह काम करता है और नकली सामग्री रेडियोधर्मी बताकर बेचने के साथ लोगों को ठगता है. हम इसकी जांच कर रहे हैं.’

एक अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पूछताछ के दौरान गिरफ्तार संदिग्धों ने कहा कि केरल के एक व्यक्ति ने उनसे संपर्क किया था, जिन्होंने उन्हें यह पदार्थ दिया और उन्हें कुछ खरीदारों के पास जाने को कहा.

अधिकारी ने कहा, ‘यह एक धोखाधड़ी का रैकेट लगता है, जिसमें ऐसे सदस्य शामिल हैं, जिन्होंने ऐसे तत्वों के बारे में अध्ययन किया है और इसके गुणों के बारे में जानते हैं. उन्होंने उसी तरह दिखने वाली सिंथेटिक सामग्री बनाई. कैलिफोर्नियम भी एक सिंथेटिक पदार्थ है लेकिन यह एक रेडियोधर्मी होता है. और यह बहुत दुर्लभ भी है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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