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Saturday, 2 November, 2024
होमदेशगंगा को बचाने के लिए19 दिन से अनशन कर रही हैं पद्मावती, भावुक गुरु शिवानंद बोले- सरकार संतों के खून की प्यासी

गंगा को बचाने के लिए19 दिन से अनशन कर रही हैं पद्मावती, भावुक गुरु शिवानंद बोले- सरकार संतों के खून की प्यासी

गंगा की अविरलता की मांग करते हुए अभी तक मातृसदन के तीन संत अपनी जान गंवा चुके हैं, इस बार साध्वी पद्मावती 19 दिनों से अनशन पर हैं, सरकार ने नहीं ली है सुध.

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नई दिल्ली: गंगा के संरक्षण को लेकर अभी तक कई संत अनशन पर बैठ चुके हैं और इस अनशन की वजह से वह मौत की नींद भी सो चुके हैं लेकिन गंगा की हालत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है. लेकिन अब मां गंगा की रक्षा के लिए बेटी पद्मावती अनशन पर बैठ गई है. पद्मावती ने अनशन पर बैठने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिखा था जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा था कि उन्होंने अभी तक गंगा पर किए एक भी वादे को पूरा नहीं किया है. न तो गंगा पर होने वाला खनन ही रुका है और न ही बांध का निर्माण ही रुका है. पीएम मोदी को लिखे इसी खत में पद्मावती ने 15 दिसंबर से अनशन पर जाने की घोषणा की थी और वह इसी दिन से अनशन पर बैठी भी हैं. पद्मावती को अनशन पर बैठे करीब 19 दिन हो चुके हैं. अब देशभर के सैकड़ों लोग पद्मावती के समर्थन में गंगा को अविरल बनाने की मांग के साथ 5 और 6 दिसंबर को हरिद्वार में एकत्रित होने जा रहे हैं.

मातृ सदन गंगा को अविरल बनाने की मांग के साथ अब देशभर में अभियान चलाने की योजना बना रहा है जिसके अंतर्गत लोग इस बैठक में रणनीति बनाएंगे.

भावुक हुए संत, न्यायालय को बताया बड़ा खतरा

पद्मावती के अनशन किए जाने के निर्णय पर उनके गुरु शिवानंद मीडिया से बातचीत के दौरान बार-बार भावुक होते रहे. वह बार-बार भाजपा सरकार पर हमलावर होते रहे. उन्होंने कहा गंगा को अविरल बनाए जाने के प्रोफेसर जीडी अग्रवाल (स्वामी सानंद) को इसी सरकार ने मार दिया. ‘यह सरकार खून की प्यासी है. वह गंगा को मां कहती तो है लेकिन मां मानती नहीं है.’ उन्होंने यह भी पूछा कि सरकार को अगर खून ही चाहिए तो बता दे संत लाइन लगाकर खून दे देंगे. भावुक होते हुए शिवानंद ने कहा, हम साधु हैं हमें सच बोलने से कोई नहीं रोक सकता है. उन्होंने इस दौरान न्यायालय और एनजीटी की कार्यवाही को भी बड़ा खतरा बताया.


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संत शिवानंद ने वर्तमान सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि गंगा जी का नाम तो बहुत बार लिया लेकिन उसने जो गंगा को स्वच्छ, साफ और अविरल बनाने के लिए जो कार्य करने की जरूरत थी वैसा कोई काम नहीं किया है और अब गंगा संकट को मिटाने के लिए भारत की नीर-नारी और नदी तीनों मिलकर गंगा के लिए समर्पण करेगी.

क्या मांगे थी जीडी अग्रवाल की

अग्रवाल चाहते थे कि पर्यावरणीय प्रवाह सात आईआईटी की रिपोर्ट के आधार पर यानी 50 फीसद रखा जाए. यानी गंगा में कम से कम बहाव 50 फीसदी रखा जाए लेकिन सरकार ने इसे नहीं माना. जीडी की दूसरी मांग थी कि गंगा क्षेत्र में हो रहे खनन पर पूरी तरह रोक लगाई जाए लेकिन आज भी सरकार की छत्रछाया में खनन का काम धड़ल्ले से जारी है. वहीं प्रो जीडी की तीसरी मांग गंगा में बांध न बनाए जाने की थी लेकिन इसे भी सरकार ने नज़रअंदाज ही किया है जबकि चौथी मांग गंगा एक्ट बनाए जाने की थी जिसमें गंगा की अविरलता के लिए काम कर रही गैर सरकार संस्थाओं की बातें सुनीं जाएं उन्हें इस एक्ट में शामिल किया जाए…लेकिन सरकार ने उनकी हर मांग को ताक पर रख दिया है. अग्रवाल का मानना था कि कम से कम से ऊपरी धारा का कुछ हिस्सा तो अविरल रहने दिया जाए ताकि हम आने वाली पीढ़ी को दिखा सकें कि कभी गंगा 2500 किमी तक ऐसे ही बहा करती थी.

गंगा के लिए समर्पण का दौर

इस दौरान जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा, बेटियों से मां बलिदान नहीं मांगा करती लेकिन गंगा को लेकर इस सरकार की संवेदनाएं मर गई हैं. इस सरकार ने प्रो. जीडी अग्रवाल की मांगों पर आश्वस्त किया था कि वह काम शुरू करेगी लेकिन अभी तक कोई काम शुरु नहीं हुआ है.

सिंह ने बताया कि प्रो. सानंद ने गंगा के गंगत्व को बचाने से लेकर, खनन रोकने, गंगा पर बांध न बनाने से लेकर गंगा पर अधिनियम बनाए जाने की बातें शामिल की गई थी लेकिन सरकार न तो उन वादों को पूरा कर रही है साथ ही अपना लिखा भी नहीं मान रही है जो उसने प्रो. जीडी अग्रवाल से लिखित वादा किया था.

राजेंद्र सिंह ने यह भी कहा, यह वर्ष 2020 गंगा का समर्पण वर्ष है यह समर्पण का दौर शुरू हो गाय है और अब मां गंगा के लिए समर्पण करने के लिए यह काम नारियों ने अपने हाथों में ले लिया है..


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जीवनदायिनी मां गंगा के लिए लोगों को जीवन का बलिदान करना पड़े लेकिन जिस तरह से सरकार गंगा को नकार रही है उसे देखते हुए स्वामी सानंद की पहली पुण्यतिथि पर हरिद्वार से देशभर के लोगों ने मिलकर अविरल गंगाजल साक्षरता यात्रा शुरू की थी अभी तक यह देश के सभी राज्यों में लोगों को गंगा जी को जोड़ने के लिए वातावरण के निर्माण करने तैयारी के तौर पर यह यात्रा जा चुकी ही और अब सभी राज्यों के लोग इस यात्रा को शुरू करने जा रहे हैं.

अब समय आ गया है कि देश खुद खड़ा हो और गंगा मां की अविरलता और निर्मलता सुनिश्चित कराने के लिए सरकार पर दबाव बनाए. सिंह ने यह भी बताया कि किस तरह से विकास के नाम पर सरकार ने उत्तराखंड में सरकार ने लोगों के जीवन में ‘ज़हर घोल’ दिया है मैं उन सभी शहरों में जा रहा हूं जहां लोग यहां स्नान करने जा रहे थे. और मैं खुश हूं कि लोगों में संवेदना जाग रही है.

मौन जरूर थे मनमोहन लेकिन काम कर देते थे

राजेंद्र सिंह ने मनमोहन सरकार की भी तारीफ की. उन्होंने कहा कि किस तरह से न बोलने वाले प्रधानमंत्री ने गोमुख से उत्तर काशी तक बांध बनाए जाने पर रोक लगा दी थी. लेकिन खुद को मां गंगा का पुत्र कहने वाली सरकार तो यह भी नहीं कर रही है. उन्होंने कहा कि पीएम और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने प्रो. जीडी अग्रवाल से वादा किया था की तीन महीने के अंदर गंगा पर हो रहे सारे काम बंद करा देंगे लेकिन उसने सिर्फ देश को गुमराह किया है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार को पर्यावरण और गंगा को अविरल बनाना होता तो वह अभी तक काम करती दिखाई देती जैसा की मनमोहन सरकार ने किया था. एक वाक्ये को याद करते हुए उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह बोलते नहीं थे करते थे..वहीं उन्होंने नितिन गडकरी की चार धाम योजना को भी गंगा और उनकी सहायक नदियों के लिए बहुत बड़ा खतरा बताया. उन्होंने कहा कि चार-धाम के नाम पर उन्होंने पूरा हिमालय काट कर गंगा में बहा दिया है.

गंगा की अंतहीन समस्या

गंगा में अतंहीन समस्याएं पैदा हो रही हैं. बता दें कि गंगा की अविरलता की मांग को लेकर अभी तक चार संतों ने जान गंवा दी है. इसमें मातृसदन के 3 संतों जिसमें ज्ञान स्वरूप सानंद (प्रो. जीडी अग्रवाल), स्वामी गोकुल नाथ और स्वामी निग्मानंद ने आमरण अनशन किया और गंगा के लिए प्राण त्याग दिया जबकि वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के प्रमुख बाबा नागनाथ ने भी गंगा की अविरलता की मांग के लिए जान गंवा दी थी.


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इस दौरान राजेंद्र सिंह ने कहा कि गंगा की अविरलता सत्ता और सच, साधक और साधन की लड़ाई है. अभी तक साधक लड़ रहे थे अब साध्वी और बच्ची अनशन पर बैठ गई है. और उन्होंने यह भी कहा पहले मां मैला धोती थी लेकिन अब ढो रही है. अब देखना होगा कि नमामि गंगे से जल शक्ति मंत्रालय में बन चुकी मोदी सरकार की गंगा बचाओ योजना जीतती है या फिर साधू संत अपनी ताकत से गंगा को अविरल बना पाती है.

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