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Friday, 3 May, 2024
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जानें पद्मनाभस्वामी मंदिर के खजाने और उसका प्रबंधन करने वाले शाही परिवार के बारे में

सुप्रीम कोर्ट ने तिरुवनंतपुरम के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन के त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार के अधिकार के पक्ष में फैसला सुनाया है. अपने खजानों के कारण यह मंदिर लोगों के लिए एक रहस्य बना रहा है.

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बेंगलुरु: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तिरुवनंतपुरम के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन के त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार के अधिकार के पक्ष में फैसला सुनाकर करीब एक दशक से जारी कानूनी विवाद का अंत कर दिया.

खासकर दुनिया के सर्वाधिक धनी मंदिरों में से एक होने की धाक और इसकी तिजोरियों में भरे खजाने के कारण पद्नामभस्वामी मंदिर की एक रहस्मय छवि रही है.

इतिहासकार इस मंदिर के अतीत को 8वीं सदी तक ले जाते हैं, हालांकि वर्तमान परिसर को 18वीं सदी में त्रावणकोर के तत्कालीन महाराजा मार्तंड वर्मा ने बनवाया था.

मंदिर का निर्माण वास्तुकला की अनूठी चेर शैली में किया गया है और इसके मुख्य देवता भगवान विष्णु हैं. जिन्हें आदिशेष पर अनंत शयन मुद्रा में निर्मित किया गया है.

यह भारत में वैष्णववाद से जुड़े 108 पवित्र मंदिरों में से एक है.

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देश के आज़ाद होने के समय से लेकर 1991 में त्रावणकोर के अंतिम शासक चित्र तिरुनल बलराम वर्मा की मौत होने तक, मंदिर पर शाही परिवार द्वारा संचालित एक न्यास का नियंत्रण रहा.

त्रावणकोर के अंतिम शासक के 1991 में निधन के बाद राज्य सरकार ने उनके छोटे भाई उत्रदम तिरुनल मार्तंड वर्मा को मंदिर का प्रबंधन संभालने और वहां की परंपराओं को जारी रखने की अनुमति दी थी.


यह भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट ने केरल के पद्मनाभस्वामी मंदिर पर त्रावणकोर शाही परिवार का अधिकार बरकरार रखा


लेकिन 2011 में केरल हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि पूर्व शाही परिवार अपने शेबेत अधिकारों को जारी नहीं रह सकता है. शेबेत देवता के अनुचर और मंदिर के प्रबंधन का काम करने वाले व्यक्ति को कहते हैं.

हाईकोर्ट के उस आदेश को अब पलट दिया गया है. दिप्रिंट ने पद्मनाभस्वामी मंदिर उसके प्रबंधकों और उसे चर्चा के केंद्र में लाने वाले खजाने के बारे में विस्तृत विवरण जुटाए हैं.

देवता

मंदिर के देवता ब्रह्मा, विष्णु और शिव की त्रिमूर्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसी मान्यता है कि विल्वमंगलातु स्वामियार नामक एक संत ने भगवान पद्मनाभ की खोज में पूरी दुनिया की यात्रा की थी.

तिरुवनंतपुरम में उनको स्वप्न आया कि भगवान विष्णु ने खुद को 18 फीट के आकार का रूप देकर शय़न मुद्रा धारण कर ली है.

शाही परिवार ने दिप्रिंट को बताया कि मूर्ति कदशर्ककरा से यानि जड़ी-बूटी, राल और रेत के सम्मिश्रण से बनी है.

मंदिर पहले लकड़ी से निर्मित था लेकिन बाद में इसे मौजूदा स्वरूप में ग्रेनाइट पत्थरों से बनाया गया. इसमें 365 खंभे हैं, यानि साल के प्रत्येक दिन के लिए एक.

मुख्य प्रतिमा 12,500 शालिग्राम पत्थरों से निर्मित है जिन्हें नेपाल की गंडकी नदी से लाया गया था. शालिग्राम पत्थरों को पवित्र माना जाता है और उनकी भगवान विष्णु के प्रत्यक्ष रूप के तौर पर पूजा की जाती है.

खजाना

मंदिर में कुल छह तहखाने हैं और इन्हें उनमें रखी गई सामग्रियों के आकलन के लिए खोले जाने को लेकर ही दशक भर चला कानूनी विवाद शुरू हुआ था.

2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने तहखानों में बंद खजाने के आकलन के लिए सात सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया. अदालत की मदद के लिए नियुक्त कानूनविद (एमिकस क्यूरी) गोपाल सुब्रमण्यम की अध्यक्षता वाली समिति को उन दो तहखानों की सामग्रियों के आकलन के भी अधिकार दिए गए जोकि आखिरी बार 130 साल पहले खोले गए थे.

गोपाल सुब्रमण्यम समिति ने जब तहखाना-ए को खोला तो उसमें अनुमानित लगभग 1,00,000 करोड़ मूल्य का खजाना निकला.

सुब्रमण्यम द्वारा सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई भारी-भरकम रिपोर्ट में तहखानों में मौजूद हरेक सामग्री का विस्तार से वर्णन है-जिनमें शामिल हैं रोमन, मध्ययुगीन, नेपोलियन और ब्रितानी काल के सोने के सिक्कों से भरी बोरियां, जिनमें से कुछ बोरियों का वज़न 8 क्विंटल तक है.

समिति को सोने के अनेक बर्तन और सिंहासन भी मिले जिनका संभवत: धार्मिक समारोहों में उपयोग होता होगा. तहखानों में ठोस सोने से निर्मित और हीरे-मोतियों से जड़ित 4 फुट x 3 फुट आकार की भगवान विष्णु की प्रतिमा और देवता के विराजने के लिए निर्मित 28 फुट का स्वर्ण सिंहासन भी पाए गए.

इसके अलावा लगभग 30 किलोग्राम वज़न की एक स्वर्णजड़ित सामारोहिक पोशाक भी प्राप्त हुई जोकि संभवत: देवता को पहनाई जाती होगी.

समिति को बड़ी मात्रा में हीरे-मोती से जड़े नारियल के गोले जैसी अनेक स्वर्ण कलाकृतियां तथा हीरा, पन्ना, नीलम और माणिक जैसे बेशकीमती रत्न और बहुमूल्य धातुओं से निर्मित अन्य कई वस्तुएं भी मिलीं.

त्रावणकोर राज परिवार

त्रावणकोर के अंतिम महाराजा के छोटे भाई उत्रदम तिरुनल मार्तंड वर्मा ने 2011 में इस रिपोर्टर को बताया था कि उनका परिवार देश के सबसे प्राचीन राज परिवारों में से एक है.

उनके परिवार का वंश वृक्ष 870 ईस्वी तक जाता है जब अय्यन अदिगल तिरुवदीर ने त्राणणकोर राजवंश की स्थापना की थी.

वर्मा ने कहा कि उनका परिवार नैसर्गिक रूप से अपने देवता से जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए जीवन का मतलब है पद्मनाभ के प्रति पूर्ण समर्पण.’

वर्मा ने कहा, ‘हम नंगे पांव मंदिर जाते हैं और अपने पांवों में धूल लगने देते हैं ताकि ईश्वर के घर से धूल का एक कण भी हमारे घर तक पहुंच सके. मंदिर में मौजूद सबकुछ उन्हीं का है, धूल का एक-एक कण तक.’

राज परिवार ने 1950 में शाही मुकुट देवता को सौंप दिया था. इसके साथ ही ये घोषित कर दिया गया कि देवता ही महाराजा हैं और राज परिवार के सदस्य महज उनके सेवक हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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