नयी दिल्ली, पांच नवंबर (भाषा) दुनिया भर के विश्वविद्यालयों के 300 से अधिक शिक्षाविदों ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) महासचिव गुलाम सरवर को पत्र लिखकर दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (एसएयू) में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर की ‘‘अन्यायपूर्ण और दंडात्मक बर्खास्तगी’’ के मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है।
अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर स्नेहाशीष भट्टाचार्य उन चार संकाय सदस्यों में शामिल हैं जिन्हें जून 2023 में निलंबित कर दिया गया था। उन पर पिछले वर्ष वजीफा विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर ‘‘विश्वविद्यालय के हितों के खिलाफ छात्रों को भड़काने’’ का आरोप था।
इस वर्ष 11 सितंबर को उनकी सेवाएं औपचारिक रूप से समाप्त कर दी गईं थी, जो जून 2023 से पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होंगी।
शिक्षाविदों ने पत्र में कहा, ‘‘स्नेहाशीष भट्टाचार्य की अन्यायपूर्ण बर्खास्तगी को लेकर हम बेहद चिंतित हैं। छात्रों ने लैंगिक संवेदनशीलता और यौन उत्पीड़न के विरुद्ध विश्वविद्यालय निकायों में प्रतिनिधित्व और अपने वजीफों में कटौती वापस लेने की मांग को लेकर शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन किया था। प्रशासन ने छात्रों के निष्कासन, निलंबन और पुलिस कार्रवाई के साथ जवाब दिया।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘भट्टाचार्य समेत सभी शिक्षकों ने संवाद और रचनात्मक सहयोग का आग्रह किया। इसके बजाय, प्रशासन ने भट्टाचार्य और उनके तीन सहयोगियों को निशाना बनाया गया, उन्हें जून 2023 में निलंबित कर दिया और बिना किसी वैधानिक आधार के उनके वेतन में 25 प्रतिशत की कटौती कर दी गई। पेशेवर सिद्धांतों पर कायम रहते हुए, भट्टाचार्य ने लगातार सभी आरोपों से इनकार किया है और विश्वविद्यालय द्वारा मांगा गया खेद पत्र देने से इनकार कर दिया है।’’
शिक्षाविदों ने महासचिव से आग्रह किया है कि वे एसएयू से भट्टाचार्य की बर्खास्तगी को तत्काल रद्द करने का आग्रह करें, ताकि संस्थान के भीतर शैक्षणिक स्वतंत्रता की रक्षा हो सके तथा सहकारिता, संवाद और बौद्धिक स्वतंत्रता के मूल आदर्शों को कायम रखा जा सके।
हस्ताक्षरकर्ताओं में कई प्रतिष्ठित शिक्षाविद शामिल हैं, जिनमें हा-जून चांग (एसओएएस लंदन विश्वविद्यालय), जयति घोष (मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय), अमित भादुड़ी और प्रभात पटनायक (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय), पार्थ चटर्जी (कोलंबिया विश्वविद्यालय), रथिन रॉय, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य, और जी स्टैंडिंग (एसओएएस लंदन विश्वविद्यालय) शामिल हैं।
हस्ताक्षरकर्ताओं ने एसएयू के इस दावे को भी चुनौती दी कि यह भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
पत्र में कहा गया है, ‘‘यह केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं है, बल्कि इस बात की भी जांच-परख है कि क्या दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय अब भी खुलापन, संवाद और आपसी सम्मान के उन सिद्धांतों पर कायम रह सकता है जिन पर इसकी स्थापना हुई थी।’’
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देवेंद्र माधव
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