पटना: बिहार के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) गुप्तेश्वर पांडे, जिन्होंने मंगलवार को सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) का विकल्प चुना है, वे राजनीति में आने के लिए तैयार हैं और राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव भी लड़ सकते हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपने गृहनगर बक्सर सीट से चुनाव मैदान में उतरेंगे तो मुखर आईपीएस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि ‘हो सकता है. मैंने इस्तीफा दे दिया है और मैं अपने भविष्य पर फैसला लूंगा.’
पांडे ने उन बातों से इनकार किया कि बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के सिलसिले में पटना में दर्ज प्राथमिकी से जुड़ी उनकी कार्रवाइयों का राजनीति में शामिल होने से कोई लेना-देना नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘दोनों पूरी तरह से अलग चीजें हैं. मैंने सुशांत सिंह राजपूत के साथ न्याय के लिए किया. यह बिहार के लोगों और उनके परिवार के सदस्यों की मांग थी. मेरे कार्यों को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा.’
हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी ने राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने के लिए नौकरी से वीआरएस लिया है. पांडे यह घोषणा करने में संकोच कर रहे थे कि वह 2009 में अपने अनुभव के कारण चुनाव लड़ेंगे, जब उन्होंने इस उम्मीद में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया कि उन्हें बक्सर संसदीय सीट से भाजपा का टिकट मिलेगा. लेकिन, भाजपा स्वर्गीय लालमुनि चौबे के साथ फंस गई थी, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके इस्तीफे को बचा लिया.
पांडे ने जदयू कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की थी
मंगलवार को वीआरएस स्वीकार किए जाने से दो दिन पहले, पांडे ने बक्सर में जदयू कार्यकर्ताओं के साथ एक बंद दरवाजे में बैठक की थी, जब स्थानीय मीडिया ने उनसे पूछा कि क्या वह विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, तो पांडे ने घोषणा की कि वो इस सवाल से परेशान हैं और सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ अपनी बैठक को ‘अनौपचारिक’ बताया.
हालांकि, दो दिन बाद यह खबर आई गई कि पांडे ने इस्तीफा दे दिया है. उनके कार्यकाल में लगभग पांच महीने बाकी है. बिहार गृह विभाग द्वारा मंगलवार देर शाम इस आशय की एक अधिसूचना जारी की गई, जिसमें कहा गया कि पांडे की सेवा (वीआरएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए अनुरोध स्वीकार कर लिया गया.
अटकलें हैं कि वह बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, जो कि अक्टूबर और नवंबर के बीच होने की उम्मीद है, क्योंकि वीआरएस के लिए अनुरोध को सरकार को सौंपने के 24 घंटों के भीतर स्वीकार कर लिया गया था.
एक आईपीएस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘आमतौर पर एक अधिकारी को वीआरएस लेने के लिए तीन महीने का नोटिस देना पड़ता है. लेकिन इस मामले में, वीआरएस को केवल 24 घंटों में स्वीकार कर लिया गया है.’
सुशांत के पिता, केके सिंह द्वारा दर्ज की गई एक प्राथमिकी के बाद पांडे राष्ट्रीय चर्चा में थे. उन्होंने इस मामले की जांच के लिए मुंबई में एक पुलिस दल भेजा था, यह एक ऐसा कदम जिसने बिहार और महाराष्ट्र पुलिस विभागों के बीच एक मौखिक द्वंद्वयुद्ध किया था.
जद (यू) के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं
पांडे ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को कभी नहीं छिपाया है, लेकिन वे अपने समय के बारे में स्पष्ट हैं. सुशांत सिंह राजपूत मामले को लेकर हलचल के साथ स्थानीय राजनेताओं को यह अनुमान लगाया था कि वह राजनीति में शामिल हो जाएंगे.
सुशांत सिंह राजपूत विवाद पर मीडिया से कहा था, ‘मैं इस बात से इनकार नहीं करूंगा कि मैं राजनीति में शामिल हो सकता हूं. लेकिन यह समय नहीं है.’ उन्होंने अब अभिनेता की मौत के मामले में सीबीआई के पीछे ड्राइविंग बल के रूप में बिहार में ख्याति अर्जित की है, जो कि सभी राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी राज्य में की गई मांग है.
बक्सर, जहां से उनके चुनाव लड़ने की संभावना है, पर उनके समुदाय का प्रभुत्व है.इस सीट पर ब्राह्मण और राजपूतों का वर्चस्व है सुशांत सिंह भी राजपूत समुदाय से आते थे.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, पांडे के जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ने की संभावना है. हाल के दिनों में, पांडे भाजपा के मुकाबले जद (यू) के ज्यादा करीब रहे हैं. अगर उन्होंने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए रिटायरमेंट की मांग की होती, तो सीएम नीतीश कुमार ने इस्तीफे की प्रक्रिया तेज नहीं की होती.
उन्होंने कहा, ‘पांडे ने बिहार के भाजपा नेताओं के साथ टिकट के लिए बात नहीं की. जाहिर तौर पर नीतीश ने पीएम मोदी से बात की है और पीएम ने हरी झंडी दे दी है. पांडे बक्सर या शाहपुर से जद (यू) के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं.
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