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Thursday, 31 October, 2024
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कोलकाता में ममता बनर्जी की रैली विपक्षी एकता का प्रदर्शन क्यों नहीं है?

महागठबंधन में शामिल होने वाली पार्टियां शनिवार को कोलकाता में हो रही ममता बनर्जी की रैली छोड़ेंगे या फिर सिर्फ अपना प्रतिनिधि भेज कर अपनी हाजिरी लगा देंगे.

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नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शनिवार को कोलकाता एक रैली का आयोजन करने जा रही हैं. विपक्षी पार्टियों की इस रैली में भाजपा विरोधी ताकतों के बीच मतभेद दिखने की प्रबल संभावना है. गैर-भाजपा, गैर कांग्रेस मोर्चे के कई समर्थकों ने या तो इस रैली में शामिल न होने का फैसला किया है या केवल अपनी पार्टी की उपस्थिति को चिह्नित करने के लिए एक प्रतिनिधि भेजने की योजना बना रहे हैं.

बीजू जनता दल के एक पदाधिकारी ने बताया कि नवीन पटनायक इस रैली में भाग लेने नहीं जा रहे हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री जो क्षेत्रीय दलों व एक संघीय मोर्चे के समर्थक भी हैं वह भी इस रैली में शामिल होने नहीं जा रहे हैं. उनका कहना है कि दल की नेता से उनकी नजदीकी है और वह राहुल गांधी और चंद्रबाबू नायडू के साथ मंच साझा करने को तैयार नहीं है.

इसी बीच केसीआर की बेटी और टीआरएस की सांसद के. कविता ने दि प्रिंट को बताया कि मुख्यमंत्री इस रैली में इसलिए भाग नहीं ले पाएंगे क्योंकि शुक्रवार को नई विधानसभा की पहली मीटिंग होने वाली है और पार्टी के विधायक शनिवार को शपथ लेंगे. इसके साथ ही अगले दिन केसीआर अपनी कैबिनेट की घोषणा भी कर सकते हैं.

वहीं दूसरी तरफ जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस को अभी यह निर्णय लेना है कि कौन इस रैली में भाग लेगा.
राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी भी इस रैली में भाग लेने नहीं जा रही हैं. संभावना है कि वह मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजें. यहां तक की वामपंथी पार्टी के नेता भी इस रैली में शामिल होने नहीं जा रहे हैं.

इन नेताओं की अनुपस्थिति के अलावा, आने वाले 24 घंटों में सूची और लंबी हो सकती है. जो यह दर्शाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर एक तथाकथित ‘महागठबंधन’ या ‘भाजपा विरोधी महागठबंधन’अपनी मंचिल पर पहुंचने से पहले ही धाराशाई होने की ओर बढ़ रहा है.

शनिवार को हो रही इस रैली में बहुत मुश्किल है कि विपक्षी ताकत और एकता देखने को मिले. सपा और बसपा जिसने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अपने गठबंधन से अलग रखा है, वह सबसे पुरानी पार्टी से साथ मंच साझा करेंगे. वहीं कोलकाता में मेजबान तृणमूल कांग्रेस के साथ कांग्रेस का भी कोई संबंध नहीं है.

कांग्रेस और बीजेपी के नेतृत्व वाले दो ब्लाकों के अलावा कई राजनीतिक पार्टियों के अपने राज्यों में उनके विशेष गठबंधन हैं जिसमें उनकी सहयोगी पार्टी शामिल हैं. वहीं कई अन्य खिलाड़ी भी हैं जो असमान हैं और अक्सर परस्पर विरोधी हितों को चुनावी दल में शामिल करते रहे हैं.

कोलकाता में इनसभी राजनीतिक पार्टियों के एक मंच पर एकत्रित होने का एकसूत्री एजेंडा ‘भाजपा’ को हटाना है. लेकिन यह भी सिर्फ 2019 के लोकसभा चुनाव तक ही सीमित है.
आज जो सारे दल भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए एकजुट दिख रहे हैं इसकी कोई गारंटी नहीं है कि चुनाव परिणामों के बाद वह कांग्रेस के साथ होंगे.

चार ब्लाक को ऐसे समझें

कोलकाता रैली में बीजेपी, कांग्रेस-विरोधी दलों के व्यापक समूहों की एक रूपरेखा तैयार किए जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है – जिसमें एक केसीआर द्वारा प्रचारित है, जिसका कांग्रेस के साथ कोई लेना-देना नहीं है, और दूसरे की वकालत नायडू द्वारा की गई है – इनमें वह भी कोलकाता की सभा में शामिल हो रहे हैं जिनका भाजपा से कोई लेना देना नहीं है कम से कम चुनाव तक.

इसमें यह भी हो सकता है, संघीय मोर्चा जिसकी वकालत केसीआर कर रहे हैं उसमें भाजपा अपनी दिलचस्पी दिखा सकती है. क्योंकि केसीआर के बेटे केटी रामा राव ने बुधवार को हैदराबाद में जगन मोहन रेड्डी से मुलाकात की. केसीआर खुद पिछले महीने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मिले थे.

कोलकाता की रैली से दूर रहने का केसीआर का फैसला बनर्जी से उनकी तीन हफ्ते पहले हुई मुलाकात के बाद हुआ है. तेलंगाना के सीएम पिछले एक साल से क्षेत्रीय दलों का मोर्चा बनाने की मांग कर रहे हैं. इस सिलसिले में वह सपा के अखिलेश यादव, डीएमके के एम के स्टालिन, जनता दल सेक्युलर के एच.डी. देवेगौड़ा सहित कई और पार्टियों के मुखिया से मिल भी चुके हैं.

लेकिन यहां यह देखना और भी रोमांचक हो जाता है कि केसीआर ने उन लोगों से मिलने में दूरी दिखाई है जो किसी न किसी रूप में कांग्रेस के पक्षधर रहे हैं इसमें नायडू, शरद पवार और सीताराम येचुरी शामिल हैं. यही नहीं उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचक आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी खासी दूरी बना रखी है.

पिछले साल केसीआर कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुए थे। इन्होंने भाजपा विरोधी दलों को एक साथ एक मंच पर लाने का काम किया था लेकिन आज वह कोलकाता में हो रही रैली से खुद ही गायब हैं.

जैसा कि नज़र आ रहा है लोकसभा चुनाव से पहले पार्टियां चार धरों और समूह में बंटी दिख रही हैं- इसमें दो कि अगुवाई कांग्रेस पार्टी और भाजपा कर रही है जबकि तीसरे में क्षेत्रीय दलों का समूह शामिल है जो नई दिल्ली की सत्ता से भाजपा को हटाने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को तैयार है वहीं चौथी पार्टी वो है जिसका कांग्रेस के कोई लेना-देना नहीं है.

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