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Thursday, 21 November, 2024
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यूपीए प्रमुख के मुद्दे पर नहीं टूट सकती विपक्षी एकता, सबसे पहले BJP को हटाना जरूरी : मल्लिकार्जुन खड़गे

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि यूपीए अध्यक्ष कौन होगा, यह तय करने का समय भी आएगा लेकिन सबसे पहले अन्य मुद्दों से निपटाया जाना जरूरी है.

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नई दिल्ली: राहुल गांधी 2024 के आम चुनाव के लिए कांग्रेस और विपक्षी दलों को साथ लाने और भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाने में प्रमुख भूमिका निभाने में जुटे हैं. लेकिन वह खुद को यूपीए अध्यक्ष के तौर पर रूप में पेश करने जैसी कोई कोशिश नहीं कर रहे हैं. हालांकि, राज्यसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है, इस मुद्दे पर यह नई एकता टूटनी नहीं चाहिए.

उन्होंने शनिवार को दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘राहुल गांधी जी ने बार-बार कहा है कि हमें साथ आना चाहिए. हमें सबसे पहले भाजपा का मुकाबला करना चाहिए, उसे सत्ता से बाहर करना चाहिए. उसके बाद अन्य मुद्दों को सोचना होगा. फूट डालने के लिए ऐसी समस्याएं तो पैदा की जाती रहेंगी, ‘यूपीए अध्यक्ष कौन बनने जा रहा है.’ अभी तो सोनिया गांधी हैं. वह बेहतरीन ढंग से काम कर रही हैं. जब आलाकमान इस पर कोई फैसला करेगा तो कोई न कोई आएगा. केवल इस मुद्दे पर हमारी एकता नहीं टूटनी चाहिए. और मुझे पूरी उम्मीद है कि यह टूटेगी भी नहीं.’

खड़गे ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि क्षेत्रीय दल 2024 के लिए एकजुट होकर काम करने पर राजी हो जाएंगे. अन्यथा ‘देश की आजादी खतरे में पड़ जाएगी.’

क्षेत्रीय दलों के भी ‘मौजूदा शासन को लेकर आशंकित होने’ पर जोर देते हुए खड़गे ने कहा, ‘क्षेत्रीय दल स्थानीय चुनावों में अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे, स्थानीय मुद्दों पर, समस्याओं पर लेकिन संसदीय चुनाव के लिए राष्ट्रीय मुद्दों पर उन्हें साथ मिलकर लड़ने के लिए तैयार होना चाहिए. मुझे इसकी पूरी उम्मीद भी है, क्योंकि अभी भी समय है.’

खड़गे ने कहा, ‘सोनिया गांधी जी 20 अगस्त को विपक्षी दलों के नेताओं को बातचीत के लिए बुला रही हैं, राहुल गांधी जी भी अपील कर रहे हैं और उन्होंने खुद संसद में इस पर अगुआई की है. इसलिए, मुझे उम्मीद है कि अन्य दल भी इस लड़ाई में शामिल होंगे और हमें सफलता जरूर मिलेगी.’

खड़गे ने दिप्रिंट को बताया कि हालांकि कुछ समय पहले गठबंधन के नेतृत्व का मुद्दा सामने आया था, लेकिन इस बारे में कोई फैसला उचित समय आने पर ही लिया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘1996 में क्या हुआ था? क्या किसी को उम्मीद थी कि उस समय सभी विपक्षी दल साथ आएंगे और देवेगौड़ा का समर्थन करेंगे? जो स्थिति बनेगी उसी से रास्ता भी निकलेगा.’

उन्होंने एक और उदाहरण देते हुए कहा कि 2004 में किसी को उम्मीद नहीं थी कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनेंगे.

उन्होंने कहा, ‘उस समय किसी को भी चेहरा नहीं बनाया गया था. सोनिया गांधी जी ने पूरे देश में काम किया, उन्होंने दौरा किया और लामबंदी (समर्थन) सुनिश्चित की और हम बहुमत के साथ सबसे बड़ी पार्टी थे. हमने अन्य समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों से मदद ली और सरकार बनी. इसलिए हम कह रहे हैं, यदि लोकतंत्र को बचाया जाएगा, हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा होगी, तभी ऐसे निर्णय आएंगे. नहीं तो जो लोग तानाशाह हैं, निरंकुश हैं, वही राज करेंगे.’

हाल के हफ्तों में विपक्षी दलों ने मानसून सत्र के दौरान संसद में आश्चर्यजनक ढंग से एकजुटता दिखाई. पेगासस ‘हैकिंग’ विवाद और तीन कृषि कानूनों लेकर किसानों के आंदोलन सहित कई मुद्दों पर विपक्ष की तरफ से चर्चा की मांग किए जाने के बीच दोनों सदनों में कार्यवाही बाधित रही थी.

‘कोई पार्टी को कमजोर करे, यह मंजूर नहीं’

पिछले हफ्ते कुछ कांग्रेसी नेताओं ने कपिल सिब्बल के आवास पर एक डिनर पार्टी में एक पूर्णकालिक कांग्रेस अध्यक्ष चुनने की जरूरत पर बल दिया. रात्रिभोज में कई विपक्षी नेता शामिल हुए थे. खड़गे ने कहा कि हालांकि, वह वहां नहीं थे और उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि क्या चर्चा हुई, लेकिन उनका मानना था कि पार्टी के आंतरिक मुद्दों पर पार्टी के अंदर ही चर्चा की जानी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘हमारी पार्टी की एकता, हमारी पार्टी के किसी प्लस या माइनस पॉइंट, को किसी अन्य राजनीतिक दल के सामने तय नहीं किया जा सकता. यह मेरा विचार है. उन्होंने वहां जो कुछ भी कहा होगा, वह उनका विचार है लेकिन हम स्वीकार नहीं करेंगे. हम इस तरह के कदमों का विरोध करेंगे. अगर कोई बाहर बोलता है और पार्टी को कमजोर करता है, तो यह स्वीकार नहीं किया जाएगा.’


यह भी पढ़ें : ‘ये वैसा नहीं जो हम चाहते हैं’—विपक्ष ने क्यों राज्यसभा में किसानों पर सरकार के ‘बहस प्रस्ताव’ को खारिज कर दिया


उन्होंने कहा कि इस कोविड महामारी को एक साल से अधिक हो गया है और हर कोई इससे लड़ने की दिशा में काम कर रहा है. ‘ऐसे समय में अगर कोई असहमति की आवाज उठाता है तो यह ठीक नहीं है. यह पार्टी के लिए अच्छा नहीं है, जान लड़ा देने वाले कार्यकर्ताओं के लिए अच्छा नहीं है.’

‘संसद बाधित करने के लिए विपक्ष को दोष देना सही नहीं’

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) ने कहा कि यह पहली बार हुआ है कि सत्तारूढ़ भाजपा से लड़ने के लिए सभी 15-16 दलों ने एकजुट होकर संसद के दोनों सदनों में एक साझा एजेंडा अपनाने का फैसला किया.

खड़गे ने कहा, ‘पहला पेगासस था, दूसरा कोविड, तीसरा मुद्दा किसानों से जुड़ा था, मुद्रास्फीति और डीजल-पेट्रोल के दामों में वृद्धि और आर्थिक संकट को चौथे नंबर पर रखा गया था. हमने राज्यसभा में नियम 267 के तहत नोटिस दिया और लोकसभा में उनकी तरफ से स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया गया. लेकिन सरकार इस पर राजी नहीं हुई. इसलिए हमें विरोध करना पड़ा. विपक्ष को दोष देना (व्यवधान के लिए) सही नहीं है.’

एलओपी ने कहा कि कांग्रेस और विपक्षी दलों ने पेगासस मुद्दे पर जोर दिया क्योंकि यह इस देश के लिए, और इसके नागरिकों के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, हमारा मौलिक अधिकार, हमारी गोपनीयता, हमारी अभिव्यक्ति की आजादी, सब कुछ पेगासस (मुद्दे) में निहित है, क्योंकि उन्होंने पूरे देश में महत्वपूर्ण नेताओं पर स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है. उन्होंने किसी को भी नहीं छोड़ा, चाहे वह जज हों, चीफ जस्टिस हों, प्रेस हो या विपक्षी नेता, या फिर यहां तक कि सेना के लोग.’

पेगासस विवाद द वायर इन इंडिया सहित कई मीडिया घरानों के एक वैश्विक संघ की तरफ से किए गए खुलासे से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि राजनेताओं, एक्टिविस्ट और सिविल सेवकों की एक लंबी सूची है जिन्हें इजरायली स्पाईवेयर पेगासस का निशाना बनाकर कथित तौर पर उनकी जासूसी की गई. पेगासस बनाने वाली कंपनी एनएसओ ने कहा कि उसका सॉफ्टवेयर केवल ‘चुनी गई’ सरकारों और उनकी एजेंसियों को बेचा गया था, जिससे इस बात को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि भारतीय नागरिकों को कथित तौर पर निशाना बनाए जाने के लिए पैसा कहां से आया था.

संघ की तरफ से सामने रखी गई सूची—जिसकी पहली किस्त मानसून सत्र की शुरुआत की पूर्व संध्या पर आई थी- में राहुल गांधी, आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव, तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के नाम शामिल हैं.

खड़गे ने कहा कि सरकार ने ऐसी धारणा बना दी कि विपक्ष के व्यवधान के कारण अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों को नहीं उठाया जा सका. लेकिन अन्य मुद्दे पहले से ही तैयार थे.

उन्होंने कहा, ‘अगर मुझे बोलने का ही अधिकार नहीं है तो मैं किसानों के मुद्दे को कैसे उठाऊंगा. दूसरे मुद्दों को भी कैसे उठा पाऊंगा?…सबसे जरूरी चीज तो है मेरी आजादी. यह हमारा मौलिक अधिकार है. अगर यही नहीं रही तो हमारे लिए बचेगा ही क्या…सदन में बात करने का कोई तरीका नहीं रहेगा. इसलिए हम लड़ रहे हैं. क्या किया सकता था. मान लीजिए वे इस विषय पर 4-5 घंटे चर्चा के लिए राजी हो जाते, तो बाकी कार्यवाही आसानी से चल जाती. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.’
खड़गे ने आगे कहा कि विपक्ष ने पेगासस की कीमत पर अन्य मुद्दों की अनदेखी नहीं की.

उन्होंने कहा, ‘किसानों के मुद्दे को हम सदन से बाहर ले गए. राहुल गांधी जी ने ट्रैक्टर रैली की, और हमने किसानों से मुलाकात की…लेकिन सरकार अडिग है. वे कानून निरस्त करने को तैयार नहीं हैं. हम उस पर जोर दे रहे हैं. और कोविड, हमने राज्यसभा में चर्चा की लेकिन उन्होंने लोकसभा में चर्चा नहीं की. यही नहीं ओबीसी बिल भी है, जिस पर हमने चर्चा की, इसे सर्वसम्मति से आराम से पारित कराया गया. इसलिए विपक्ष को दोष देना सही नहीं है.

‘पंजाब में मतभेद सुलझा लिए गए हैं’

हाल में पंजाब में अंदरूनी कलह के बाद पार्टी को नवजोत सिंह सिद्धू को अंततः राज्य का अध्यक्ष बनाना पड़ा था, इस पर खड़गे ने कहा कि एक लोकतांत्रिक पार्टी में ऐसी चीजें होती रहती हैं.

उन्होंने कहा, ‘कुछ लोग शिकायत करते हैं.. मैंने अपने 50 साल के विधायी जीवन में देखा है.कुछ राज्यों में भूमि सुधारों पर मतभेद थे लेकिन यह पार्टी का एजेंडा था. यहां तक कि जब आंध्र में नरसिम्हा राव जी ने भूमि सुधार अधिनियम लागू किया, तो उस समय वहां के कई नेताओं ने इसका विरोध किया. लेकिन पार्टी बरकरार रही. कर्नाटक में भी इसका विरोध हुआ था. मैंने अपना अनुभव देखा है. महाराष्ट्र में भी यह समस्या थी.’

जो भी छोटे-मोटे मतभेद थे, उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष ने सुलझा लिया. उन्होंने कहा, ‘सिद्धू को जो कुछ समस्याएं थीं, उन्होंने उस पर राहुल गांधी जी से बात की और उनके सुझावों को शामिल किया गया. मैं पीसीसी अध्यक्ष, विधायक, सांसद, राज्यसभा सदस्यों सहित 150 नेताओं से मिला. सब एकजुट हैं. वे कह रहे हैं कि हम साथ मिलकर लड़ेंगे.’

पार्टी के भीतर तब बदलाव आते हैं जब राज्य अगले साल चुनाव के लिए तैयार हो रहा होता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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