देहरादून, पांच फरवरी (भाषा) उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू होने के पहले 10 दिन में उसके पोर्टल पर केवल ‘लिव-इन’ संबंध पंजीकृत हुआ है।
अधिकारियों ने बुधवार को यहां दावा किया कि अनिवार्य पंजीकरण के लिए ‘लिव-इन’ युगलों से पांच आवेदन मिले हैं। उन्होंने बताया कि उनमें से एक का पंजीकरण किया जा चुका है जबकि चार अन्य के आवेदन का सत्यापन किया जा रहा है।
सत्ताईस जनवरी को यूसीसी लागू कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित उत्तराखंड स्वतंत्र भारत में ऐसा करने वाला पहला राज्य बन गया था। यूसीसी के जरिए प्रदेश में धर्म और लिंग से परे हर नागरिक के लिए विवाह, तलाक और संपत्ति जैसे विषयों पर समान कानून लागू हो गया है।
कानून लागू करने के मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विवाह, तलाक और ‘लिव-इन’ संबंधों के अनिवार्य ऑनलाइन पंजीकरण के लिए एक पोर्टल की शुरुआत भी की थी। यूसीसी पोर्टल पर सबसे पहले उन्होंने ही अपने विवाह का पंजीकरण कराया था।
‘लिव-इन’ संबंधों के अनिवार्य पंजीकरण वाले यूसीसी के प्रावधान की इस आधार पर बहुत आलोचना की गयी है कि इससे लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। हालांकि, धामी ने इसे उचित ठहराते हुए कहा था कि इसके अनिवार्य पंजीकरण से श्रद्धा वाल्कर की उसके लिव-इन पार्टनर आफताब द्वारा की गयी हत्या जैसी क्रूर घटनाओं को रोकने में मदद मिलेगी।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता ने इसे ‘बेडरूम में झांकने’ वाला कदम बताया और कहा कि देश के संविधान निर्माताओं ने कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की होगी।
उच्च न्यायालय के एक अन्य वकील दुष्यंत मैनाली ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ”यूसीसी को लेकर लोगों में शुरुआत में उतना उत्साह नहीं दिखायी देने से पता चलता है कि वे इसके लिए बहुत उत्सुक नहीं हैं। अन्यथा, यूसीसी का मसौदा तैयार करने वाली समिति के साथ बातचीत के दौरान इसे लागू करने का समर्थन करने वाले लोग तो कम से कम पंजीकरण के लिए आवेदन करने हेतु आगे आए होते।”
उन्होंने कहा कि इस प्रकार की शुरुआती प्रतिक्रिया की यह संभावना भी हो सकती है कि लोग एक आधिकारिक प्लेटफॉर्म पर अपने व्यक्तिगत संबंधों का खुलासा करने के लिए तैयार नहीं है या उन्हें यूसीसी के ‘लिव-इन’ प्रावधानों की पूरी जानकारी नहीं है जिनमें एक निश्चित समयसीमा के भीतर उन्हें अपने संबंधों के पंजीकरण के लिए आवेदन करना अनिवार्य है।
यूसीसी के प्रावधानों के अनुसार, अगर ‘लिव-इन’ में रहने वाला युगल अपने संबंध की शुरुआत करने के एक माह के भीतर पंजीकरण के लिए आवेदन नहीं करते तो न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दोषी ठहराए जाने पर उन्हें तीन माह तक की कैद या 10,000 रुपये जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यूसीसी में यह भी कहा गया है कि इस संबंध में नोटिस जारी होने के बाद भी अगर ‘लिव-इन’ युगल अपने संबंध के पंजीकरण के लिए आवेदन नहीं करते, तो उन्हें छह माह तक की कैद अथवा 25 हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
हालांकि, मैनाली ने कहा कि अभी यूसीसी के बारे में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। उन्होंने कहा कि यूसीसी और इसके प्रावधानों के बारे में समझ बढ़ने के साथ ही ज्यादा लोग कानून का पालन करेंगे।
मैनाली ने कहा, ”लोगों की इसके प्रति शुरुआती प्रतिक्रिया यही दिखाती है कि यूसीसी लोगों के विचार से ज्यादा राज्य सरकार का राजनीतिक एजेंडा है।”
भाषा
दीप्ति, रवि कांत रवि कांत
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