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Saturday, 23 November, 2024
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कृषि सुधारों की सिफारिश करने वाले भाजपा के बुजुर्ग नेता ने कहा, केवल 6% ‘कुलीन’ किसान विधेयकों का विरोध कर रहे

कृषि सुधारों पर अध्ययन के लिए मोदी सरकार द्वारा गठित एक समिति का नेतृत्व करने वाले हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का कहना है कि एमएसपी से अधिकांश छोटे किसानों को लाभ नहीं होता है.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार के कृषि सुधार-चाहे वह डायरेक्ट कैश ट्रांसफर वाली पीएम-किसान योजना हो या इस समय विवाद का विषय बने तीन कृषि संबंधी विधेयक- बुजुर्ग भाजपा नेता और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों पर ही आधारित हैं.

विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरे कई किसानों का कहना है कि ये विधेयक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था खत्म कर देंगे और उनकी आय पर असर डालेंगे. लेकिन शांता कुमार ने एक इंटरव्यू में दिप्रिंट को बताया कि एमएसपी केवल 6 प्रतिशत किसानों को फायदा पहुंचाता है, जो ‘कुलीन’ हैं और यही कुलीन किसान विपक्षी दलों के इशारे पर विरोध कर रहे हैं, ये छोटे किसान नहीं हैं.

शांता कुमार ने यह भी कहा कि कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) में सुधार और किसानों की उपज की खरीद काफी समय से लंबित थी, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार को सुझाव दिया था कि कृषि को व्यवहारिक बनाने के लिए समिति की सिफारिशों पर ज्यादा काम किया जाए, मसलन, किसानों को उर्वरक सब्सिडी का सीधा हस्तांतरण और भारतीय खाद्य निगम का पुनर्गठन.

समिति की सिफारिशें

कृषि संबंधी जिन तीन विधेयकों पर रार छिड़ी है. उन्हें मोदी सरकार मूलत: अध्यादेश के रूप में लाई थी. ये अब संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुके हैं. हालांकि उनमें से दो, जिसमें एक एपीएमसी/मंडियों में सुधार से जुड़ा है और दूसरा कांट्रैक्ट फार्मिंग संबंधी है, को रविवार को राज्यसभा में ध्वनिमत से पारित कराए जाने पर विपक्षी सदस्यों ने जमकर हंगामा किया था. इसके बाद विपक्ष के आठ सदस्यों को उपसभापति हरिवंश के प्रति आक्रामक व्यवहार दिखाने के लिए निलंबित कर दिया गया था.

2014 में सत्ता संभालने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने एफसीआई के पुनर्गठन और कृषि सुधार पर सुझाव देने के लिए शांता कुमार की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था. 2015 में अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली समिति ने कृषि नीति, खाद्य और उर्वरकों पर सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने और एफसीआई के पुनर्गठन पर कई कड़े सुधारों की सिफारिश की थी. संसद के दोनों सदनों में कृषि विधेयकों पर बहस के दौरान कई सांसदों की तरफ से इस रिपोर्ट का जिक्र किया गया.

2019 के चुनावों से पहले सरकार ने किसानों को नगद प्रोत्साहन के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना की शुरुआत भी शांता कुमार समिति की सिफारिश पर ही की थी. सरकार की तरफ से जो अन्य सिफारिशें लागू की गई थीं उनमें फसल बीमा योजना, मृदा परीक्षण और एमएसपी पर बोनस को हतोत्साहित करना शामिल है.

विधेयकों का विरोध

अब अपने गृह राज्य हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में रहने वाले 86 वर्षीय शांता कुमार का कहना है कि वर्तमान में किसानों का विरोध केवल दो बिंदुओं तक ही सीमित है- एमएसपी और कांट्रैक्ट फार्मिंग संबंधी कानून के तहत विवाद समाधान तंत्र, जो किसानों को मामला स्थानीय सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट के समक्ष उठाने का अधिकार देता है.

शांता कुमार ने कहा, ‘एमएसपी पर सरकार ने साफ किया है कि यह व्यवस्था बरकरार रहेगी, लेकिन हमने (समिति ने) यह सवाल उठाया है कि एमएसपी केवल 6 प्रतिशत बड़े, कुलीन किसानों से संबंधित है जो मंडियों में अपनी फसल बेचते हैं. करीब 86 प्रतिशत छोटे किसान हैं जो अपनी उपज बेचने के लिए मंडी नहीं जाते और यह विधेयक उन्हें अपनी उपज मंडी के बाहर बेचने में सक्षम बनाएगा.’

भाजपा नेता ने कहा, ‘जो लोग विरोध कर रहे हैं वे बड़े किसान, मंडी संचालक या आढ़ती (बिचौलिए) हैं जिन्हें कमीशन मिलता है. लेकिन मंडी व्यवस्था से बाहर के छोटे किसानों के बारे में सोचें, जिन्हें इस विधेयक के जरिये ताकत मिलेगी. यह लंबे समय से लंबित था.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमने किसानों को सीधे प्रोत्साहन देने की सिफारिश की है. दुनिया भर में छोटे किसानों के लिए खेती बहुत ज्यादा लाभदायक नहीं है, और कई देश प्रत्यक्ष लाभ के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहन देते हैं. प्रधानमंत्री ने किसानों को प्रोत्साहन देने का सही फैसला लिया है.

उन्होंने कहा, ‘यही एकमात्र पेशा है जहां कोई निवेश करता है तो उसे निवेश पर प्रीमियम नहीं मिलता है, जिसे बदलने की जरूरत है. लेकिन केवल कुछ ही सिफारिशें हैं जिन्हें सरकार ने स्वीकारा है– भारतीय कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है.’


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‘एफसीआई के पुनर्गठन की जरूरत’

भारतीय खाद्य निगम के पुनर्गठन के बारे में अपनी समिति की एक अन्य प्रमुख सिफारिश के बारे में बताते हुए शांता कुमार ने कहा कि बहुत अधिक भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी थी जिसे ठीक करने की आवश्यकता है.

शांता कुमार ने कहा, ‘अगर आप 2011 की एनएसएसओ रिपोर्ट को देखें तो 40 से 60 फीसदी पीडीएस अनाज या तो सड़ गया या फिर उसकी काला बाजारी हुई. हमने मजबूत व्यवस्था वाले राज्य की सरकारों से आउटसोर्सिंग की सिफारिश की है, जैसे पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़. एफसीआई को केवल उन्हीं राज्यों में खरीद करनी चाहिए जहां व्यवस्था लचर है, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम.’

उन्होंने कहा, ‘हमने राजनीतिक कारणों से एमएसपी पर बोनस देने की व्यवस्था बंद करने की सिफारिश की है, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया है. लेकिन लीकेज रोकने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है. एफसीआई विभिन्न कारणों से एक रुपये का अनाज तीन रुपये में खरीदता है, जिससे सरकारी सब्सिडी का बिल बढ़ता है. एफसीआई की खुली खरीद व्यवस्था के कारण अनाज का स्टॉक काफी बढ़ जाता है जो आमतौर पर सड़ जाता है. अतिरिक्त स्टॉक को कम करने की जरूरत है.’

उर्वरक सब्सिडी

उर्वरक सब्सिडी के मामले में शांता कुमार समिति ने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से किसानों को कीमत और सब्सिडी के भुगतान के विनियमन की सिफारिश की है. वर्तमान में सब्सिडी उर्वरक उत्पादकों को दी जाती है, लेकिन कुमार ने कहा कि सरकार को कृषि की व्यावहार्यता के लिए सीधे किसानों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है.

हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘सरकार ने एक प्वाइंट ऑफ सेल सिस्टम लगाया है लेकिन यह पूरी तरह प्रभावी नहीं है. अब, सरकार के पास पीएम-किसान योजना के लाभार्थियों का एक बड़ा डाटाबेस है, जिसका अभाव ही अधिकारियों द्वारा प्रत्यक्ष सब्सिडी देने में एक बड़ी बाधा बताया जाता था. अब जब सरकार के पास डाटा है, तो उसे रोल आउट किया जा सकता है.’

खाद्य सुरक्षा अधिनियम युक्तिसंगत बनेगा

शांता कुमार ने कहा कि कृषि संबंधी विधेयक खेती की सूरत बदल देंगे, लेकिन अगला लक्ष्य राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लाभार्थियों को युक्तिसंगत बनाना होना चाहिए. उन्होंने कहा कि गैर-गरीब लाभार्थियों को हटाने और योजना को केवल गरीबी रेखा से नीचे के लोगों तक सीमित करने से सरकार को सब्सिडी देने में 30,000-40,000 करोड़ रुपये की बचत होगी.

हालांकि, यह सिफारिश राजनीतिक रूप से संवेदनशील प्रकृति की होने के कारण खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने इसे अस्वीकार कर दिया था.

उन्होंने कहा, ‘दस लाख लोगों के साथ शुरू करके पीडीएस में धीरे-धीरे नकद हस्तांतरण शुरू किए जाने की जरूरत है. इससे संसाधन बचेंगे, पैसों की बर्बादी भी रुकेगी और उपभोक्ताओं को भी सशक्त बनाया जा सकेगा. इससे भारत सरकार को सालाना 30,000-40,000 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है. लेकिन यह एक राजनीतिक निर्णय है और कोई भी सरकार अपने चुनाव को जोखिम में नहीं डालना चाहती.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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