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रविवार, 6 जुलाई, 2025
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सिर्फ 54 फीसदी सत्यापित गांव ही ‘ओडीएफ प्लस मॉडल’ का दर्जा प्राप्त कर पाए हैं: सरकारी समीक्षा

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नयी दिल्ली, दो जुलाई (भाषा) स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (एसबीएम-जी) के तहत लक्षित 80 फीसदी गांव खुले में शौच (ओडीएफ) से मुक्त हैं और वहां ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियां मौजूद हैं, लेकिन महज 54 प्रतिशत ही आधिकारिक रूप से सत्यापित हैं। एक सरकारी समीक्षा से यह बात सामने आई है।

ये आंकड़े बुधवार को नयी दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यशाला में पेश किए गए।

समीक्षा से यह भी पता चला कि ‘ग्रे वाटर’ (धूसर जल) प्रबंधन राष्ट्रीय कवरेज के 91 फीसदी तक पहुंच गया है और 20 से अधिक राज्यों व केंद्र-शासित प्रदेशों ने 95 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर लिया है।

‘ग्रे वाटर’ का मतलब घरों या इमारतों से निकलने वाले अपशिष्ट जल से है, जो शौचालयों से नहीं आता है। हाथ धोने के बेसिन, वॉशिंग मशीन, शावर और स्नानघर से निकलने वाला अपशिष्ट जल ‘ग्रे वाटर’ कहलाता है।

समीक्षा के मुताबिक, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन ने ब्लॉक स्तर पर 87 प्रतिशत, जबकि प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन ने 70 फीसदी कवरेज हासिल कर लिया है। हालांकि, इसकी कार्यात्मक स्थिरता के बारे में चिंताएं बनी हुई हैं।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, लक्षित गांवों में से 80 फीसदी ने ‘ओडीएफ प्लस मॉडल’ का दर्जा हासिल कर लिया है, लेकिन केवल 54 प्रतिशत का ही सत्यापन किया गया है।

‘ओडीएफ प्लस मॉडल’ गांव को लगातार खुले में शौच से मुक्त होने का दर्जा प्राप्त होता है, वहां ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था मौजूद होती है, साफ-सफाई स्पष्ट रूप से दिखाई देती है और ओडीएफ से संबंधित संदेश प्रदर्शित किए जाते हैं।

जल शक्ति मंत्रालय के तहत पेयजल एवं स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) और यूनिसेफ इंडिया की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित कार्यशाला में राज्य मिशन निदेशक, सरकारी अधिकारी, क्षेत्र के विशेषज्ञ तथा विकास भागीदार ग्रामीण स्वच्छता की मौजूदा स्थिति का आकलन करने और आगे की राह तैयार करने के लिए एकत्र हुए।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डीडीडब्ल्यूएस सचिव अशोक केके मीना ने कहा, ‘‘स्वच्छता केवल बुनियादी ढांचे के बारे में नहीं है, यह सम्मान, समानता और स्थिरता के बारे में है। एसबीएम-जी के अगले चरण को पिछले दशक की सामूहिक प्रगति पर आधारित होना चाहिए और कार्यान्वयन में स्थानीय नेतृत्व को शामिल किया जाना चाहिए।’’

कार्यशाला के दौरान दो प्रमुख तकनीकी प्रकाशनों का लोकार्पण किया गया, जिनमें ‘ग्रामीण भारत में सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा एवं सम्मान के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं’ और ‘जलवायु अनुकूल सफाई तकनीकी डिजाइन और सेवाएं विकसित करने के लिए प्रोटोकॉल’ शामिल हैं।

यूनिसेफ की डब्ल्यूएएसएच और सीसीईएस प्रमुख करीना मालक्जवेस्का ने जलवायु-अनुकूल और भविष्य के लिए तैयार सफाई प्रणालियों में बदलाव के महत्व पर जोर दिया।

एसबीएम-जी और जल जीवन मिशन के मिशन निदेशक कमल किशोर सोन ने कार्यशाला को चिंतन और पुनर्संतुलन का मंच बताया।

उन्होंने कहा, ‘‘जलवायु जोखिम बढ़ने के साथ ही स्वच्छता प्रणालियों में लचीलापन लाना अब वैकल्पिक नहीं रह गया है, बल्कि आवश्यक हो गया है।’’

पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव सुशील कुमार लोहानी के नेतृत्व में एक समर्पित सत्र में स्वच्छता परिणामों को बनाए रखने में ग्राम पंचायतों की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।

ढाई लाख से अधिक पंचायतों ने ई-ग्रामस्वराज मंच के माध्यम से विषयगत विकास योजनाएं तैयार की हैं और पंचायत उन्नति सूचकांक का इस्तेमाल करके प्रगति की निगरानी कर रही हैं।

भाषा पारुल नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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