नई दिल्ली : पिछले साल प्याज के स्टॉक में कमी, जिसने कीमतों को बेकाबू कर दिया था, के मद्देनजर सरकार ने अपना बफर स्टॉक दोगुना करने के लिए खरीद का लक्ष्य 1 लाख मीट्रिक टन (एमटी) तय कर दिया था. हालांकि, सरकारी एजेंसियां मानसून से पहले केवल 45,000 मीट्रिक टन कमोडिटी की ही खरीद कर पाई हैं, जिससे यह चिंता बढ़ गई है कि सितंबर और दिसंबर के बीच इसका मौसम न होने के दौरान उपभोक्ताओं को एक बार फिर महंगी कीमत का झटका लग सकता है.
उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि पिछले साल प्याज का बफर स्टॉक 56,000 मीट्रिक टन था और यह कि बारिश के बाद यह उत्पाद भंडारण के योग्य नहीं रहता.
अधिकारी ने कहा, ‘नेफेड ने अब तक केवल 45,000 मीट्रिक टन प्याज की खरीद की है और बारिश करीब आने के साथ, अधिक से अधिक उत्पादन भंडारण और खरीद के लिए लायक नहीं रहेगा. इसलिए, यह संभावना बहुत ज्यादा नहीं है कि इस वर्ष खरीद लक्ष्य पूरा हो पाएगा, क्योंकि जुलाई के अंत तक केवल 20,000-25,000 मीट्रिक टन और प्याज खरीदी जा सकती है.
क्या हुआ था पिछले साल
नेफेड- यानी नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया-बाजार के दामों पर प्याज की खरीद करता है. अधिकांश खरीद प्रमुख प्याज उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश से होती है.
कमी की स्थिति में कीमतों को स्थिर रखने के लिए यह एक बफर स्टॉक रखता है. मांग में कमी के कारण बाजार में कीमतें धड़ाम होने की स्थिति, जैसा देशभर में कोविड-19 में कारण लॉकडाउन के दौरान हुआ, में यह किसानों को उचित मूल्य भी दिलाता है.
यह भी पढ़ें : मोदी सरकार ने कृषि सुधारों पर जो कहा वो कर दिखाया, अब बारी खामियों को दूर करने की है
पिछले साल भारी बारिश के कारण खरीफ की फसल खराब हो जाने के बाद नवंबर-दिसंबर में खुदरा बाजार में प्याज की कीमतें 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई थीं. इसके बाद, कीमतों को नीचे लाने के प्रयास के तहत, सरकार ने बफर स्टॉक को 23 रुपये प्रति किलोग्राम पर जारी किया था.
हालांकि, यह पर्याप्त साबित नहीं हुआ और सरकार को भंडारण सीमा निर्धारण के साथ आयात पर पाबंदी लगानी पड़ी, और कीमतों पर नियंत्रण के लिए बाद में अन्य देशों से प्याज का आयात भी करना पड़ा.
क्या हो रहा इस साल
महाराष्ट्र में नेफेड के निदेशक नाना साहेब पाटिल ने दिप्रिंट को बताया कि इस वर्ष कोविड-19 के कारण लॉकडाउन ने खरीद प्रक्रिया को प्रभावित किया है.
पाटिल ने कहा, ‘प्याज की जो फसल बफर स्टॉक पहुंची है. इसकी कटाई मार्च-अप्रैल में हुई थी और उस दौरान, लॉकडाउन के कारण मजदूरों की कमी और बाजार बंद होने से खरीद प्रक्रिया प्रभावित हुई. यहां तक कि नासिक में लासलगांव मंडी, जो एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी है, कोविड-19 मामलों के कारण पिछले चार दिनों से बंद है.
उन्होंने आगे कहा, ‘मानसून में तेजी के बाद प्याज की गुणवत्ता में गिरावट आएगी, जो इसे खरीद और भंडारण के योग्य नहीं रहने देगी. इस साल 1 एलएमटी का लक्ष्य हासिल होने की संभावना कम ही है.’
खरीद में सुस्ती के कारण प्याज का थोक बाजार मूल्य एक सप्ताह में 1,850-2,000 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर 1,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )