नयी दिल्ली, 12 फरवरी (भाषा) दुनिया में पांच में से एक प्रवासी प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा है और 44 प्रतिशत की आबादी में गिरावट की प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। सोमवार को जारी संयुक्त राष्ट्र की पहली ‘विश्व की प्रवासी प्रजातियों की स्थिति’ रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई।
जलीय पारिस्थितिक तंत्र में स्थिति कहीं ज्यादा खराब है, संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में प्रवासी प्रजातियों पर संधि (सीएमएस) के तहत संरक्षण के लिए सूचीबद्ध 97 प्रतिशत प्रवासी मछलियों के विलुप्त होने का खतरा है। इस संधि के तहत करीब 1200 प्रवासी प्रजातियों की निगरानी की जाती है।
सीएमएस की स्थापना 1979 में की गई थी। यह प्रवासी प्रजातियों के जीवित रहने और पनपने को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कार्यों पर सहमत होने के वास्ते देशों और हितधारकों को एक साथ लाने पर ध्यान केंद्रित करती है।
यह रिपोर्ट उज्बेकिस्तान के समरकंद में सीएमएस के पक्षकारों के 14वें सम्मेलन के उद्घाटन पर जारी की गई। रिपोर्ट के अनुसार, सम्मेलन के परिशिष्ट-1 के तहत सूचीबद्ध 82 प्रतिशत प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा है और 76 प्रतिशत की आबादी में गिरावट की प्रवृत्ति है।
परिशिष्ट-2 प्रजातियों में से 18 प्रतिशत विश्व स्तर पर खतरे में हैं, जिनमें से लगभग आधी (42 प्रतिशत) की आबादी में गिरावट देखी जा रही है।
संधि के परिशिष्ट-1 में उन प्रवासी प्रजातियों की सूची दी गई है जो लुप्तप्राय हैं।
परिशिष्ट-2 में उन प्रवासी प्रजातियों की सूची दी गई है “जिनकी संरक्षण स्थिति प्रतिकूल है तथा उनके संरक्षण और प्रबंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौतों की आवश्यकता है”।
रिपोर्ट में विश्व स्तर पर खतरे में पड़ी और लगभग खतरे में पड़ी 399 प्रवासी प्रजातियों (मुख्य रूप से पक्षी और मछलियां) की भी पहचान की गई है जो अभी तक सीएमएस परिशिष्टों में सूचीबद्ध नहीं हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा का लाभ मिल सकता है।
सीएमएस की कार्यकारी सचिव एमी फ्रेंकेल के अनुसार, अत्यधिक दोहन (शिकार और मछली पकड़ना, लक्षित और आकस्मिक दोनों) कई प्रवासी प्रजातियों के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है तथा यह आवासन के नुकसान और बिखराव को पार कर गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बांधों के कारण आवासन स्थितियों में बिखराव वर्तमान में पूर्वी एशिया, यूरोप, भारतीय उपमहाद्वीप, उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अफ्रीका में सबसे अधिक है। मत्स्य उद्योग में गैर-लक्षित प्रजातियों को पकड़ना कई सीएमएस-सूचीबद्ध समुद्री प्रजातियों की मृत्युदर का एक प्रमुख कारण है।
प्रवासी प्रजातियों के लिए अन्य प्रमुख खतरों में प्रदूषण (प्रकाश और ध्वनि प्रदूषण सहित), जलवायु परिवर्तन और आक्रामक प्रजातियां शामिल हैं।
पिछले 30 वर्षों में, 70 सीएमएस-सूचीबद्ध प्रवासी प्रजातियां – जिनमें स्टेपी ईगल (बाज की एक प्रजाति), मिस्र का गिद्ध और जंगली ऊंट शामिल हैं – अधिक लुप्तप्राय हो गई हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, केवल 14 प्रजातियों की स्थिति में सुधार हुआ है। इसमें कहा गया है कि इनमें नीली और हंपबैक व्हेल, सफेद पूंछ वाली समुद्री उकाब और काले चेहरे वाली स्पूनबिल (चम्मच की तरह की चोंच वाले पक्षी की एक प्रजाति) शामिल हैं।
इसमें कहा गया है कि सीएमएस-सूचीबद्ध प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले निगरानी किए गए स्थलों में से 58 प्रतिशत मानवजनित दबाव के अस्थिर स्तर का सामना कर रहे हैं।
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प्रशांत वैभव
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