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शुक्रवार, 25 अप्रैल, 2025
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सांसद दुबे की टिप्पणी पर उच्चतम न्यायालय ने कहा: हमें संस्था की मर्यादा, बनाये रखनी चाहिए

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नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ एक सांसद के टिप्पणी करने से अवगत कराये जाने के बाद सोमवार को ‘‘शीर्ष अदालत की मर्यादा और प्रतिष्ठा’’ बनाए रखने की अपील की।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की, जब याचिकाकर्ता एवं अधिवक्ता विशाल तिवारी ने वक्फ कानून में संशोधन के बाद पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हिंसा के दौरान नफरत भरे भाषणों को लेकर दायर अपनी जनहित याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी।

तिवारी, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के बयानों का जिक्र कर रहे थे, जिन्होंने कहा था कि यदि उच्चतम न्यायालय को ही कानून बनाना है तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।

पीठ ने तिवारी से कहा, ‘‘हमें आरोपों में भी संस्था की मर्यादा और प्रतिष्ठा बनाए रखनी चाहिए। अनुच्छेद 32 (के तहत रिट) याचिका में, दिये गए कथन भी सम्मानजनक होने चाहिए।’’

न्यायालय ने तिवारी को अपनी याचिका में संशोधन करने की अनुमति देते हुए उनसे शीर्ष अदालत में ‘‘कुछ ठोस’’ लाने को कहा।

भाजपा ने दुबे द्वारा शीर्ष अदालत की आलोचना से 19 अप्रैल को दूरी बना ली और पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने इन टिप्पणियों को उनका निजी विचार बताया।

तिवारी ने अपनी याचिका में कहा कि था पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले और उत्तर 24 परगना में वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध में हिंसा भड़क गई और उसमें कई लोगों की मौत हो गई तथा संपत्ति को नुकसान पहुंचा।

याचिका में कहा गया है, ‘‘कुछ लोगों के लिए यह राजनीति का अच्छा अवसर हो सकता है और कुछ पार्टियां राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल करती हैं। शांति बनाए रखने के बजाय राजनीतिक नेता भड़काऊ भाषण देते हैं जिससे स्थिति और खराब होती है।’’

याचिका में, शीर्ष अदालत के 21 अक्टूबर 2022 के आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें उसके प्राधिकारों को नफरत फैलाने वाले भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया गया था।

उन्होंने कहा, ‘‘नफरत फैलाने वाले भाषण देने वाले मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और संवैधानिक पदों पर आसीन राजनीतिक नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।’’

तिवारी ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग के गठन का निर्देश देने का अनुरोध किया था।

याचिका में, बंगाल सरकार को किसी भी समुदाय और व्यक्ति के खिलाफ नफरत भरे और भड़काऊ भाषणों पर कार्रवाई करने और उन पर अंकुश लगाने के निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था।

भाषा सुभाष माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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