नई दिल्ली: ‘दिवाली के आस-पास जब राजधानी की हवा ख़राब होती है तो सब आसमान सिर पर उठा लेते हैं. लेकिन हमारे इलाक़े के पूरे साल गैस चैंबर बने रहने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट सुनवाई तक का समय नहीं देता. ऊपर से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) जैसे पर्यावरण के चौकीदार भी सोते रहते हैं,’ दक्षिणी दिल्ली के सुखदेव बिहार निवासी केएस राव ने इन्हीं शब्दों में इलाक़े की ज़हरीली हवा को लेकर अपना दर्द बयां किया.
क़रीब 30 साल से सुखदेव विहार में रह रहे राव के इलाके में ओखला वेस्ट टू एनर्जी (डब्ल्यूटीपी) प्लांट स्थित है. कूड़े से बिजली बनाने वाले इस प्लांट ने सुप्रीम कोर्ट के एक ताज़ा आदेश को ताक पर रखकर बिजली उत्पादन का काम धड़ल्ले से जारी रखा है.
सुखदेव विहार रेसिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित भूरे लाल कमिटी को लिखित में एक शिकायत दी. इसमें कहा गया कि प्लांट से होने वाले ‘प्रदूषण’ की वजह से केएस राव की तरह ओखला, जसोला और सुखदेव विहार जैसे आधा दर्जनों इलाकों में करीब 10 लाख़ की आबादी का हाल बेहाल है और मांग की गई कि ठंड के मौसम में इस प्लांट को बंद रखा जाए.
सुखदेव विहार आरडब्ल्यूए के मुताबिक भूरे लाल कमिटी ने उनकी शिकायत को डीपीसीसी के पास भेजा है. शिकायत की स्थिति जानने के लिए भूरे लाल समिति से संपर्क करने पर पता चला कि सुखदेव विहार आरडब्ल्यूए को दिए गए इस आश्वासन के बाद भी शिकायत उन्हीं के पास पड़ी हुई है.
इसके पहले चार नवंबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित ईपीसीए ने किसी तरह के निर्माण कार्य और कूड़े के जलाए जाने पर रोक लगा दी थी. अपने ताज़ा नोटिस में दिल्ली सरकार ने चेतावनी दी है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने वाले के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होगी.
इनमें लिखा है, ‘कूड़ा जलाने वालों पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा और आदेश का उल्लंघन करने वाले के ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.’ दिल्ली सरकार और डीपीसीसी ने ये अनुरोध भी किया है कि इस तरह के किसी उल्लंघन की जानकारी ‘समीर’ नाम के एप पर भी दी सकती है ताकि दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सके.
इसके पहले भूरे लाल की अध्यक्षता वाले पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने एक नवंबर को जारी किए गए एक निर्देश में किसी भी ऐसी इंडस्ट्री को अपना काम बंद करने को कहा था जो पीएनजी से नहीं चलते. दिल्ली के आस-पास मौजूद इंडस्ट्री को लेकर भी एक ऐसा ही निर्देश जारी किया गया जिसमें पावर प्लांट को छूट दी गई, लेकिन ओखला स्थित प्लांट पावर प्लांट न होकर वेस्ट टू एनर्जी प्लांट है.
नाम नहीं बताने की शर्त पर कूड़े से बिजली ओखला बनाने वाले इस प्लांट के एक कर्मचरी ने बताया की यहां बिजली उत्पादन का काम जारी है. वहीं, दिल्ली स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर की वेबसाइट पर जाकर कोई भी देख सकता है कि यहां बिजली बनाने का काम चालू है. ये साफ़ तौर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई रोक का उल्लंघन है.
पर्यावरण के लिहाज से ओखला हॉटस्पॉट इलाक़े में शामिल है, ऊपर से दिल्ली की हवा की स्थिति बेहद ख़राब है, बावजूद इसके ओखला डब्ल्यूटीपी प्लांट ने कूड़े से बिजली बनाना धड़ल्ले से जारी है. इस प्लांट पर लंबे समय से पर्यावरण से खिलवाड़ करने के आरोप लगते रहे हैं.
मामले की गंभीरता पर दिप्रिंट से बातचीत में सुखदेव विहार में रहने वाले एक पूर्व वैज्ञानिक उमेश बहरी ने कहा, ‘जिस दिन ये प्लांट शुरू हुआ था उसी दिन इसे दो कारण बताओ नोटिस मिले थे, लेकिन तब से आज तक बिना किसी बात की परवाह किए इसने दिल्ली की हवा में ज़हर घोलना जारी रखा है.’
इसी साल अप्रैल महीने में पर्यावरण मंत्रालय ने भी इस प्लांट को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया था. मंत्रालय द्वारा नवीन चंद्रा की अध्यक्षता में एक कमिटी गठित की गई थी. कमिटी द्वारा 2018 में किए गए एक निरीक्षण में पाया था कि प्लांट ने 2007 में इसे मिली पर्यावरण से जुड़ी अनुमति से संबंधित कई उल्लंघन किए थे.
उदाहरण के लिए प्लांट को बिजली बनाने के लिए जितने रिफ्यूज डेराइव्ड फ़्यूल (आरडीएफ़) जलाने और उससे जितनी बिजली पैदा करने की अनुमति मिली थी उससे लगभग दोगुना फ़्यूल जलाया जा रहा था और 16 मेगावाट के बजाए 19 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा था.
ऐसे ही कई और उल्लंघनों की वजह से मंत्रालय ने नोटिस में पूछा था कि ऐसे कई उल्लंघन करने वाले इस प्लांट की पर्यावरण मंजूरी को क्यों रद्द नहीं किया जाए? इस साल चार नवंबर को दिए गए एक आदेश में पर्यावरण मंत्रालय ने सीपीसीबी से प्लांट द्वारा पर्यावरण को पहुंचे नुकसान का अनुमान लगाने को कहा और अनुमान के हिसाब से क्षतिपूर्ति वसूलने को भी कहा.
मंत्रालय ने प्लांट से निकलने वाले डायक्सीन और फ्यूरेंस जैसी ख़तरनाक गैसों के महीने में एक बाद निरीक्षण का भी आदेश दिया जिसकी रिपोर्ट मंत्रालय, सीपीसीबी, डीपीसीसी और मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालयों को सौंपे जाने के अलावा प्लांट की वेबसाइट पर भी अपलोड करने को कहा.
सुखदेव विहार के लोग इस प्लांट के ख़िलाफ़ 2017 से लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी तक सुनवाई की तारीख़ नहीं मिली. इस बीच अक्टूबर महीने में दिल्ली सरकार द्वारा प्रदूषण 25 प्रतिशत तक कम होने का जश्न मनाए जाने के बाद से राजधानी की हवा लगातार ख़राब होती चली गई.
पर्यावरण मंत्रालय के सिस्टम ऑफ़ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरस्कास्टिंग (सफर) सिस्टम के मुताबिक मंगलवार को यानी आज दिल्ली का एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 450 से ऊपर है यानी दिल्ली की हवा एक बार फिर जानलेवा स्थिति में पहुंच गई है.
इन सबके बीच पूर्व वैज्ञानिक उमेश बहरी ने कहा, ‘मैं कई बार प्लांट के भीतर गया हूं. इसमें कई ख़ामियां हैं लेकिन हमने जब भी सवाल उठाया हमें झिड़क दिया गया.’ उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह का प्रदूषण इस प्लांट से होता है, उसकी कीमत आने वाले पीढ़ियों को चुकानी पड़ेगी. इस मामले पर दिप्रिंट ने ओखला स्थित इस प्लांट का पक्ष जानने के कई प्रयास किए लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया. जवाब आने पर इस ख़बर को अपडेट किया जाएगा.